सूझ बूझ
सूझ बूझ
कोई ना कोई महामारी 100 साल के बाद आती है और एक प्रकार से प्रलय सी मचा कर शांत हो जाती है।2020 में कोरोना नाम की महामारी ने भी अपना विकराल रूप धारण किया था। इससे बचने के उद्देश्य से मास्क- 2 गज की दूरी के साथ-साथ लॉकडाउन का चयन करना पड़ा था।लॉकडाउन से तो जीवनदयिनी प्राणवायु तथा शुद्ध वातावरण -निखरी हुई प्रकृति का लाभ तो मिला, मगर व्यापार- रोजगार-काम धंधे तथा सारी अर्थव्यवस्था ठप हो गई। स्कूल- कॉलेज बंद, बच्चे अपनी शिक्षा अध्ययन से वंचित हो गए ।
बहुत सोच-विचार के बाद ऑनलाइन शिक्षा का कार्य शुरू किया गया, परंतु शिक्षा का पूरा लाभ नहीं मिल रहा था। प्रगति अपनी पढ़ाई को लेकर चिंतित थी। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी थी।ऑनलाइन के साथ-साथ अपने शिक्षकों व शिक्षिकाओं से फोन पर संपर्क करके खुद भी बड़ी लगन से पढ़ रही थी तथा अपने कक्षा के बच्चों को भी फोन करके उनकी पढ़ाई में सहायता करती थी। प्रगति के स्कूल के प्रांगण में कुछ दोहे शिक्षा को लेकर लिखे हुए थे उनमें से कुछ इस प्रकार थे-------
शिक्षा ज्ञान अर्जन के बिना, मानव पशु समान ,
गुरु से शिक्षा ग्रहण करें, तब प्राणी बने महान ।
विध्या धन सब धनों से, संत कहें सरदार,
बड़े मोल नहीं घटते हैं, दिन दिन होते उदार।
प्रगति अक्सर उन्हें पढ़ा करती थी, उसे पता था कि ज्ञान और शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। उसके चाचा- बुआ- मौसी के बच्चे - बेटे- बेटियां बड़े- बड़े थे, जो ग्रेजुएशन करके अन्य प्रकार की शिक्षा अध्ययन में लगे हुए थे। यहां तक शिक्षा और सबकी भी प्रभावित हुई थी, फिर भी प्रगति की सहायता वह कर सकते थे।
प्रगति ने उन सब से फोन पर अपने सवाल बता कर उत्तर प्राप्त करके अपने सहपाठियों तथा जितने भी संपर्क हो सकते थे, प्रगति ने सभी की समस्या सुलझाईं और अपने साथ - साथ अन्य बच्चों के भविष्य को संवारने का कार्य किया।इच्छा लगन यदि प्रबल हो जाए तो कोई भी कार्य असंभव नहीं होता है प्रगति ने असंभव को संभव करके दिखा दिया था।
