Sudha Sharma

Inspirational

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Sudha Sharma

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डर

डर

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    शालिनी अपने पति विजयवीर और बिटिया दिशा के साथ कार से मेरठ से लखनऊ लौटने लिए चल पड़ी। कार बड़ी स्पीड से हाई-वे पर दौड़ रही थी। सभी चुपचाप और गंभीर मुद्रा में थे जैसे एक दूसरे से नितान्त अपरिचित हो लेकिन सभी के मन में विचारों का तूफान उठ रहा था। झकझोर देने वाला तूफान। कार की जितनी स्पीड थी उससे भी तेज गति से शालिनी का मन दौड़ रहा था।  दिल था कि कभी मेरठ में पहुंच जाता कभी उछलकर लखनऊ के बाजार में गलियों में निर उद्देश्य भटकने लगता। भटकाव की गली  इतनी लंबी कि  ओर न छोर। आज से एक वर्ष पहले ही बेटी का विवाह बड़े अरमानों से मेरठ के एक व्यापारी से किया था।  फैक्ट्री अच्छी बड़ी थी। व्यापार काफी ऊंचाई पर था।  घर पूर्ण रूप से धन धान्य से परिपूर्ण व सम्पन्न  था। देखने में लड़का सुंदर सुशील और बहुत सभ्य था। जिसे  पाकार कोई भी कन्या खुशी में झूम सकती थी और ससुराल पक्ष वाले गर्व कर सकते थे। रिश्ता करते समय यही सब तो देखा जा सकता था। अमृत भरे घड़े के मुंह पर कितना विष लगा हुआ है इसकी पहचान करना तो नितांत असंभव था। आसपास इंक्वारी करने पर भी निश्चित हो गया कि लड़का हीरा है लेकिन आजकल वास्तव में किसी को कुछ भी पता नहीं होता । आजकल मोबाइल के जमाने में किसी को किसी के बारे में क्या पता और वैसे भी पॉश कॉलोनी में पड़ोसी एक दूसरे को नहीं जानते फिर पड़ोस में इंक्वारी करने का कोई औचित्य फलीभूत नहीं होता । शादी के चार माह बाद ही तीन महीने की गर्भवती बेटी मेरठ से अपने घर वापस आ गई। माता-पिता ने और स्वयं बिटिया ने अपने स्तर पर  गृहस्थी की इमारत को बचाए रखने का भरपूर प्रयास किया। समझौते का प्रयास करते-करते बेटी ने एक सुंदर कन्या को जन्म दे दिया । इस अंतराल में दो बार अपने रिश्तेदारों , परिजनों  को मध्यस्थ बनाकर गृहस्थी के महल को सजाने संवारने का भी भरसक प्रयास किया लेकिन जब नींव ही खोखली हो, भुरभुरी  मिट्टी की बनी हो तो भवन कैसे टिक सकता है। चरमरा कर गिर जाता है। 

 प्रथम बच्चे के अवतरण पर भी ससुराल से कोई नहीं आया था । सवा माह बाद हवन के अवसर पर निमंत्रण देने पर भी केवल बेटी की सास और पति आये थे । हृदय में न कोई उत्साह था न प्रसन्नता । दो माह तक भी जब बेटी को ससुराल ले जाने के लिए चहल कदमी नहीं हुई तब शालिनी ने अपने पति के साथ जाकर बेटी के ससुराल में संपर्क किया । कहावत है न कि पाप कुएं में बडकर भी करो तो वहां भी बुलबुले उठ जाते हैं । किसी व्यक्ति से पता चला कि लड़का नवल किशोर किसी के साथ लिव इन रिलेशनशिप में पिछले तीन सालों से रहता है और अब तो उसके एक बेटा भी पैदा हो चुका है । लड़की मुस्लिम है। सबूत पक्के थे। अविश्वास का प्रश्न ही नहीं उठता था। ससुराल वालों के सामने इस घटना का जिक्र करने पर उनकी चुप्पी ने सच्चाई पर वास्तविकता की मुहर लगा दी। इस घटना के कारण शालिनी के पैरों तले की जमीन खिसक गई । उसे समझ नहीं आ रहा था कि दोष किसे दें।  ऐसे मामलों में अक्सर दोष माता-पिता का ही होता है जो अपने बिगड़े बेटे को सुधारने का माध्यम एक अनजान लड़की को समझकर उसे मोहरा बना लेते हैं और उसका जीवन बर्बाद कर देते हैं।

       अब ससुराल में जाने से दिशा ने साफ मना कर दिया। आखिर उसके मान-सम्मान का भी सवाल था। घर में आफत मची हुई थी उसकी  आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। एक साल के बाद ही वैवाहिक जीवन का पटाक्षेप हो गया । आधुनिकता की दौड़ में तो विवाह एक जीवन भी ठहर जाए तो ईश्वर को धन्यवाद सात जन्म की बात करना तो मूर्खता है। संस्कृति किस मोड़ पर आकर खड़ी है पता नहीं। महिला सशक्तिकरण उपहास लगने लगा है। क्या विवाह कोर्ट कचहरी में चक्कर लगाने के लिए किया जाता है। विवाह अब पावन कृत्य नहीं केवल जुआ बन गया है। जिसमें जीत कम हार की संभावना अधिक हो गई है।

लड़की की माता शालिनी स्वयं सरकारी वकील थी पति भी कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से सफल वकील के रूप में वकालत करते थे लेकिन अपने घर के हित में फैसला लेने में असमर्थ थे । बाई गेमिंग का केस डालना चाहिए। लड़के को भरपूर सजा मिल सकती थी और उस मुस्लिम लड़की का जीवन भी प्रभावित होगा लेकिन सजा देने के लिए उसका विवाह सिद्ध करना बड़ा मुश्किल था क्योंकि विवाह के सबूत  से ही उस पर कोई आरोप सिद्ध किया जा सकता था। हमारे न्याय के पावन सर्वोच्च मंदिर सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को वैध घोषित कर दिया था। इतना ही नहीं इस रिलेशनशिप से  जो औलाद पैदा होगी उसका पिता की संपत्ति में पूर्ण अधिकार होगा घोषित कर दिया था। हां साथ में रहने वाले पार्टनर का कोई अधिकार नहीं होगा। इस प्रकार से लिव इन रिलेशनशिप पूर्ण रूप से कानूनी वैध था इस  विधि से भी उसे लड़के को फंसाया नहीं जा सकता था । दहेज के केस में पूरे परिवार को फंसाया जा सकता है लेकिन अपराध चलता है खरगोश की चाल और न्याय रेंगता है चींटी की चाल । न्याय मिलने में कितना समय लग जाए

कुछ कहा नहीं जा सकता।

  इस कानून ने भारतीय संस्कृति और भारतीय समाज को बिल्कुल धराशायी कर दिया था। अप्रत्यक्ष रूप से लिव इन रिलेशनशिप को विवाह के समान मान्यता ही प्रदान कर दी थी।  हिंदू रीति रिवाज से हुई शादी कानून के आधार पर तब तक वैध होती है जब तक की पति पत्नी में तलाक  नहीं हो जाता और तलाक के बिना दूसरी शादी नहीं की जा सकती  लेकिन लिव इन रिलेशन शिप पर कुछ भी प्रतिबंध नहीं  था । सरकारी वकील होने के बाद भी शालिनी और उसका पति बाई गेमिंग  का मुकदमा करने के पक्ष में नहीं थे उनका तर्क था कि मुकदमे में न जाने कितना समय बर्बाद हो जाएगा कुछ कह नहीं सकते । वह तो बर्बाद होगा ही लेकिन हम उससे भी ज्यादा बर्बाद हो जाएंगे । बेटी की दूसरी शादी करने में भी अड़चन होगी जब तक न्याय मिलेगा तब तक बेटी की शादी की उम्र निकल जाएगी । इससे अच्छा है आपसी सहमति से अलग हो जाए और तलाक ले लें। उससे कुछ वापस लेना ना उसे कुछ देना। कानून बहुत पेचीदा है न्याय पाने में बरसों निकल जाते हैं न्याय तो मिल जाता है लेकिन आदमी का जीवन चुकता हो जाता है। और एक साल पहले हुई बिटिया की शादी को  तलाक प्रक्रिया के लिए कोर्ट में न जाकर आपसी सहमति से समझौता कर इस रिश्ते को हमेशा हमेशा के लिए दफन करके वापस अपने घर लौट आए। निर्मोही और अनैतिक पिता ने बिटिया को अपने पास रखने का एक बार भी प्रश्न नहीं उठाया था। सोच कर शालिनी की आंखों से दो आंसू लुढ़क पड़े। उसके मन में एक ही प्रश्न बार-बार अपना सर उठा रहा था क्या भारतीय संस्कृति आधुनिकता के चक्रव्यूह में इसी प्रकार कदम कदम पर लहू लुहान होकर पल प्रतिपल घुट घुटकर, सिसक सिसक कर मर जाएगी।


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