साया
साया
गुलाबी ठंड उतर आयी थी। रात का सन्नाटा पसरा था। सन्नाटे को हल्का काटती पीछे बरामदे की सांकल तीन बार बजी। "शगुन" ! माँ के इंतजार करते दिल में कुछ ठंडी फुहारे सी पड़ी। बरामदे से आती रोशनी से माँ ने दीवार घड़ी पर नजर दौड़ायी, आँखो के कोरो से दीवानजी की तरफ की आहट परखी। फिर दबे पाँव जा बरामदे का दरवाजा ठेला।
ढलती उम्र ने दीवानजी की नींद को कच्चा कर दिया था। इतनी रात गये जवान बेटा घर के बाहर था,नींद वैसे ही आँखो से दूर ठिठकी रहती। सांकल की आवाज उनके कानो में भी घुली थी।
"इतनी रात गये साहबजादे कहाँ से आ रहे हैं? आवारो की जमात में शुमार हो गये लगता हैं।" गुस्से में शब्दो के कोड़े बरसाते, हाथ की चपत बन शगुन की पीठ लाल करते जाते।
इस उफनती नदी के प्रचंड प्रवाह में टुटते किनारो को माँ बेबसी से देखती। जब ये आवेग थमता तो पीछे रह जाती शगुन की नीली पड़ चुकी पीठ और माँ का टुटा मन। पिता का फतवा आता,"आज इस लड़के के आगे खाने की थाली न देखूँ।"
लड़का भी पेट की नजरबंदी कर लेता। माँ की ममता, आँचल से ढकी थाली ला बेटे के आगे मनूहार पर उतर आती।पर बेटे की नजरबंदी डटी रहती। माँ की आँखे बरसती और स्वर रूधं जाता," क्यों करता हैं रे ये सब!! खाना खा ले। तुझे मालूम हैं न, तेरे मुँह में निवाला जाता हैं तभी मैं खाती हूँ। तु नहीं खायेगा तो मेरा भी उपास हैं। " शगुन जानता हैं, माँ उसके बिना एक कौर नहीं उतारती। अपनी भरी आँखो में लटकते आँसूओ को जबरन पीछे ठेलता वो माँ और अपने हलक में खाना डालता जाता हैं। माँ की उगलियों का लेप उसकी पीठ में चंदन सी ठंडक दे जाता हैं।
पिता के प्रति उसके मन में ज्वाला धधकती हैं। पिता का तानाशाही रवैया शगुन के मन में विद्रोह के बीज बो चुका हैं। जो समय के साथ बड़ा हो रहा हैं। माँ भविष्य के तुफान को भाँप चुकी हैं। नहीं जानती ये किसकी आहूति ले थमेगा।
उस रात माँ बेटे को अपने आँचल में लिए देर तक उसे थपकी देती रही। शगुन की आँखो के आँसू उसकी आँखो के आस-पास ही सूख चुके हैं।
हर तीसरे दिन बेटे की छिलती पीठ माँ को असहनीय दर्द की सौगात देते हैं। आँखो ही आँखो में बीतती रात माँ के मन में एक सोच पैदा कर रहे हैं। "मेरे बाद मेरे बेटे को आँचल की ठंडी छाँव देगा कौन ?"
उस रात जब माँ की आँखे नींद से झपकने लगती हैं। तभी एक साया बेटे के बिस्तर की ओर बढ़ता दिखता हैं। माँ हतप्रभ सी हैं। साया आगे बढ़ बेटे को चादर उढ़ाता हैं। बेटे के सिर पर हाथ फेरते साया फुसफुसा उठता हैं," तुम मुझसे नफरत भले ही करो पर जीवन में मुझसे कही ऊँची जगह बना पाओ तो मुझसे ज्यादा खुशी किसी को नहीं होगी।"