रत्ना
रत्ना
साल 2020 के शुरू होते हैं कोरोना वायरस
ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए थे। मार्च में लॉक डाउन के बाद जो आपदा ने घेरा, स्कूल बंद -रोजगार खत्म सभी लोग घरों में बंद- शिक्षा हो गई ऑनलाइन। शिष्य व शिक्षक परेशान, मिली बीमारी- मास्क - 2 गज की दूरी और अपने परायों के कष्ट।
ऐसे समय में लॉकडाउन के कारण पाया स्वच्छ ब्रह्मांड- शुद्ध हवा- पाई ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति। बच्चों को पिता का सानिध्य और पिता को परिवार का सुख मिला।
ऐसे समय में एक घटना जो घटी वह दर्द भरी थी उर्मिला की तीन बेटियां छोटी एचआर -मझली इंजीनियर और बड़ी बेटी शिक्षिका।
सन दो हजार अट्ठारह में बड़ी बेटी रत्ना की शादी बड़ी धूमधाम और खुशी के साथ हो गई। सास ससुर थे तथा पति शिक्षक मिला। दोनों अपने परिवार के साथ अपना कर्तव्य निभा रहे थे।
दिन रात बड़ी हंसी खुशी से बीत रहे थे। आपस में यह दोनों अपने परिवार के साथ- साथ अपना भी पूरा- पूरा एक दूसरे का हर प्रकार से साथ और एक दूसरे को समर्पण के साथ खुशी-खुशी जीवन यापन कर रहे थे।
मगर होनी को तो होना था, और वो हुई।लॉकडाउन के समय में कुछ पेपर बच्चों के ऑफलाइन भी हुए थे। उस समय उन दोनों पति- पत्नी को परीक्षा भवन में जाना पड़ा। रत्ना तो उसी दिन वापस आ गई मगर स्कूल के कार्य वश पति को एक रात रुकना पड़ा।
अगले दिन जब पति वापस घर पर लौटा तो बुखार चढ़ा हुआ था। डॉक्टर से दवा ले ली मगर दवा ने कोई काम नहीं किया।
अगले दिन रचना के ससुर को भी बुखार आ गया। दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज चल रहा था, रत्ना ने सारा कार्यभार सेवा आदि का बोझ उठाया और अपना फर्ज निभाया।
एक सप्ताह के अंदर पहले दिन रत्ना के ससुर और दूसरे दिन रत्ना के पति का स्वर्गवास हो गया।
रत्ना और उसकी सास पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। दोनों का सुखी संसार उजड़ चुका था। उनका सभी कुछ लुट चुका था।
अब रत्ना के पास बची थी धन-दौलत, मृत पति की आजीवन यादें, और सास का प्यार- दुलार तथा उसका अपना शिक्षिका का पद।
यह अनायास घटी घटना रत्ना को झकझोर गई थी।
अब रत्ना के पास अपने जीवन का एक ही उद्देश्य बाकी बचा था। अपने शिक्षिका के पद की गरिमा बनाए रखना।
उसने संकल्प किया कि आगे मैं अपने पद की गरिमा को बनाए रखूंगी और जितना भी हो सकेगा, ज्यादा से ज्यादा जितने भी बच्चों का जीवन संवार सकूं। पूरी कोशिश करूंगी और अपने आप को धन्य महसूस करूंगी।
