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anju nigam

Others

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तड़का

तड़का

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ट्रेन रफ्तार पकड़ चुकी थी। सुधा और रमेश कानपुर से कलकत्ता जा रहे थे। सुधा समान जमाने लगी। तभी सामने वाली बर्थ में एक नयी उमर का लड़का आ कर बैठ गया। कपड़े और शक्ल तो बता रहे थे कि किसी अच्छे घर की पैदाइश थी पर फैशन का मारा था। कंधे तक झूलते बाल, कलाई में रंग-बिरंगे धागे ,एक कान में लटकती बाली।

"इस फिरंगी के साथ इतना लंबा रास्ता पार करना पड़ेगा!!! ये नयी पीढ़ी जा कहाँ रही है?" सुधा इन सवालो के जवाब में थोड़ी देर उलझी रही।

 उधर कानपुर से चलते समय ही रमेश जी की तबीयत थोड़ी ढीली थी। सुधा ने कहा भी,"टिकट कैंसिल करवा देते हैं पहले आपके पूरे टेस्ट करवा लेते हैं ,सफर भी तो लंबा है।"

"इतने पैसे बेवजह जाया करने से क्या फायदा?वैसे भी यहाँ के फैमिली डाक्टर अब रहे नहीं। कलकत्ता पहुँच कर पहला काम यही करते हैं।"

 दोनो ने रात को हल्का ही खाना लिया।सामने बैठा लड़का चिप्स कुतरता रहा।टी.टी के आने पर ही पता चला कि सामने बैठे लड़के का नाम केशव है।

 रात में रमेशजी की तबीयत फिर खराब होने लगी।सीने में दर्द और उल्टी सा महसूस होता रहा। वही लड़का आगे बढ़ पेपर प्लेट का दोना बना उनके सामने खड़ा हो गया। "उल्टी महसूस हो तो इसी में कर लीजिएगा ,मैं फेंक आऊँगा।" बिना हिचक के उसने सहजता से कहा।

रमेशजी की तबीयत बिगड़ने लगी तो यही सोचा गया कि अगले स्टेशन पर ही उतर लिया जायेगा। तुरंत चिकित्सा सुविधा मिलनी ही होगी। पशोपेश बहुत थी। रात का समय और अंजान शहर।तब केशव ही फरिश्ता बन आया। सफर बीच में ही छोड़ वो भी उनके साथ ही उतर दया.सुधा ग्लानि से भर बोली,"बेटा, हमारी वजह से आगे का सफर क्यों छोड़ते हो।"

"आगे का सफर कल या परसो भी पूरा हो जायेगा। मगर अभी तो आप लोगो को मेरी ज्यादा जरूरत है। एक अंजान शहर में आप अकेले सब कैसे संभाल पायेंगी!! मेरे माँ-पापा होते, तो क्या यूँ अकेले छोड़ देता?"कहता वो व्हील चेयर लाने आगे बढ़ गया।





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