STORYMIRROR

Preshit Gajbhiye

Abstract Tragedy

4  

Preshit Gajbhiye

Abstract Tragedy

साल नया होने को आया हैं

साल नया होने को आया हैं

1 min
401

जब कभी साल नया होने को आया हैं। 

दिसंबर ने अक्सर ही मेरा मज़ाक बनाया हैं। 


समेटने में लगा था ग्यारह महीनों से खुदको, 

किसी ने फिर इसी ओर पंखा चलाया है। 


इससे पहले के कोई तारीख तय करो तुम, 

बता दूं मेरे अपनों ने भी मुझे ठुकराया हैं। 


इतने भरोसे में रहा हूं किसी के पहले, 

एक चेहरे ने दुनियां का चेहरा दिखाया हैं। 


मेरी बातें तुम्हें ठंडक दे सकती हैं मगर, 

उन्हीं बातों ने मुझे अंदर से जलाया हैं। 


और ये भी सच हैं कोई नहीं मेरा तुम्हारे बगैर, 

आगे मर्ज़ी तुम्हारी मैंने तो बस अपना सच बताया हैं। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract