साझा दर्द

साझा दर्द

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मेमसाहब, आज फिर साहब से झगड़ा हो गया क्या ?

ये, मरद लोग कभी भी औरत की भावनाओं को नहीं समझ सकते !

अब आप आँसू पोंछो मैं आपके लिये बढ़िया सी चाय बनाती हूँ !

कजली, तेरी पीठ पर ये नील का निशान कैसा ?? क्या आज फिर राजू ने...

छोड़ो न मेमसाहब, ये तो रोज़ की बात है ! कजली, सुन एक कप चाय तेरे लिये भी बना लेना !

खौलती चाय ने दोनों के साझा दर्द महसूस कर लिये थे.....


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