सादगी और अध्यात्म
सादगी और अध्यात्म
*आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सादगी कई मायनों में अच्छी होती है। यह स्वयं को बड़ा शुकून देती है। लेकिन सामाजिक दृष्टिकोण से अत्यधिक सादगी बड़ी नुकसानकारक होती है। लेकिन जिसे आत्मा के शरीर से अलग होने का अनुभव हो जाता है या यूं कहें कि परमात्म अनुभव हो जाता है उसका जीवन नेचुरली अत्यधिक सादगीपूर्ण हो जाता है। इसी प्रज्ञा को जीवन के दूसरे परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह बात साफ है कि साइंस (भौतिकता) और स्पिरिचुअलिटी (अभौतिकता) एक दूसरे के पूरक होते हैं विरोधी नहीं होते हैं। इसे तीसरे दृष्टिकोण से देखें तो भौतिक (सादगी) पर ही स्थित (आरूढ़) होते हुए भौतिक का उपयोग करते हुए ही अभौतिक (अध्यात्म) के चरम अनुभव किए जा सकते हैं। इसलिए अध्यात्म साधना के समय में भी पदार्थ का अवैरनेस के साथ उपयोग अनिवार्य हो जाता है।*