रंग जिंदगी के
रंग जिंदगी के
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निलिमा(काल्पनिक नाम) अपने रूम के खिड़की से बाहर हो रहे बारिश का लुफ्त चाय के साथ ले रही थी कि तभी उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी जो करीबन १० से १२ वर्ष की होगी।वो बारिश में पूरे मस्ती के साथ हंस्ती खिलखिलाती झुमती दुनिया के माया से बेखबर अपनी धुन में चली जा रही थी।
उसे देखकर निलीमा को अपना बच्चपन याद आ गया, वो भी तो कुछ ऐसी ही थी, कैसे वो भी बारिश के दिनों अपने भाई बहन के साथ खेलती कुदती रहती थी, कैसे अपने मां और बापू से छिप छिपाते गांव के और बच्चों के साथ हुड़दंग मचाती।सच में वो भी क्या दिन थे, बेफिक्र सा, उन्मुक्त पंछी के तरह इधर उधर फुदकने का, तब जिंदगी का करवा स्वाद कहां चखा था हमने।उस वक्त तो जिंदगी का एक रंग ही नजर आता था और वो रंग था इंद्रधनुषी रंग, और अपनी छोटी सी दुनिया में उस रंग के साथ खुश रहना, इतना ही आता था हमें। परन्तु वो सात रंगों का इंद्रधनुषी रंग वक़्त के साथ कब अलग अलग हो जाता है, इस बात का एहसास तब हुआ निलिमा को जब उसकी जिंदगी एक हसंते खेलते जिंदगी से बदलकर काले रंग में तब्दील हो गया। क्युंकी अब निलिमा वो बच्ची नहीं रही वो अब पत्नी बन चुकी थी, एक ऐसे इंसान की पत्नी जिसके नजर में पत्नी की कोई एहमियत नहीं थी।
निलिमा रोज यातनाओं के दल दल में धसती जा रही थी, उसे अपना अस्तित्व विलीन नजर आ रहा था।इन सब के बिच एक अच्छी बात ये हुई कि निलिमा गर्भवती हो गई थी अब।और धिरे धिरे रोज के ताना और यातना को सह कर भी निलिमा इसी ख्वाब में जीने लगी थी कि बच्चे के आने के बाद सब ठीक हो जाएगा और अंततः वो दिन भी आ गए और निलिमा ने एक खुबसुरत सी बच्ची को जन्म दिया, परन्तु ये क्या, जो ख्वाब निलिमा ने सोचे थे और देखें थे कि सब ठीक हो जाएगा बच्चे के आने से तो ऐसा कुछ नहीं हो पाया।और इस तरह एक दिन निलिमा अपने और अपने बच्ची के लिए वो घर सदा के लिए छोड़ दिया क्योंकि वो अपनी बेटी को इस माहौल में पालना नहीं चाहती थी।
अपने अकेले सफर पर निलीमा ने ठोकर तो बहुत खाया परन्तु आज वो एक कालेज की प्रोफेसर बन चुकी थी, सामाज में अपनी पहचान बना चुकी थी।उसके सफर में सिर्फ वो और उसकी बेटी थी।अपने अतीत के पन्नों में निलिमा इस कदर खो गई थी की उसे समय का पता ही नहीं चला कि तभी सहसा फोन की घंटी सुनाई दिया।निलिमा को ऐसा लगा मानो किसी ने गहरी नींद से जगाया हो, फोन उठाते उधर से आवाज आई कि मैम छुट्टी हो गई सारे बच्चे निकल गए आप कब आएंगी परी( निलिमा की बेटी) को लेने।इतना सुनते ही निलिमा ने कहा कि बस पांच मिनट में आ रही हुं, अब तक बारिश भी खत्म हो चुका था आसमान बिल्कुल साफ था पर हां आज फिर निलिमा को अपनी सतरंगी जिंदगी की तरह इंद्रधनुषी रंग आज फिर से दिखा।वो हल्की सी मुस्कान के साथ गाड़ी में बैठ कर अपनी बेटी को स्कुल से लाने चली गई।