Manish Badgujjar

Abstract

3  

Manish Badgujjar

Abstract

रुबरु : एक स्वप्न

रुबरु : एक स्वप्न

2 mins
100


मैं ही "तुम.. नहीं नहीं तुम.. हां तुम" खड़ी भीड़ में उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा, "पहचाना मुझे?" मैं आश्चर्यचकित सा उसकी तरफ देखता रहा। उसने ही असमंजस दूर करते हुए चुप्पी तोड़ी, "जनाब मैं वही सुकून हूँ जो तुमको तब मिला था इश्क के रास्ते पर। मैनें रोका था तुमको उस रास्ते जाने से। मगर आप जनाब दूसरी ही धुन में थे। एक ना सुनी मेरी और चलते गये।" मैं अभी भी उसको बस देखे जा रहा था चुपचाप। उसने कहना जारी रखा, "समझाया था मैनें तुमकोमैं गर इस रास्ते गए तो मुझे खो दोगे। और देखो आज तुम मुझे ढूंढ रहे हो उस भीड़ में।" तभी मुझे भी अहसास हुआ कि हां इसीलिए तो खड़ा था मैं यहाँ इस भीड़ में सुकून की तलाश में। सच ही तो कह रहा था वो। मैं ही इश्क के रास्ते पर था सब कुछ जान बूझकर भी। जैसे ही मैंने नजर दोबारा उसकी तरफ घुमाई, वो नहीं था वहां। जा चुका था फिर से मुझसे बहुत दूर करवाकर रुबरु मुझे सच्चाई से। मैं वहां खड़ा था अब भी उसी भीड़ में मुझ जैसे लोगों के बीच। तभी मैं खड़ा खड़ा हिलने लगा जोर जोर से। तभी मेरी आंखें खुली तो देखा, मां जगा रही थी मुझे, "बेटा अब उठ भी ले, और कितनी देर तक सोएगा।" तब मुझे अहसास हुआ वो सब एक सपना था। एक ऐसा सपना जिसने रुबरु करवा दिया जिंदगी की सच्चाई से गर इस रास्ते गए तो मुझे खो दोगे। और देखो आज तुम मुझे ढूंढ रहे हो उस भीड़ में।" तभी मुझे भी अहसास हुआ कि हां इसीलिए तो खड़ा था मैं यहाँ इस भीड़ में सुकून की तलाश में। सच ही तो कह रहा था वो। मैं ही इश्क के रास्ते पर था सब कुछ जान बूझकर भी। जैसे ही मैंने नजर दोबारा उसकी तरफ घुमाई, वो नहीं था वहां। जा चुका था फिर से मुझसे बहुत दूर करवाकर रुबरु मुझे सच्चाई से। मैं वहां खड़ा था अब भी उसी भीड़ में मुझ जैसे लोगों के बीच। तभी मैं खड़ा खड़ा हिलने लगा जोर जोर से। तभी मेरी आंखें खुली तो देखा, मां जगा रही थी मुझे, "बेटा अब उठ भी ले, और कितनी देर तक सोएगा।" तब मुझे अहसास हुआ वो सब एक सपना था। एक ऐसा सपना जिसने रुबरु करवा दिया जिंदगी की सच्चाई से।


Rate this content
Log in

More hindi story from Manish Badgujjar

Similar hindi story from Abstract