"उपदेश"
"उपदेश"
"सुबह सुबह जल्दी उठकर माता पिता का आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत किया करो, सैर पर जाओ, व्यायाम करो, सेहत का ध्यान रखो, सब बड़ों का सम्मान और छोटों से प्रेम करो, मेहनत करो और खूब मन लगा कर पढ़ाई करो, ऐसी दिनचर्या से ही मेरा भांजा अर्जुन आज सिविल सेवा में अधिकारी है, समाज के लोगों में उठना बैठना सीखो, सद्कर्म करो और सबको साथ लेकर चलो।" कहते हुए राजवीर सिंह ने साँस तक नहीं ली थी।
आलोक के पड़ोस में रहने वाले राजवीर सिंह, पेशे से अध्यापक थे, उनकी धर्मपत्नी सुषमा जी भी अध्यापिका थीं। राजवीर की बड़ी बेटी दिव्या और छोटा बेटा आशीष दोनों बहुत ही अच्छे थे पढ़ाई में और ज्यादा घूमते फिरते भी नहीं थे मोहल्ले में।
आलोक जो शहर से बाहर रहकर इन्जीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था छुट्टी में घर आया हुआ था और उसे घर के बाहर देखकर राजवीर जी उसके पास चले आये और बिना कुछ सोचे समझे सारी नसीहतें एक साथ ही दे डालीं। आलोक, जो खुद समझदार, सज्जन, मिलनसार और व्यवहारिक है, उसको ये बात शूल की तरह लगी और राजवीर जी का ये व्यवहार उसको बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, पर मानो एक कड़वा घूँट पीकर रह गया था वो।
आलोक की माता जी को जब ये बात पता लगी तो उन्होंने भी आलोक को ये बात हल्के में लेने की सलाह दी। आलोक ने भी सोचा चलो जो कहा अच्छा ही कहा और बात आई गयी हो गयी।
राजवीर जी बहुत सामाजिक व्यक्ति थे, लोगों के साथ उठना बैठना, सामाजिक कार्यक्रमों में भाग लेना, महापुरुषों की जयंती मनाना और घूमना फिरना ये सब भली आदतें उनमें थीं।
कुछ दिन यूँ ही बीत गये, एक शाम आलोक जब छत पर टहल रहा था, तब उसे घर के पीछे की तरफ शोर होता सुनाई दिया, उसने जाकर देखा तो पता चला कि मास्टर जी अपनी धर्मपत्नी पर जोर जोर से चिल्ला रहे थे, वो उनको भद्दी भद्दी गालियाँ दे रहे थे, बच्चों को मारने पीटने की भी असफ़ल कोशिश बार बार कर रहे थे पर बच्चे माता पिता के इस झगड़े में अपनी माँ का साथ दे रहे थे और दूसरी तरफ सुषमा जी भी उनको भला बुरा कहने से पीछे नहीं हट रहीं थी
आलोक को एक बार को लगा कि सबको ज्ञान देने वाले राजवीर जी कैसे ऐसा कर सकते हैं, उसे तो एक बार को अपनी आँखों देखी और कानों सुनी पर भी विश्वास नहीं हो रहा था, पास जाकर जब माजरा जानने की कोशिश की तो पता लगा हाथी के दाँत खाने के और हैं और दिखाने के कुछ और।
दरअसल राजवीर सिंह उन कुटिल मनुष्यों में से एक हैं जो सबके सामने एक अलग ही साफ सुथरी छवि बना कर रखते हैं, और अंदर एकदम खोखले होते हैं। राजवीर सिंह जो दूसरों को उपदेश देते हैं उससे एकदम उलट काम करते हैं, रोज़ शराब पीना, बीड़ी सिगरेट पीना, शराब पीकर धर्मपत्नी को भला बुरा कहना, मारना पीटना, बच्चों पर गुस्सा करना, एक दूसरे की बुराई करना, मन में एक दूसरे के प्रति द्वेष और घृणा का भाव रखना पर ऊपरी तौर पर आदर्शवान बने रहना।
आलोक वहां से घर लौटते समय सोच रहा था, ऐसे लोग और उनके ऐसे खोखले आदर्शों से ही तो ये समाज और देश पतन की ओर बढ़ रहा है, ऐसे ही लोग होते हैं जिनके मुँह में राम और बगल में छुरी होती है।