Sudha Sharma

Tragedy

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Sudha Sharma

Tragedy

सैंडविच

सैंडविच

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श्यामला अपने पति के और अपने लिए नाश्ते में सैंडविच बना रही थी कि पास के कमरे में रखे मोबाइल की धुन बज उठी।  श्यामला ने गैस बंद की और फोन सुनने लगी। फोन बेटे का था, जो एम एन सी कंपनी में सीनियर प्रोजेक्ट मैनेजर के रूप में हैदराबाद में काम करता था। बेटे ने पास रहने के लिए बुलाया था। आज भी बुलाने का कारण प्यार नहीं था आवश्यकता थी। क्योंकि बड़े पोते के पाॅंव में फुटबॉल खेलते हुए फ्रैक्चर हो गया था और अभी एक साल पहले ही बहू ने किसी स्कूल में अध्यापिका के रूप में सर्विस करती ली थी। बच्चों की देखभाल के लिए कोई तो घर पर होना चाहिए क्योंकि चोट लगने के कारण बड़ा पोता शिवम घर पर रहता है और छोटे पोते के पेपर चलने वाले हैं अब छुट्टी ढाई बजे के बजाय बारह बजे हो जाया करेगी। पहले बहू उसे स्कूल से अपने साथ ले आती थी। उसे स्कूल बस के लिए सुबह साढ़े सात बजे सोसायटी के पिछले गेट तक छोड़ने और दोपहर को बस से लाने के लिए  बारह बजे , जाना पड़ता है। बहू चार बजे तक घर आती है। इसी जिम्मेवारी के कारण  बेटा पल्लव आफिस नहीं जा पा रहा था। वो तो अच्छी बात यह थी कि पल्लव का आफिस प्रत्येक दिन नहीं था सप्ताह में दो दिन जाना था शेष दिनों के लिए वर्क फ्रॉम होम था। 

बेटे के निमंत्रण को सुनकर पति-पत्नी दोनों खुश हो गए। स्वीकृति मिलने पर बेटे ने दोनों का टिकट करा दिया लेकिन श्यामला की मुख मुद्रा गंभीर देखकर विजेंद्र देव ने पूछ लिया -”क्या बात है ? जाने की बात सुनकर चेहरे पर कोई उत्साह नहीं? जबकि ठीक से साथ रहने का मौका  समझो पूरे पांच साल बाद मिल रहा है।  कहने के लिए तो वह जब अमेरिका से साढ़े तीन वर्ष बाद भारत लौटा था तो दस दिन के लिए यहाॅं बच्चे व पत्नी  सहित रहने के लिए आया था और उसके मकान के मुहूर्त पर भी हम आठ  दिन के लिए साथ रहकर आए थे लेकिन अब एक डेढ़ महीना साथ रहेंगे बड़ा पोता भी कुछ दिन के लिए स्थाई रूप से साथ रहेगा। छोटे पोते के साथ खेलने का मौका मिलेगा। जी भर के इंजॉय करेंगे।” पति की बात सुनकर श्यामला मुस्कुरा दी लेकिन मुस्कुराहट भी बड़ी फीकी थी। 

“इंजॉय तो तुम करोगे क्योंकि तुम पुरुष हो। नारी तो हमेशा काम करने का साधन होती है। बहू हमारे पास रहने आई हो या हम बहू के पास रहने गए हो काम की जिम्मेवारी  तो मेरी ही होती है।” “तुम कैसी बातें करती हो श्यामला यहाॅं तो हमने नौकर नहीं रख रखे हैं इसलिए पूरा काम तुम्हें करना ही पड़ता है क्योंकि वह किसी न किसी काम के लिए आती है। या तो अब बी एड करने के लिए आई थी या जब बीमार हो गई थी तब आई थी।  तुमने देखा नहीं अभी मकान के मुहूर्त में गए थे तो घर में मेड लगी हुई थी। नाश्ता बनाने के लिए आशा, दोपहर का खाना बनाने के लिए अनुराधा, झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिए रोशनी और यदि कोई आकस्मिक घर की सफाई वगैरह काम करना हो तो सौ रूपए प्रति घंटे पर कोमल को बुला लेती है।” 

“तुम सही कहते हो, बात काम की नहीं काम तो मैं यहाॅं भी करती हूॅं। मुझे तो सारी उम्र से काम करने की आदत है। गरीब घर की बेटी थी गरीब घर की बहू बनी। बच्चों का भविष्य सॅंवारने के  लिए हाड़ तोड़ मेहनत की जिससे बच्चों को उनकी मंजिल तक पहुंचा सकूं। मेरी मेहनत और बच्चों की लगन रंग लाई अब मैं अमीर और सफल बच्चों की माॅं हूॅं। ईश्वर की बहुत कृपा है तीनों बच्चे बहुत प्यार करते हैं सम्मान करते हैं और संस्कारी भी हैं। आजकल की हवा उनको छू तक नहीं गई लेकिन मेरे संस्कार तो दूसरे लोग भुगत रहे हैं। मुझे तो दूसरे लोगों के दिए संस्कारों को भुगतना पड़ रहा है। बहू के साथ कई बार रह चुकी  हूॅं। शादी के दो महीने बाद इसी उद्देश्य से बहू के साथ गई थी कि दूसरे गमले का पौधा है प्यार की खाद पानी से पौधे को अपने गमले में ढाल लूंगी। मैं जब दूसरे के घरों में यह समस्या  देखती थी  तो समाज में समरसता उत्पन्न करने के लिए , सास बहू के रिश्ते को सुधारने के लिए यही  कहा करती थी कि बहू को बेटी बना लो क्योंकि जब सास बहू पर अत्याचार करेगी तो वह युवती है सहन कर जाएगी लेकिन जब वह बदले में अत्याचार करेगी तुम सहन नहीं कर पाओगे। तुम उस समय वृद्ध है और लाचार होंगे। बहू के साथ प्यार से रहना सभी के लिए हितकर है उसके लिए भी और तुम्हारे लिए भी। क्योंकि बेटियां तो अपने घर की हो जाती हैं। घर की लक्ष्मी तो बहू ही होती है। लेकिन शायद संघर्ष अनवरत रहता है जैसा मनुष्य बोलता है ईश्वर उसी रूप में उसकी परीक्षा भी लेता है। शायद मेरी भी अब परीक्षा ही थी। मानवीय रिश्तो में ताल मेल रहता ही नहीं। सिनेमा, कवि, लेखक, और टीवी सीरियलों ने बहु को सम्मान दिला दिया था। अब उल्टा हो गया था सास तो माॅं बनने का उदाहरण पेश कर रही थी लेकिन बहू उसी पुरानी सास को याद  रखकर मन में द्वेष भाव धारण करके ही मायके से आती है। पुरानी सास मारती थी, पीटती थी, ताने देती थी मानसिक प्रताड़ना देती थी, कभी -कभी भी जला देती थी। सास के  इसी व्यवहार के कारण  दहेज उत्पीड़न कानून बना था। उस समय सास के अत्याचारों को याद करके लड़कियों को शादी करने से डर लगता था लेकिन  अब बात पलट गई है लेकिन आंकड़ा वही छत्तीस का है। अब सास को डर लगता है पता नहीं कैसी बहू आएगी। समाज में संतुलन नहीं है। पीड़ित बदल गया है पीड़ा वहीं है।अब वृद्ध का उत्पीड़न किया जाता है लेकिन उनके लिए कोई कानून नहीं बना। बेटे बेटी से खर्च लेने के लिए कानून है लेकिन मानसिक उत्पीड़न के लिए कोई कानून नहीं। 

    बहु बड़ा  उपेक्षित व्यवहार करती है। उसकी भाषा में विनम्रता नहीं आदेश होता है। बात-बात पर टोका टाकी रहती है।ये मत करो,वो मत करो,यहाॅं मत बैठो वहाॅं मत बैठो। पाॅंव छूने तो बहुत दूर की बात है नमस्ते करने में भी उसे  अपना अपमान महसूस होता है। बेटे को उसने आने के दो तीन महीने बाद ही धराशाई कर दिया था। हमारे साथ थोड़े समय साथ रहना स्वीकार नहीं था। बेटे के साथ बेंगलुरु में अकेली रहती थी फिर भी नींद की गोलियां खा ली थी। अकेला बेटा जहाॅं जान पहचान के लोग केवल ऑफिस के दोस्त थे। बहू को न जाने कैसे-कैसे लिफ्ट से नीचे ले गया और कैब मॅंगा कर अस्पताल ले गया। कानून  की निगाहों में हमेशा के लिए दोषी होने का कलंक लग गया। बहू के इस कृत्य से क्षुब्ध होकर माता-पिता तलाक लेने पर अड़ गए थे लेकिन बेटे की नैतिकता ने इस कार्य  को भी स्वीकार नहीं किया।  ऐसा कांड करने का उद्देश्य केवल पूरे ससुराल पक्ष पर दबाव बनाना था। बेटा एक ही था। मोह कहो या प्यार माता-पिता झुक गए। बहू अपनी सत्ता  पाकर खुश थी।  पूरा परिवार उसके व्यवहार से खिन्न और  डरा-डरा रहता था।  दोनों बेटियाॅं भाई से मिलने नहीं आती थी।  प्रारंभ में एक दो बार आई। व्यवहार से खिन्न होकर उन्होंने आना ही छोड़ दिया। फोन पर भी बहू किसी से बातें नहीं करती थी। कभी  बाथरूम  जाना है, कभी किचन का काम पड़ा है, कभी बाजार जाना है कहकर फोन बंद कर देती थी। माता-पिता मोह के वशीभूत  होकर चले जाते थे। इकलौते बेटे का मोह छोड़ नहीं पाते थे। वह  ससुर को भी आदेश देती थी।” पापा चाय बना दो।” बेटे ने सर्विस भी इसीलिए नहीं करने दी थी कि  पैसे के घमंड में और ज्यादा सिर पर चढ़ जाएगी लेकिन उसके व्यवहार में कोई भी फर्क नहीं था। वास्तव में व्यवहार स्वभाव पर निर्भर करता है। कमाना या न कमाना अच्छे-बुरे व्यवहार मापने का पैमाना नहीं। 

   सास के आ जाने पर वह रोज शाम को छह बजे घर से निकल जाती रात के नौ बजे घर आती। श्यामला बेचारी एक डेढ़  घंटा इंतजार करने के उपरांत खाना बना देती। वैसे वह कुछ न कुछ काम में व्यस्त रहती। मशीन में से कपड़े निकाल कर सुखाना, कपड़ों की तह बनानी, बच्चों को खाना देना।  वैसे तो श्यामला  के जाने पर कोई न कोई मेड काम छोड़ देती थी या छुट्टियों पर चली जाती थीं। 

    सर्विस करने से पहले भी मेड दिन में नाश्ता बनाकर जाती तो परोसकर भी या तो बेटा देता था यह स्वयं लेना पड़ता था। .छोटे  पोते के पैदा होने के  समय श्यामला अमेरिका गई थी वहाॅं का व्यवहार याद करके श्यामला की आंखों में पानी आ गया। विदेश में काम करने के लिए जल्दी से नौकर नहीं मिलते।  मिलते हैं तो उनको वही के मानकों के अनुसार वेतन देना पड़ता है जो की सभी के लिए संभव नहीं है। बेटे की पुकार पर दोनों पति पत्नी गए थे लेकिन पति बाजार के काम के लिए और पत्नी घर के काम के लिए नौकर बन गए। बेटे से कहने का कोई लाभ नहीं था। बेटा स्वयं नौकरी में हाजिर रहता था। घर का सारा काम करना, बड़े पोते को स्कूल ले जाना , स्कूल से लाना, पार्क में खेलने के लिए ले जाना। काम करते-करते कमर टेढ़ी हो जाती। श्यामला नैतिक दायित्व समझकर अपना काम कर कर्तव्य पूरा कर रही थी। एक दिन शाम का खाना बनाने में थोड़ा सा विलंब हो गया कुछ भारतीय दोस्त बच्चे को देखने के लिए आए थे। बहू ने बड़ी जोर से डाॅंट लगाई। पति तो पहले ही बहू की व्यवहार से क्षुब्ध होकर जबरदस्ती जिद करके तीन माह बाद ही भारत लौट आए थे।  बेचारी श्यामला किंकर्तव्यविमूढ़  होकर यह भी नहीं कर पाई। अतः मन की बात कहने के लिए पति विजेंद्र भी पास में नहीं थे लेकिन आज सब्र का पैमाना झलक आया था। बहू का उग्र रूप देखकर श्यामला ने तुरंत काम जहाॅं  का तहाॅं छोड़ दिया।  बहू निकिता को एहसास हो गया “क्या हो गया मम्मी “?, पापा की याद आ रही है।, बताओ तो क्या हुआ ?” कई बार दोहराने पर श्यामला ने मन की गाॅंठ खोल दी। “ बात तुम्हारी सही थी  निकिता ! खाने को देर हो गई थी क्योंकि शिवम को स्कूल साढ़े सात बजे जाना पड़ता है लेकिन कहने का तरीका बहुत गलत था। मैं तुम्हारी माॅं जैसी हूॅं।” सॉरी मम्मी” कह कर उसने बात को समाप्त कर दिया।

 विजेंद्र देव ने हाथ पकड़ कर समझाया “आजकल का माहौल खराब हो गया है वृद्धों की जगह या तो वृद्ध आश्रम में है या बस सहन करने में भलाई है। हमारी बहू ने हमें वृद्ध आश्रम नहीं पहुंचा इसी के लिए धन्यवाद।” “ हां सही कहते हो जी हम तो उसे पीढ़ी के लोग हैं जिन्होंने पहले बहू के रूप में सास के अत्याचार सहे लेकिन उस समय इतनी पीड़ा नहीं हुई थी क्योंकि वह सास थी। सम्मान तो  करना ही था पद में बड़ी थी लेकिन सास के रूप में भी पद दलित उपेक्षित और अपमानित हूॅं। मेरा जीवन सैंडविच है एक परत सास के रूप में दूसरी परत आधुनिक बहू के रूप में। बीच में भरा हुआ मसाला मैं।” कहकर श्यामला ने साड़ी के पल्लू से आंखों में आए हुए अश्रु को पूछ लिया और मानसिक रूप से बेंगलुरु जाने की तैयारी में जुट गई क्योंकि कहावत है ना कि मूल से ज्यादा प्यारा ब्याज होता है और ब्याज को हमारे साथ की आवश्यकता है। बेटा भी बाईस दिन बाद अमेरिका जा रहा है। परिवार स्कूल की परीक्षा समाप्त होने के पर अमेरिका जाएगा। जितने समय तक बहू अकेली रहेगी उसके पास रहना तो पड़ेगा ही। वास्तव में तो शिव ने एक बार हलाहल पिया होगा साधारण व्यक्ति को तो रोज जहर का घूंट पीना पड़ता है घर में शांति बनाए रखने के लिए। यहाॅं भी शक्ति का सिद्धांत ही चलता है जो विनम्र है या कहो संस्कारी है उसे अपने आप को समर्पित करना पड़ता है और आज के माता-पिता अपनी बेटी को संस्कार नहीं शासन का सिद्धांत सिखाते हैं शायद महिला सशक्तिकरण के नाम पर। श्यामला सैंडविच लेकर पति के साथ चाय पीने बैठ गई और बार-बार नेत्रों में आए आंसू पोंछ रही थी। मन ही मन सोच रही थी हाॅं मैं सैंडविच हूॅं,  हाॅं मैं सैंडविच हूॅं।


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