अकेला चना...

अकेला चना...

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"माँ चार दिन से मेरी एक जुराब और चप्पले नहीं मिल रही।" सुबह बेटे ने जब कहा तो मैंने भी बेटे को आढ़े हाथो लिया," बेटे जी, आप भी तो घर को कबूतर खाना समझते हैं। आये सामान फेंका और पसर गये बिस्तर पर। मन हुआ तो खाया घर का, नहीं तो "जुमेटो","स्वीगी"तो हैं हीं। घर न हुआ सराय खाना हो गया। परसों रजाई के ऊपर खुला ब्लेड मिला। दाढ़ी निकल आयी पर अक्ल वही की वही। "

"इसलिए आपको नहीं बोलता। चीज मिलती नहीं आपका लेक्चर मिल जाता हैं।"

"बेटा, सुधरते तो तुम फिर भी नहीं। जरा हिलाओ अपने शरीर को। देखो बिस्तर के नीचे कही दुबकी होगी।"

"माँ मुझे कॉलेज जाना हैं। आप ही देख लो न।"

"सही हैं। तुम लोगो को बिना पैसे की नौकरानी मिली हैं। हांक लो जितना।"

"अरे!! सुबह-सुबह ये एफ-एम कहाँ से बजने लगा!!!" पति ने माहौल को थोड़ा और गमगीन बनाया।

"कम तो आप भी नहीं। घर में पोछा लगा नहीं। और आपका घुमना शुरू। सारे घर में पैरो के निशान छप जाते हैं।"

"तो क्या पैर सिर पर लेकर घूमूं।'ये तीर छोड़ ऑफ़िस के लिए निकल गये।"

मैं बड़बड़ाती बाई का इंतजार करने लगी। बड़े अदब से साड़ी का पल्ला कमर में खोंसे "मैडम" ग्यारह बजे हाजिर हुई।

"क्यों, आज फिर इतनी देर लगा दी।आधा दिन तो यूँ ही निकल जाता हैं। कही जाना चाहो तो बंध जाती हूँ।"

 बाई को कोई फर्क नहीं पड़ा। उसने झाड़ू उठाया और ज़मीन पर फेरने के लिए चल दी।

"इधर दे तो झाड़ू!!" कह उसके हाथ से झाड़ू ले ये दिखाने के लिए कि देख पलंग और सोफे के नीचे कितनी गंदगी हैं, जो झाड़ू ले बुहारा तो धूल से अटा मोजा और चप्पल दोनो ने अपनी शक्ल एक साथ दिखाई।

 "ये देख भइया चार दिन से चप्पल ढूंढ रहा था। इसका मतलब पंलग के नीचे हिस्से ने चार दिन से झाड़ू के दर्शन नहीं किये।" मेरे इतने प्रवचन के दौरान बाई मजे से कमर में हाथ रखे खड़ी रही।

मैं अपनी रौ में बहे जा रही थी,"देख, कितना कुड़ा निकल रहा है।"

बाई उसी मुद्रा में थोड़ी देर खड़ी रही। फिर बोली" मालूम होता बाईजी कि आज "सफाई इंस्पेक्सन" होना हैं तो सारे घर निपटा के आती। खाली-पीली इतना टाईम खोटी किया।"

 

 


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