सबको, सोचना होगा।
सबको, सोचना होगा।
सिग्नल पर एक बच्चा तिरंगा बेच रहा था।
आप हम कई बार देखते होंगे कि, ट्रैफिक सिग्नल पर बच्चे कुछ ना कुछ बेचते हुए दिख जाते है। बहुत से बच्चे देखकर अपने बच्चों की याद आये बिना नहीं रह पाती।
ऐसा ही एक वाकया मैं आज आपको सुना रहा हूँ, तो हुआ यूं कि वो दिन था 15 अगस्त का। माफ कीजिए साल मुझे ठीक से याद नहीं है, लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी होती है जो आदमी कभी नहीं भूलता। तो मैं उस दिन अपने ऑफिस से वापस आ रहा था, आप कहेंगे 15 अगस्त के दिन कौन सा ऑफिस, तो ज़रा रुकिए क्योंकि मैं एक स्कूल में क्लर्क हूँ। और हमें 15 अगस्त के दिन झंडे को वंदन करने जाना होता है। तो
तो हुआ यूं कि, उस दिन मैं जब उस सिग्नल पर पहुंचा तो एक बच्चा लगभग 8-9 साल का हाथ में कुछ तिरंगे लिए बेच रहा था। इतने में वो मेरी गाड़ी के पास आया और बोला "साब, एक ले लो ना आज 15 अगस्त है, आज के दिन हम आज़ाद हुए थे।" ये अल्फ़ाज़ सुनते ही पता नहीं क्या हुआ मुझे, कि मेरी आँखें भर आयी, मेरी आंखों के कोने गीले हो गए। सिग्नल खुलने की वजह से हरी बत्ती जल गई थी। तो मैंने अपनी गाड़ी साइड में लेकर उस बच्चे को अपने पास बुलाया, और मैंने उससे पूछा ये तुम्हारे पास कितने झंडे है कुल? उसने कहा 24 है। सुबह से बस एक ही बेच पाया हूँ। दोपहर तक कैसा भी करके मुझे सब बेचने ही होंगे। ये बात कहते ही वो थोड़ा उदास हो गया। मुझे अंदाज़ा हुआ कि, वो थोड़ा सहमा हुआ भी लग रहा है। ज्यादा पूछने पर उसने बताया कि, उसका मालिक उसको ये झंडे या और दिनों में कोई और समान ना बिकने पर खाना नहीं देगा। और मारेगा वो अलग से। मुझे उस बच्चे पर बड़ी दया आई, मेरे और पूछने के बाद उसने बताया कि, उसके माँ बाप इस दुनिया में नहीं है।
वो दोनों कैसे मर गए, ये भी उस मासूम को याद नहीं था। हाँ कुछ दिन उसके मामा और मामी ने उसे पाला। लेकिन उसका मामा एक शराबी था। जो रोज़ शाम उसे किसी ना किसी बात को लेकर ताने देता, या ज्यादा हुआ तो मारता था। लेकिन, वो बताता है कि उसकी मामी बहुत नेक थी वो उसे बहुत प्यार करती थी, लेकिन अपने पति के आगे बेबस थी बेचारी। अपने पति से तंग आकर मामी ने उसे नज़दीक के बच्चों के लिए बने एक आश्रम में डाल दिया। जहां उसकी अच्छे से देखभाल हो, अच्छे से पढ़ाई हो। वो पढ़लिखकर कुछ बन जाए।
वो आश्रम बड़ा अच्छा था। लेकिन एक दिन उस आश्रम में आग लग गई। और उसके बाद इन बच्चों को थोड़े वक़्त के लिए कहीं और पर रक्खा गया। साल गुज़रे लेकिन वो आश्रम वापस नहीं बन सका, लेकिन वहां एक बिल्डिंग बन गयी। ये सब कैसे हुआ होगा ये किसी को बताने कि ज़रूरत नहीं है सब जानते है। उसने ये सब मुझे बताया क्योंकि वो एक बार भागकर उस जगह दोबारा जा पहुंचा था, जो उसकी आखरी उम्मीद थी।
हुआ यूं कि, आश्रम के जलने के बाद बच्चों को जिस जगह पर रखा गया था, वो जगह कुछ देर के लिए ली गयी थी। कुछ महीने बाद उस जगह से कई बच्चों को आने माँ बाप मिले, यानी उन्हें एडॉप्ट कर लिया गया। लेकिन ज्यादा उम्र होने की वजह से ये बेचारा वहीं रह गया। वैसे इसकी उम्र 8-9 नहीं 13 साल है जो मुझे उसने बताई, लेकिन ये कहीं से इतना बड़ा नहीं लग रहा था। दिन बीते महीने बीते नए आश्रम की हालत भी ख़राब हो गयी, बच्चों को ठीक से कुछ नहीं मिल रहा था, आश्रम वाले अपनी और से कोशिश तो कर रहे थे, लेकिन वो अधूरी साबित हो रही थी। और एकदिन ये बच्चा उस आश्रम से भाग गया।
ये रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों, यहाँ वहाँ घूमता। खाने को कुछ मिला ना मिला ऐसे ही रह रहा था। एक दिन एक आदमी ने उसे "काम करेगा" कहकर अपने जाल में फंसा लिया, और उसे सिग्नल पर भीख मांगने के काम पर लगा दिया। कुछ दिनों बाद उसे कुछ चीज़ें बेचने के लिए देने लगा। कि अब उसे हिसाब अच्छे से समझ आ रहा था। वो आदमी उसपर बहुत ज़ुल्म करता था। लेकिन ये बच्चा उसके डर के कारण कुछ नहीं कहता। मुझसे बात करते हुए भी वो इधर उधर देख रहा था, जैसे कोई आ जाएगा। एक दिन उसने भागने की भी कोशिश की। वो उस जगह गया जहाँ उसका आश्रम था, लेकिन वहाँ अब एक बिल्डिंग खड़ी थी। सो ये वापस आ गया डरा सहमा। उसी आदमी के पास। जो उसपर ज़ुल्म तो करता है, लेकिन खाना भी देता है। उसके कहे मुताबिक़।
आश्रमवालों ने भी शायद इसे ढूंढने की कोशिश नहीं की, या की होगी तो मुझे पता नहीं लेकिन, इस एक छोटे से बच्चे को ज़िन्दगी ने कितने बड़े ग़म दिए है, ये सोचकर अब ज्यादा कुछ कहा नहीं जा रहा मुझसे।
मैंने उससे वो सब झंडे ख़रीदे। और उसे कुछ खाने के लिए अपने साथ चलने को कहा। वो मेरी गाड़ी में बैठने से भी डर रहा था। फिर हम पास के एक पिज़्ज़ा रेस्टोरेंट गए। जहाँ मैंने उसे एक पिज़्ज़ा दिया जिसे वो बड़े चाव से खा रहा था, जैसे उसने ऐसा खाना बहोत सालों बाद खाया हो। मुझे ये देखकर अपने बेटी की याद आ गयी, कि भगवान का शुक्र है कि वो ख़ुशनसीब है जिसके माँ बाप जीवित है। मुझे उस लड़के का बहुत बुरा लग रहा था। पिज़्ज़ा ख़त्म करने के बाद उसने कहा "साब, मैं अब चलता हूँ।" ये सुनकर मैंने उसे रुकने के लिए कहा और पूछा कि तुम अब कहाँ जाओगे? उसने कहा कहाँ क्या घर जाऊंगा। मैं सोच में पड़ गया कि, इतनी सारी तकलीफ़ों के बावजूद ये उसको अपना घर कह रहा है? उसने कहा कि, हाँ घर। वरना दूसरे मैं कहाँ जाऊँ? कौन है मेरा? मामी थी वो भी अब कहां है पता नहीं। इन सब बातों ने मुझे अंदर से जैसे तोड़ दिया। मैंने उसे 200 रुपये देने के लिए निकाले, और देने लगा तो उसने कहाँ "नई साब ये मैं नहीं ले सकता।" वरना मेरा मालिक कल भी इतने ही पैसे मुझे लाने के लिए कहेगा। एक दिन एक साब ने 100 रुपये दे दिए, जो मैंने ले लिए, लेकिन वो देखकर उसने मुझे ऐसे ही रोज़ ज्यादा पैसे लाने के लिए कहा। उस दिन उसने मुझे बहुत मार जब मैं इतने पैसे नहीं ले जा सका। क्योंकि लोग सामान का ही पैसा देते है बहुत कम लोग कभी ऐसे ज्यादा पैसा दे देते है या खाने के लिए कुछ दे देते है। ये कहकर वो उस रेस्टोरेंट से बाहर निकला, मैं उसके पीछे पीछे आया तो वो मेरी नज़रों से ओझल हो चुका था, जो कि अब भी मुझे साफ साफ दिख रहा था। मैं घर आया दोपहर का खाना खाने का मन नहीं कर रहा था, सो मैं बेडरूम में गया लेकिन मुझे चैन नहीं पड़ रहा था। कई सारे सवाल मुझे परेशान कर रहे थे। वो सवाल मैं मेरी इस कहानी के ज़रिए आप के सामने भी रख रहा हूँ, क्योंकि मुझे लगता है कि आज ज़रूरत सिर्फ इंसान बनने की है, उसके बाद चाहे हम जो भी बने।
सवाल ये कि,
क्या वो बच्चा उस सिग्नल पे ना होकर कहीं और हो सकता था? क्या ग़लती उसके मामी की नहीं है जिसने उसे आश्रम में छोड़कर जैसे छोड़ ही दिया? क्या ग़लती उन आश्रमवालों की नहीं है जिन्होंने उसे ऐसा करनेपर मजबूर कर दिया, चाहे हालात जैसे भी रहे हो। क्या गलती हम और आप जैसे लोगों की नहीं है, जो अपनेआप को पढ़ालिखा समझते है लेकिन, इंसान को इंसान नहीं समझते। कई लोग तो ऐसे बच्चों को अपने गाड़ी को हाथ भी लगाने नहीं देते। उन्हें धुत्कारते है, उनपर चिल्लाते है, उन्हें भला बुरा कहते है, माँबाप ने पैदा करके छोड़ दिया है, ऐसी बहुत सी बातें करते है। ग़लती हम सबकी है क्योंकि हम सब इंसान है। हम कभी नहीं सोचते कि, क्या मजबूरी है जो इतने छोटे छोटे बच्चे ये काम क्यों कर रहे है, या ये काम उनसे कौन करवा रहा है। इसीलिए कम से कम ऐसे बच्चे कभी दिखे तो उनसे प्यार से पेश आइए, उन्हें जो भी मदद हो वो करिए मतलब उनसे सामान खरीदें मोल भाव ना करें। उन्हें खाना दे पानी पीने के लिए दें।
क्योंकि, हम सभी ये काम करके उनकी ज़िन्दगी तो नहीं बदल सकते लेकिन, उन्हें ज़िन्दगी के कुछ पल ख़ुश रहने के ज़रूर दे सकते है। मैं जानता हूँ, हर कोई अपने ज़िन्दगी से लड़ रहा है लेकिन, ये छोटे से बच्चे अपनी ज़िन्दगी से इस छोटी सी उम्र में जंग कर रहे है। उन्हें ज़रूरत है तो बस कुछ एक चंद रुपयों की जो अपना सामान बेचकर वो कमाना चाहते है, जिससे वो अपना पेट भर सके। और ज़िन्दगी कैसी भी हो उसको बसर करे। वैसे कहानी तो कबकी ख़त्म हो चुकी है लेकिन, मेरे अंदर कुछ सवाल आज भी है, जो मैंने आपसे साझा किए, मुझे उम्मीद है कि, कहीं ना कहीं आप लोग भी मेरे इन सवालों से सहमत होंगे, मुझे आशा है कि आप भी इस बारे में कुछ सोचेंगे, और कुछ प्रयास करेंगे। क्योंकि जीवन सबका है, और सभी को इसे सम्मान से जीने का अधिकार है। सो हर कोई अगर अपनी तरफ से छोटे छोटे कदम उठाएगा तो एक दिन हमारा भारत इस परेशानी से आज़ाद हो जाएगा और वो बच्चे भी आज़ाद हो जाएंगे, अगर इतना बड़ा काम किसी ने किया तो?। और हम सब मिलकर अपने देश को एकसाथ आगे ले जाएंगे।
एक शेर,
वो सिग्नलपर गुब्बारे बेच रहा मासूम बच्चा,
मुझसे मेरे ज़मीर से कई सवाल कर रहा है।
क्या सभी इंसान बस दौड़ने में लगे हुए है,
जबकि कुछ तो खड़े भी नहीं हो पा रहे है।