STORYMIRROR

anju nigam

Children Stories

4  

anju nigam

Children Stories

मंथन

मंथन

3 mins
586


कृति ने खाने का डिब्बा खोला ही था कि मोबॉइल घनघना उठा| स्क्रीन में जो नाम चमका उसे देख कृति का मन कसैला हो उठा| मन किया कि बजने दे| पर खटका ये भी लगा जाने कौन सी जरूरी बात हैं जो इतने दिनो बाद फोन किया|

"नमस्ते बुआ,कैसी है?" वही औपचारिकता|

"ठीक ही हूँ बिट्टो| तूने तो जैसे बात न करने की कसम खाई है| गोद में खिलाया है तुझे|" बुआ अपनी ममता की लंबी फेहरिस्त गिनाने लगी कि कृति ने टोक दिया"बुआ बाद में बात करती हूँ न| अभी खाना खा रही हूँ|"

"हाँ,खा ले खाना| पर कल मुम्बई आकर सीधे घर आना है| कोई तीन पाँच नहीं|"बुआ ने पूरे अधिकार से कहा|

"उफ्फ, मैंने माँ-पापा से मना किया था,किसी को मेरे जाने की खबर मत देना| " मगर वो जितना बुआ को जानती थी,उसे अहसास था कि बुआ बातो को खोद निकालने में कितनी माहिर है| एक अपने बच्चो की ओर से ही आँखे मुंदी है|

 बुआ के घर में काफी तब्दीली आ गई थी| वॉल टू वॉल कारपेट, महँगा फर्नीचर, बढ़िया इटेलियन क्राकरी| रसोई से लेकर कमरो में लेटेस्ट गेजेट्स| बाहर के पैसो का कमाल|उसका मन फिर कसैला हो गया|

   दोनो दीदी भी वही धूनी रमाये बैठी थी|"अरे!!!दोनो का वहाँ मन नहीं लगता इसलिये यही आ जाती है|" बुआ की आवाज में अतिरिक्त मान की परत चढ़ी थी|

बुआ की बहू स्नेहिल मशीन सी बनी काम में लगी थी|" कितना झटक गयी है| शादी के समय तो नजरे ही नहीं हटती थी|" कृति का मन उद्धेलित था|

"भाभी कैसी हो गई है"? कृति के मन के भाव उभर आये|

"मुझे क्या पता था कि वैभव मेरे कहे का भी मान नहीं रखेगा|" बुआ आहत सी बोली|

"मैंने ये विवाह न करने के लिए आपको कितना रोका पर आपको ही दंभ हो गया कि ये अपूर्व सुदंरी आ वैभव को अपनी ओर मोड़ लेगी| एक मासूम का तो जीवन बरबाद हो ही गया न|आपको एक औरत होकर भी स्नेहिल का दर्द समझ नहीं आया?' कृति तैश में आ गई|

 बुआ सन्न थी| "मेरी ही गोद में खेलने वाली,आज ये रुप दिखा रही है|"

  फिर कृति वहाँ और रुक न सकी| बुआ ने बहुत रोका पर कृति को जब ये पता लगा कि बुआ को मालूम था कि वैभव दूसरा विवाह कर चुका है तो अब किस सहारे उस मासूम को अपने साथ बांधे है| समय इतना आगे निकल चुका है और बुआ की सोच में अभी तक वही गंवई ठेठपना बैठा है|

   कृति के इस तरह चले जाने के बाद से ही बुआ आत्मचिंतन में बैठी है| देर रात तक उनका ये आत्म मंथन चलता है| अपनी दो बेटियों के साथ एक तीसरा उदास सा चेहरा बार बार उनके मन को मंथ रहा है| और दिमाग में कृति के शब्द|

 सुबह उठ अपने जरूरी काम निपटा रही है|मन में मंथन हो रहा है| इस बार हर बात देख परख कर ही आगे बढ़ूगी| वे अपना बैग उठा दफ्तर चल देती है| मैरिज ब्यूरो के|

 


Rate this content
Log in