#सामाजिक सरोकार
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मानव एक सामाजिक प्राणी है और वह सामाजिक प्रणाली का सूत्रधार भी है, अतः अपने समाज के उत्थान -पतन लिए प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार रहता है।
अगर हम बात करें सामाजिक सरोकार के तो समाज में व्याप्त ज्वलंत समस्याओं का उद्गम व समाज में व्याप्त समस्या के समाधान की जिम्मेदारी प्रत्येक व्यक्ति की मानी जानी चाहिए। चाहे बरसों से चली आ रही रूढ़िवादिता हो या फिर राजनीतिक भ्रष्टाचार , आर्थिक असमानताएं क्यों ना हो। एक स्वस्थ समाज की स्थापना के लिए समाज का शैक्षिक स्तर उच्च होना चाहिए ताकि व्यक्ति विशेष समय के अनुसार अपनी रूढ़िवादिता मे बदलाव ला सके, आर्थिक रूप से संसाधनों का शोधन कर समाज की आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सके, उच्च कोटि राजनीतिज्ञों के द्वारा देश का प्रशासनिक विकास कर सके।
हमारे परिवार में स्वस्थ समाज के कई गुण छिपे हुए हैं। हर कोई अपने बच्चों को बचपन से ही समाज में व्याप्त कुरीतियों को तथा घर में अपनी जीवनसंगिनी बहन, माता घर के बड़े बुजुर्ग तथा छोटों के आदर सत्कार का पाठ पढ़ाएं व स्वयं भी इसका अनुसरण करें तो हम कई सामाजिक बुराइयों से बहुत जल्दी छुटकारा पा सकते हैं जैसे लिंक भेद, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा आदि।
हर कोई समस्या की बात अवश्य करता है पर समाधान को खोजने की कोशिश नहीं, अगर हम सामाजिक सरोकार की बात कर रहे हैं यानी कि समाजिक जागरूकता तो हमें समाज के जड़ यानी कि अपने परिवार से इस की शुरुआत करनी चाहिए।
आज की आधुनिकता में व्यक्ति के पास ना अपने बच्चों व ना अपने बड़े बुजुर्गों के लिए समय है और इन दोनों की अनदेखी समाज में व्याप्त सामाजिक बुराइयों का एक कारण बन गई हैं। बच्चे अच्छे संस्कारों से वंचित हो रहे हैं और बड़े बुजुर्गों अच्छी देखभाल से। हमारे संस्कार ही हमें अन्य जीवो से अलग कर एक सामाजिक प्राणी बनाते हैं। अनीता के पीछे भागते हुए परिवार समाज के लिए एक अभिशाप से सिद्ध हो रहे हैं, सामाजिक बुराइयों का बीज हम अपने परिवारों में बो रहे हैं, जिस कारण से समाज में बड़ों का अनादर, महिलाओं का शोषण, चोरी डकैती भ्रष्टाचार आदि ज्वलंत समस्याएं एक बृहद वृक्ष के रूप में फैल रही हैं।
सामाजिक सरोकार रखने के लिए हमें अपने बच्चों को ज्ञान का प्रकाश देना चाहिए ताकि कई सदियों से चली आ रही रूढ़िवादिता का अंत हो सके तथा अच्छे संस्कारों से पहले बड़े बच्चे अपने बड़ों का आदर सत्कार करें कर सके और उन्हें अपने परिवार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्तंभ समझे ऐसी समझ कभी भी किसी बुजुर्ग को अपने परिवार व घर से बेघर नहीं कर सकती। घर में रहने वाली महिलाओं के साथ हमारा बर्ताव हमारे बच्चों को विरासत में मिलता है अच्छे संस्कार, घर का अनुशासन बच्चों को विशेष रूप से अपने घर की महिलाओं के आदर सत्कार का पाठ पढ़ाते हैं जिससे हम समाज में व्याप्त महिला विरोधी गतिविधियों को काफी हद तक समाप्त कर सकते हैं।
एक शिक्षित बालक अपने ज्ञान से एक अच्छा कारोबारी, राजनीतिक सामाजिक सुधारक बन सकता है और वह एक समाज के तीनों स्तंभ सामाजिक, आर्थिक ,राजनीतिक पहलुओं को अच्छे से समझ कर सुचारू रूप से चलाने में सक्षम हो सकता है। अपनी बौद्धिक कुशलता से प्रत्येक व्यक्ति अपने ज्ञान ,संस्कार जो उसे अपने परिवार से मिले हैं उसकी मदद से सामाजिक समस्याओं के साथ-साथ आर्थिक व राजनीतिक समस्याओं का निवारण करने में सक्षम हो सकता है इस तरह से पूरा समाज एक शिक्षित उच्च विचार वाला बनना नामुमकिन नहीं है।
हम अपने देश व समाज में व्याप्त संसाधनों का उपयोग कुशलता से करके अपनी कृषि क्षेत्र के साथ साथ औद्योगिक क्षेत्र का विकास कर कई प्रकार की रोजगार उत्पन्न कर सकते हैं जिससे हमारा समाज आत्मनिर्भर बन बेरोजगारी जैसी समस्याओं से निपट सकता है। शिक्षित समाज जनसंख्या के दुष्प्रभाव को समझ कर उस पर नियंत्रण कर सकता है जिससे अन्य सामाजिक बुराइयां जैसे चोरी चकारी, दहेज प्रथा, आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार आदि को बहुत हद तक नियंत्रित कर सकता है।
लिंग भेदभाव, जातिवाद, सांप्रदायिकता ,आर्थिक समानता आदि की जड़ अज्ञानता है और इसी अज्ञानता का फायदा कुछ विशेष लोग अपनाकर अपनी रोटियां सेकते हैं। जिससे राजनीतिक उथल-पुथल समाज में उत्पन्न होती है। अच्छी सोच तथा शिक्षा राजनीति में भी बदलाव ला सकती है, प्रेम- सद्भावना का विचार समाज में व्याप्त संप्रदायिकता को जड़ से समाप्त कर समाज में एक स्वस्थ, तथा शांति का वातावरण स्थापित कर राजनीतिक गंध को साफ करने में सक्षम है।
हम अपनी शिक्षा व अच्छे विचारों के बल पर नई तकनीकी व उपकरणों का विकास कर अपने कृषि प्रधान देश को फिर से सोने की चिड़िया बना सकते हैं। जन जन तक अपने अधिकारों का ज्ञान पहुंच नाम सामाजिक सरोकार के लिए अति आवश्यक है अपने अधिकारों का प्रयोग कर एक व्यक्ति समाज में कई बुराइयों का सामना व समाधान कर सकता है इस प्रकार से अगर हम अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह समझदारी तथा साझेदारी से करें तो समाज अपने आप ही कई समस्याओं से मुक्ति पा सकता है।
सामाजिक सरोकार का पहला चरण हम अपने घर को समझें और अपने घर में एक स्वस्थ वातावरण मैं अपने बच्चों की परवरिश करें तो आने वाले समय में हम आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक कई परेशानियों व बुराइयों से मुक्ति पाकर एक सच्चे सामाजिक प्राणी बन सकते हैं।