रंगीली होली
रंगीली होली
"आज मेले में जाऊँगी, तीन पिचकारी लाऊँगी।"
तीन क्यों रे अवनी? - दादी ने पूछा।
एक मेरे लिए और एक बड़े भैया के लिए और एक छोटे भैया के लिए - अवनी ने आँगन में नाचते हुए कहा। सुनकर दादी हँस पड़ी तभी अन्दर से जानकी (अवनी की माँ) भनभनाते हुए बाहर आई। दादी ने कहा- तू क्यों भनभना रही है जानकी ? अवनी को आज तीन पिचकारी दिला देना, खुद के लिए और दोनों भाईयों के लिए भी चाहिए इसे, परसों होली है न !
हाँ अम्मा होली है और घर में राशन का कोई सामान नहीं है, कब से बोला इन्हें (पति को) पर मुझे पैसे नहीं है बोल चुप करा दिया, कहने लगे एक-दो दिनों में पैसे मिलेंगे तो ला दूँगा, पेट किसी का थोड़े ही ठहरता है, जैसे-तैसे घर चला रही पर कब तक चलेगा? पड़ोसी ने कल खेत के उगे कुछ सब्जी दिए थे जिसकी भाजी आज बनाई है। परसों होली है, शहर से रिश्तेदार भी आएँगे, मिलने आएँगे तो कुछ खिलाना भी तो हाेगा ! पूए-पकवान तो दूर की बात, एक समय घर का खाना भी सही से खिलाने लायक नहीं हम। क्या इतने गए-गुजरे हैं हम? बच्चों के पहनने लायक ढ़ंग के कपड़े भी नहीं - कहते हुए जानकी फफक कर रोने लगी। मानों उसके अन्दर की भड़ास निकली।
अवनी दूर से चुपचाप खड़ी दादी और माँ की बातें सुन रही थी। अवनी माँ (जानकी) के पास आई और आंसू पोंछते हुए कहा - माँ हमें पिचकारी नहीं चाहिए। हमारे लिए इतनी चिंता मत करो। वैसे भी रंग से कपड़े खराब हो जाते हैं तो कपड़े हम पुराने ही पहनेंगे और रंग भी नहीं खेलेंगे। हमारे टीचर कहते हैं रंग त्वचा के लिए अच्छी नहीं होती। अवनी की बातें सुन जानकी रोना भूल चकित होकर एकटक उसे देखने लगी। दादी ने बहु (जानकी) को सांत्वना देते हुए बच्चों के सामने ऐसी बातें कहने से मना किया और कहा बच्चे के दिमाग पर बुरा असर पड़ता है कि तभी किसी ने जोर से लगातार दरवाजा खटखटाया। इतनी दोपहर में कौन हो सकता है ? - कहते हुए जानकी घूँघट करते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ी। जैसे ही दरवाजा खोला तो देखा ढ़ेर सारा सामान लिए पति(अवनी के पिता) खड़े हैं। जानकी देखते ही हँस पड़ी। घर का राशन, गुलाल, सबके लिए नए कपड़े देते हुए जानकी के पति ने कहा - इस बार बोनस मिला है। मैंने कहा था न ! चिंता मत कर - दादी ने जानकी से कहा। अवनी और उसके भाईयों की पिचकारी जैसे ही अवनी को दिया वो तालियाँ बजाते हुए जोर-जोर से उछलने लगी।
होली के दिन घर में सबने खुशी-खुशी सबके साथ मिलकर रंगीली होली मनायी।
