रंग तेरी मेरी प्रीत का
रंग तेरी मेरी प्रीत का
गाड़ी की आवाज आते ही खिड़की की तरफ सलोनी दौड़ पड़ी.."लगता है आ गए क्या? आज फिर बारह बजा दिए.. एक कॉल नहीं हो सकती इनसे की लेट हो रहा हूं.. जरा भी ना सोचेंगे की बेचारी घर पर अकेली होती है टेंशन होगी उसे.. आज तो पक्का पूछ कर रहूंगी" मन ही मन बड़बड़ाती हुई सलोनी पर्दे से झाँकती है जहां रवि गाड़ी को ना पाकर उसका झगड़े का मूड भी ठंडा हो जाता है।
रात एक बजे के करीब दरवाज़े की घंटी बजती है।
सलोनी दरवाजा खोलती है तो देखती है कि रवि है।
" तुम? गाड़ी कहाँ है?.. आवाज नहीं आई गाड़ी की?.. इतनी देर कहां लगा दी भला?.. एक कॉल तो कर देते!"
रवि जैसे सारी बाते अनसुना करता हुआ अंदर जाकर सोफ़े पर बैठ जाता है।
"मैं कुछ पूछ..."
"यार सलोनी, कॉमन सेन्स भी खत्म है? इंसान थका हारा आया है तुम अंदर घुसने से पहले इंक्वायरी बैठा देती हो.. गाड़ी खराब हो गई और फोन बंद हो गया था.. अपनी मुसीबत को दूर करने की कोशिश करता या तुम्हें सूचना प्रसारण करवाता? हद्द है.. आने को जी नहीं करता घर.. और ये क्या है रात को इडली कौन खाता है?.. खाना तो ढंग से बना लिया करो " कहकर रवि बिना खाए सोने चला गया।
रवि की कड़वी बातों से सलोनी की आँखों से आंसू बह चले। आज पहली बार उसने भरवा इडली बनाने की कोशिश की थी.. सुबह सब भागम भाग रहती थी।
" और ऐसा भी क्या पूछ लिया मैंने आखिर.. चिंता करना बुरी बात है क्या? "
ये सब अब रोज रोज का हो गया है। शादी को सिर्फ दो साल हुए है। कभी उसकी एक झलक को तरसने वाला रवि आज एक नजर उठा कर नहीं देखता।
सलोनी को वो दिन याद आ गए जब पहली बार रवि को उसने देखा था। सजीला नौजवान हर तरह से परफेक्ट किसी का भी ड्रीम बॉय हो सकता था। सलोनी की फ्रेंड पलक के दीदी का देवर जो पलक को भी अपनी बहन जैसे मानता था पलक को सलोनी के घर से होली पार्टी के बाद लेने आया था। जाने क्या था कि सलोनी और रवि एक दूजे के नज़रों में कैद हो गए थे। उस दिन सलोनी को होली के सारे रंग रवि के प्रेम के रंग के आगे फीके से लगे। रवि ने भी पलक से कहकर सीधे घर पर शादी की बात ही करवा ली थी। सब कुछ सपनों की दुनिया जैसा था। सलोनी को भी ससुराल में कितना प्यार, मान, सम्मान मिला। सब पलकों पर बिठा कर रखते, कुछ काम भी नहीं करने देते "तू गुड़िया सी है बस ऐसे ही मुस्कराते रह सब काम हम देख लेंगे।" सलोनी को तो मायके से ज्यादा ससुराल में मन लगता था। फिर रवि का ट्रांसफ़र हो गया और दोनों पुणे चले आए। धीरे धीरे जाने क्यूँ और कौन सी गांठ बनती चली गई दोनों के बीच पता ना चला।
सलोनी ने मन बना लिया था, अब दर्द सहन नहीं होता था।
"रवि! दस दिन बाद होली है मुझे मम्मी के घर जाना है"
"जहां जाना है जाओ.. मुझे पूछने की जरूरत नहीं, मैंने तुम्हें कभी नहीं रोका, मैं कहता हूं कि कोई काम कर लो पर तुम जाने कौन सी दुनिया में जीती हो"
काश रोक लेते तुम.. नहीं तुम्हें तो मुझ से आज़ादी चाहिए ना.. अब मैं नहीं आऊंगी देखना.. मन में सोचते हुई सलोनी बैग पैक करने चली गई।
रवि भी उसे एयरपोर्ट तक छोड़ आया। मायके में अचानक सलोनी को देख सब चकरा गए।
" अरे सलोनी! सरप्राइज? पर रवि कहाँ है? " माँ ने पूछा
"उन्हें काम है माँ और मेरा होली पर यहां आने का बहुत मन हो रहा था"
"सच ना सलोनी.. कोई और बात तो नहीं?"
" और क्या बात होगी माँ"
सलोनी आ तो जाती है पर मन उखड़ा उखड़ा रहता है उसका। तभी पलक का फोन देख कर सलोनी उछल पड़ी
" कहां थी तू? कब से सोच रही थी तूझे कॉल करूँ फिर सोचा तेरी भी नई नई शादी है क्या डिस्टर्ब करना "
"कुछ हुआ क्या?" पलक घबरा गई क्यूँकी सलोनी की आवाज़ बुझी हुई आई।
"क्या बताऊँ? रवि पहले जैसे नहीं रहा.. कुछ भी ना बचा पहले जैसे"
"त्यौहार नज़दीक है तू यहाँ बैठी है और रवि पहले जैसे ना रहा?"
"नहीं यार उसे अब फर्क़ नहीं पड़ता"
"ऐसा नहीं है.. नए शहर में ट्रांसफर के बाद काम का बोझ बढ़ गया होगा उस पर परिवार से दूरी.. तू कभी उसकी जगह रह कर सोच "
" क्यूँ मैं नहीं आई नए शहर परिवार छोड़? "
" अरे तुम तो लव बर्ड्स हो.. ऐसी निराशा वाली बातें क्यूँ? "
" लव बर्ड्स? अब देखते भी नहीं मेरे तरफ जनाब "
" सच बता सलोनी.. तू अपनी तरफ से शत प्रतिशत सही है? तूने खुद बताया था कि तू रवि पर पूरी तरह से निर्भर है.. कहीं आती जाती नहीं सारे काम उसके हवाले.. खाना भी हफ्ते में तीन दिन बाहर का.. ससुराल में सास नन्द वाला दुलार तेरा खत्म नहीं हुआ.. गृहस्थी केवल प्यार बांटना नहीं जिम्मेदारी बांटना भी है.. मेरी राय है एक बार ठंडे दिमाग से सोचना.. चल मेरे पति बुला रहे हैं " कहकर पलक ने फोन रख दिया।
सलोनी को अब लग रहा था कि पलक सच कह रही है.. मैं भी अब तक हनीमून वाले दिनों से बाहर आने की सोच ही नहीं रही। सच रवि कितना कुछ अकेले कर रहा है.. मैं तो कभी उसकी ऑफ़िस की बातें सुनती भी नहीं। ग़लती मेरी ही है।
उधर रवि ऑफ़िस से वापस आया तो सुना घर काटने को दौड़ता।
"उफ्फ! अपने काम के बोझ में मैंने बिचारी को कितना भला बुरा कहा.. क्या मांगती है वो मुझसे सिर्फ थोड़ा समय और प्यार.. और मैं बस मशीन बन कर रह गया हूं.. शुरू से उसे बाहर ही खा लेते हैं कहता रहता.. उसे लगता होगा कि मुझे उसके हाथ का खाना पसंद नहीं.. मैंने ग़लती कर दी त्यौहार में उसे रोकना चाहिए था.. घर वाले क्या सोच रहे होंगे कि किस आदमी से ब्याह दी बेटी! " रवि रात भर सोया नहीं।
अगली सुबह होलिका के दिन रवि बिना बताये पहुंच गया ।
सलोनी रवि को देख थोड़ा अचंभित हुई पर अंदर ही अंदर खुश भी क्यूँकी उसे खुद ही लग रहा था बस पंख लगा उड़ पहुंच अपने प्यार से माफ़ी मांग लेती।
"सलोनी प्लीज माफ़ कर दो.. अपनी ग़लती का एहसास है मुझे, चलो सारे गिले शिकवे होलिका संग जला देते है, एक नई शुरुआत करते हैं अब"
"रवि प्लीज ऐसा मत कहो.. ग़लती मेरी भी नहीं थी तुम्हारा साथ देने के बजाय मैं आश्रित बन गई, आज सारी शिकायतें खत्म" कहकर सलोनी लिपट गई।
अगले दिन सलोनी और रवि के प्यार का रंग रंग बिरंगे प्रीत के रंगों में सरोबार होकर चारों ओर होली मय हो रहा था।
प्यार बराबर का हक़ मांगता है तो विश्वास भी साथ ही साथ बराबर अपनी ग़लतियों का एहसास भी। झुकने वाली डाल टूटने के खतरे से बची रहती है और प्यार में झुकना समर्पण की निशानी है।