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Arya Jha

Drama

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Arya Jha

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रुपहले बूटों वाली आसमानी साड़ी

रुपहले बूटों वाली आसमानी साड़ी

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इस हफ्ते हमारे काॅलोनी की सबसे लोकप्रिय महिला उमा भाभी के घर एक पारिवारिक भोज समारोह था। कुछ नजदीकी मित्रों को बुलाया था।उनके घर की सज्जा शैली गजब की थी। उससे भी बढ़िया खाना-पीना था। पति-पत्नी के बीच के मधुर संवाद तो जैसे माहौल में मिठास घोल रहे थे और आखिर में उमा भाभी का मधुर गीत सुनने के बाद किसी को भी अपने घर लौटने का मन नहीं कर रहा था। मुझे इन सबसे अधिक उनके सधे देहयष्टि पर गुलाबी साड़ी भा रही थी। अगले हफ्ते अपनी मैरिज एनिवर्सरी पर ऐसी ही पार्टी रखने की मन में सोच रही थी। 36-26-36 वाले उनके फिगर को देख जब खुद को देखा तो हर तरफ 2" फालतू चर्बी नजर आई। ये पेट की अतिरिक्त चर्बी रोज की वाॅक से एक हफ्ते में कम हो जायेगी।

उनसे उनके बेहतरीन स्वास्थ्य की जानकारी लेनी चाही। उन्होंने नियमित दिनचर्या और समय की पाबंदी में ढलने की बात बताई। इसके अलावा ज़िंदादिली उनकी आदतों में शुमार था। सुबह की सैर, योगाभ्यास आठ बजे के अंदर निपटा कर स्नान व पूजा कर लगभग दस बजे नाश्ता कर, पति-पत्नी साथ-साथ बुटीक निकल जाते। काम करने व संभालने में दिल लगा रहता है। वापस आकर एक घंटे संगीत का रियाज करतीं। दो मकानों बाद ही मेरा घर था। उनकी खनखनाती आवाज़ और सुमधुर स्वर लहरी में गाये गीत अक्सर सुना करती। मैं मन में और पतिदेव प्रत्यक्ष में उठते-बैठते उमा भाभी की प्रशंसा करते ना थकते थे। क्या बनातीं हैं क्या खिलाती हैं तक तो ठीक था। परेशानी तब महसूस हुई जब क्या दिखती हैं तक बात आ गई। आमतौर पर पति के मुँह से किसी और की तारीफ तो किसी के भी तन-बदन में आग लगाने के लिए काफी होता है पर यहाँ तो मैं खुद उनके जैसी बनना चाहती थी। सच कहूँ तो मैं उनकी फैन थी। उन्हें देख कर लगता ही नहीं कि उनके बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो गए होंगे। उनकी चेहरे पर तरुणाई की चमक रहती और उम्र का कोई असर ही नहीं दिखता।

अब मैंने भी उनके जैसी बनने की ठान ली थी। मुँह अँधेरे ही जगी और सुबह उनके साथ सैर पर निकल गई। लौट कर आईं तो पतिदेव चाय के लिए गुर्राते दिखे। जल्दी ही चाय-नाश्ता देकर नहाने घुस गई। उमा भाभी के संग होलसेल मार्केट जाना था। वहीं से वह आधे दाम में प्योर जाॅरजेट की साड़ियाँ लाकर उनपर डिजाइनर वर्क कराने के बाद दोगुने दाम पर बेचती थीं। मेरे लगन को देखते हुए वह न्यूनतम लागत पर मुहैया कराने के लिए तैयार हो गईं। वैसे भी पार्टी वाले दिन ही उनके सुनहले बूटों वाली गुलाबी साड़ी पर मेरा दिल आ गया था। उसी डिजाइन की रुपहले बूटों वाली आसमानी साड़ी मुझपर खूब फबती। इसी जुनून में जल्दी-जल्दी तैयार हुई और बाजार निकल गई। पसंदीदा रंग कहीं नहीं मिला। अगले दिन आती हूँ ये कह, अकेले ही घर आई। धूप में घूमने से सिर फटा जा रहा था। घर आकर औंधे मुँह बिस्तर पर लेटी ही थी कि फोन की घंटी बजी। "लंच में साग-सब्जी क्यों दिया?" "सैलेडस दिया। उमा भाभी यही खातीं है।" "क्या हो गया है तुम्हें ....?" इससे पहले कि कोई सफाई देती फोन कट गया। थोड़ी देर सोने की कोशिश करती रही।

नींद तो आई नहीं पर खुली आँखों में सपने आते रहे। मैं उसी साड़ी में पति के सामने खड़ी हूँ और वह अवाक हो मुझे निहार रहे हैं। उमा भाभी के प्रति प्रशंसा के भाव जिस तरह उमड़ -उमड़ कर आ रहे थे, मुझे उनकी आँखों में वही सब अपने लिए देखना था। प्रतिस्पर्धा जोरदार थी और वक़्त कम, पर मैं कब हार मानने वाली थी। अभी पहले कुछ अच्छा बनाना भी होगा ताकि मेरे टोंड फिगर व आसमानी साड़ी के बीच कोई बाधा ना आए। फोन पर उनके गुस्से वाली आवाज याद आते ही सिर दर्द की दवा खाकर काम पर लग गई। पति के पसंद का खाना बनाने के बाद चाय बना कर पी और सोफे पर लेट गई । अगले दिन फिर वही दिनचर्या अपनाया तो उनकी ओर से ताकीद आई। " खाने में काॅमप्रोमाइज की उम्मीद मुझसे मत करना।"

किसी तरह राजमा-चावल पैक कर नहाने भागी।

आज जोश दूना था। भाभी ने एक-दो होल सेल दुकानें और दिखाईं। जाने कैसा अकाल पड़ा था कि साड़ियों का। वह रंग कहीं ना दिखा। शहर के दूसरे कोने में कुछ दुकानें बची थीं। तीसरे दिन उधर का रूख किया पर बात नहीं बनी। चार दिन ही शेष थे। अब क्या साड़ी और कैसे बूटे। भटकने और ढूंढने की हिम्मत जवाब दे गई थी। और वह दिन भी आ गया जिसके लिए इतने ताने-बाने बुने थे।

26 फरवरी की दोपहर को काॅलबेल बजा। सुर्ख लाल गुलाबों के बुके के साथ एक गिफ्ट पैक था। भेजने वाले का नाम-पता कुछ भी नहीं था। अब यही एक कमी थी जरूर पति के ही किसी मित्र का काम होगा। अपना मन तो खट्टा हो चला था। बड़ी ही बेफ़िक्री से पैकेट अंदर रख दरवाजा बंद किया ही था कि फोन बजा। "शाम का खाना बनाने की जरूरत नहीं है,आकर देखेंगे। उफ! इतना फीका दिन क्या सोचा था और क्या हुआ मन करता था कि जी भर कर रो लूँ। उमा भाभी के संगीत पर मेरा करूण रस भारी था। बुझे मन से आकर लेट गई। आँखें खुली तो घर में किसी की आहट सी महसूस हुई। धीरे से दरवाजा खोला तो घर सजा हुआ दिखा। कुछ नजदीकी मित्रों का जमावड़ा लगा था।

'आज के दिन भी उन्हें मेरी कोई परवाह नहीं' ये खयाल आते ही गुस्से से पैर पटक कुंडी लगाने ही वाली थी कि पतिदेव घुटनों पर बैठ कर मेरे हाथों में आसमानी साड़ी पकड़ा मुस्करा रहे थे।

"परी हो आसमानी तुम" उमा भाभी के सुर में गाने की आवाज पहचानते ही शरमा गई। 

"ओह! तो सरप्राइज पार्टी कब प्लान किया ?"

"साड़ी का ऑर्डर तो मेरी पार्टी में ही दे दिया था। बताने के लिए मना किया था। तभी तुम्हें बस घुमा रही थी।"

"आज सुबह घर की चाभी साथ ले गया था। ताकि तुम्हारे आराम के समय में घर सजा सकुँ।"

"दोपहर में एक अनाम कूरियर था।"

"वो हमारे खूबसूरत साथ की चुनींदा तस्वीरें थीं। बाहर आकर देखो दीवारों पर सजी है।"

"माँ! अभी तक तैयार नहीं हुई। जल्दी से आसमानी साड़ी पहन कर विडियो काॅल करो। मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है।"

बेटी का न्यूयार्क से फोन था। तैयार होकर विडियो काॅल किया। उसने ही पिता को ये आइडिया सुझाया था। बाहर आई तो पतिदेव की नजरें चेहरे से हटती ना थीं। भला इससे खूबसूरत पार्टी और क्या होती।


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