"रोशनी"
"रोशनी"
शाम के समय अंधेरे कमरे में बैठा अर्जुन सोच रहा था बीते कुछ वर्षों में कितना कुछ बदल गया। कभी किसी की भी परवाह ना करने वाला, गुस्सैल, खुद में ही खोया रहने वाला और खुल कर अपने जीवन के हर पहलू का आनंद लेने वाला अर्जुन आज परिवार के उत्तरदायित्वों को पूरा करने में लगा रहता था। अपने सभी अरमान, ख्वाइशें, सपने और इच्छाएं भुला कर उसने पूरी तरह खुद को पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति समर्पित कर दिया था।
बचपन से ही बड़े सपने देखने वाला, शुरु से ही महत्वाकांक्षी और सब कुछ बदलने की हिम्मत रखने वाला अर्जुन जीवन से बहुत कम मिल पाने के कारण असन्तुष्ट था, अर्जुन आज कहने को तो सम्पन्न था पर वह एक छोटी सी नौकरी करके संतुष्ट नहीं था, और ये नौकरी भी वह अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिये और अपने माता पिता की खुशी के लिये ही करने लगा था, पर इससे कभी उसे खुशी ना मिल सकी, वो इस नौकरी को बेमन से करता आ रहा था।
परिवार में भी हर समय कुछ ना कुछ चलता रहता था, कभी किसी की नाराज़गी, कभी किसी की बीमारी और कभी कोई और छोटी मोटी बात। इन सबसे प्रभावित तो सभी होते थे, पर अर्जुन अपनी अधिक सोचने विचारने की आदत के कारण हताशा में घिरने लगा था।
उसको ना ही अपनी नौकरी अच्छी लगती थी और जिसके लिये वह ये नौकरी करने लगा था, उस घर में भी उसको मानसिक शांति की प्राप्ति नहीं हो पा रही थी, और यही घर जिसके कारण उसने कभी खुद के लिए भी कुछ नहीं सोचा था, उसे कभी कभी काटने को दौड़ता सा प्रतीत होता था।
ऐसे में खुद को खत्म कर देने के विचार भी उसके परेशान मन में यदा कदा आ जाते थे, पर वह सिहर उठता था ये सोचकर कि उसके बाद उसकी बेटी का क्या होगा, जो अपनी माँ को पहले ही खो चुकी है, उसके वृद्ध होते माता पिता का उसके बाद क्या होगा, कौन बनेगा उनके बुढ़ापे का सहारा और वह फिर से लग जाता अपने जीवन की भागदौड़ में।
सब कुछ होते हुए भी उसके पास कुछ नहीं था, वो अंदर से खोखला, खाली और टूटा हुआ महसूस करने लगा था, उसके मन:स्थिति को समझने वाला कोई नहीं था, वह आज भी प्रयत्नशील था सबको खुश करने में, और उसे दूर दूर तक कोई उम्मीद की किरण भी नजर नहीं आ रही थी। अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा था उसको चारों ओर।
ऐसे ही विचारों में मगन अर्जुन को पता ही नहीं चला कि कब दिल में भरा गम आँसू बनकर बहने लगा। अर्जुन जो स्वभाव से भावुक था, अकेले बैठकर रोते रोते उसे कभी खुद पर तो कभी ऊपर वाले पर गुस्सा आ रहा था।
अर्जुन अभी तन्हाई में बैठा ही हुआ था कि उसकी बेटी ने कमरे में आते हुए लाईट का स्विच ऑन करते हुए कहा, "पापा क्यूँ अकेले बैठे हो आप, और वो भी कमरे में इतना अंधेरा करके?"
अर्जुन अपनी भीगी आंखें पोंछता हुआ मन ही मन बुदबुदाया, "ये आ गयी मेरे जीवन की रोशनी।"
