Rajeev Ranjan

Romance Tragedy Thriller

4.5  

Rajeev Ranjan

Romance Tragedy Thriller

रक्तरंजित इश्क़ भाग-1

रक्तरंजित इश्क़ भाग-1

7 mins
402


हर दिन की तरह आज भी श्लोक दीप्ति को गुलाब देकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया ..... दीप्ति को गुलाब देकर बिना संवाद किए श्लोक का चले जाना महज ये कुछ महीनों की बात नहीं थी ये विगत 5 वर्षों से चले आ रहा था।

हर रोज़ श्लोक गुलाब किस बाग से लाता था भगवान जाने

मुझे ये समझ में नहीं आता है जब दीप्ति बिना किसी झिझक के श्लोक का गुलाब स्वीकार कर लेती थी

फिर भी श्लोक दीप्ति से बाते क्यों नहीं करता था।

हां दीप्ति को भी श्लोक से बाते करनी थी।

क्या हमे श्लोक को कायर आशिक़ कहना सही रहेगा

अगर श्लोक कायर आशिक़ था फिर दीप्ति से हर रोज़ गुलाब देकर मुक संकेत में ही सही पर अपने प्यार का इजहार क्यों करता था।

दोनों एक ही स्कूल में थे वो भी एक ही क्लास में ।

श्लोक ने कभी दीप्ति के सिवाए किसी और लड़की को एक टूक नहीं देखा।

अगर हम श्लोक का स्वभाव की बात करें तो।

श्लोक मितभाषी किस्म का लड़का था

ना किसी से ज्यादा यारी ना किसी से दुश्मनी ....

हर वक़्त अपने धुन में मग्न रहता।।

एक रोहित ही था जिसे श्लोक अपनी परछाई की तरह मानता ..... रोहित भी श्लोक का बहुत ख्याल रखता।

इनकी यारी खुद में मिसाल थी।

अकसर हम देखते है की कुशाग्र बुद्धि वाला छात्र

वाचाल ज़ुबान का होता है.... हमेशा बकबक ..

किन्तु श्लोक अती कुशाग्र बुद्धि का स्वामी होने के वाजदुद भी बड़े सादगी में रहता।सारे शिक्षक उससे बहुत प्यार करते

चुकी श्लोक बहुत ही आदर्श छात्र था।।

और रही बात दीप्ति की तो

दीप्ति भी बड़ी प्यारी लड़की थी

सौंदर्य से परिपूर्ण होने वाजदूद भी कभी दीप्ति ने अपने हुस्न का दिखावा नहीं किया.....

क्लास में कोन लड़का नहीं था जो दीप्ति पे फ़िदा नहीं था

किन्तु दीप्ति की निगाहें हर वक़्त श्लोक को ही ढूंढ़ता रहता

वो हय में उस पल को इस कहानी में जरुर केद करना चाहूंगा जब ।

संयोग वश जब दोनों की नज़रे मिलती थी।

पल तो मानो ठहर ही जाता था।

अगर हम येसा बोले कि

इस मनोरम नजारे को पूरी काइनात बड़े उत्सुकता से देखता

था तो शायद गलत नहीं होगा

अचानक नज़रों का हटना और किताबो पे सर करके मुस्कुराना.....

इनका प्रेम सच्चा होने के साथ साथ पूरी तरह से निश्चल

एवं निस्वार्थ था।

हैरानी तो इस बात की है।

कभी इन दोनों ने इस सिलसिले को किसी दोस्त के साथ साझा नहीं किया।

जबकि ज्यादतर प्रेमी ऎसा ही करते है।

कोई पसंद आया नहीं की।

पूरे मित्र मंडली में हल्ला .....

दीप्ति श्लोक के गुमनाम प्रेम को वैसे तो पूरे स्कूल जनता किन्तु कोई खुलेआम इस विषय पे बात नहीं करता।

उस दिन सरस्वती पूजा था पूरे स्कूल में जश्न की लहर थी

हर छात्र/छात्रा रंग बिरंगा पोशाक पहने बड़ा खिल रहा था।

खुशियां बरस रही थी ।और हर दिल भिंग रहा था

भक्ति के रंग के साथ साथ।मुहब्बत के रंग भी पूरे स्कूल रंग गया था।

लेकिन दीप्ति आज बहुत उदास थी ।

हद से ज्यादा ।उसकी निगाहें बार बार

स्कूल के मुख्य द्वार की ओर झाक रही थी।।

सहेलियों के समक्ष झूठा मुस्कुरा तो लेती थी किन्तु

उदासी कहां छुपने वाला है ।वो अपना नशा दिखला ही देती है।।

म्यूजिक के बिट से ज्यादा तेज तो दीप्ति की धड़कने धड़क रही थी।।

आज दीप्ति पूरे निर्णय के साथ सरम हया झिझक घर पर ही छोड़ आई थी कि ।

श्लोक से बात करना है तो करना है।

पर हाय रे भाग्य........

बादल छाया पर बारिश ही नहीं हुआ ।

बादल छाया है तो यकीनन बारिश होगी चाहे कितना

विलंब से ही सही क्यों ना हो.....

१.

हां ये नज़ारा देखकर दीप्ति चहक उठी

दीप्ति को कभी इतना खुश नहीं देखा गया था।

वो दिल से मुस्कुरा रही थी ।।

दिल से शायद हम पूरे जीवन भर में बहुत कम बार ही मुस्कुरा पाते है वो भी नसीब हो तो।

श्लोक रोहित के साथ प्रवेश किया ......

पीले रंग का शर्ट श्लोक पे बड़ा जच रहा था।

वैसे भी श्लोक का चाल किसी नायक से कम नहीं था

अपनी कलाई पर गेरुआ रंग के बंधे धागे को दूसरे हाथ की

अंगुलियों से उलझकर रोहित के कदम से कदम मिलाकर

बड़े शान से चल रहा था।

आज तो श्लोक के चेहरे की कांति को देखकर ऎसा प्रतीत हो रहा था मानो ।श्लोक आज किसी कसम को तोड़ आया है.... कुछ इरादा करके आया है।।

मतलब आज किसी योद्धा के भाती रण में आया है।

"श्लोक भैया को कहना कि दीप्ति दीदी आपको क्लास रूम 7 में बुला रही है।"

दीप्ति ने एक छोटी बच्ची को ये कहते हुए पास गार्डेन के पास खड़े श्लोक के पास भेजा

श्लोक ये सूचना सुनकर बिना कुछ सोचे -समझे बड़े निर्भय के साथ क्लास रूम 7में पहुंच गया

दीप्ति खिड़की की ओर मुंह किए श्लोक का इंतजार कर रही थी ।

पहले 10 मिनट तक तो दोनों में से किसी ने भी अपना ज़ुबान नहीं खोला ।ये नज़ारा पूरी तरह से ख़ामोश था

फिर अचानक दीप्ति ने खामोशिया तोड़ी ।

दीप्ति" सुबह स्कूल क्यो नहीं आए थे

श्लोक "वो क्या है कि मेरे घर में भी प्रतिमा लगाया गया है"

दीप्ति "ओ"

दीप्ति " तुम मुझसे कभी बात क्यों नहीं करते "

श्लोक शरमाते हुए वैसे ही

दीप्ति क्या वैसे ही

इनका नोक झोंक प्यार मुहब्बत से भरा सवांद करीब 20मिनट तक चलता है

अंतत: दीप्ति मुस्कुराती हुई बोलती है

अच्छा तुम अपने घर की पूजा में मुझे आमंत्रित नहीं करोगे

श्लोक " हां क्यों नहीं शाम में मेरे साथ चलना

दीप्ति ठीक है

आज बसंत पंचमी के दिन में इन दोनों की ज़िन्दगियां भी रंगीन हो गई थी

पूरे ४ साल ख़ामोश रहने के बाद ये बेजुबान इश्क़ अपना लब खोल दिया था

आज तो महज उत्सव का ही दिन नहीं महाउत्सव का दिन था।

शाम का वक्त है।

करीब ४ बजा होगा।

दीप्ति ओर श्लोक घर की ओर निकल पड़ा

स्कूल से श्लोक का घर ज्यादा दूरी पर नहीं था

करीब ५km का फासला होगा

और दीप्ति का भी शायद इतना ही .

फर्क पूरब पश्चिम

इसलिए ज्यादातर नजदीकी बच्चे साइकिल से कम और पैदल आना ज्यादा पसंद करते थे

ओर वैसे भी पैदल चलने का अलग ही मज़ा है

चलते कदम दरमियान इन दोनों में काफ़ी बाते हुई

अब ये गुमनाम प्रेमी नहीं थे

और अभी तक एक दूसरे से पूरी तरह से घुल चुके थे

पता नहीं आज सर्म हया।किस काम पे गया हुआ था

भगवन् जाने।...

घर पहुंचने के बाद श्लोक ने अपने परिवार से दीप्ति की परिचय कराया ।

मां शारदे का आशीर्वाद लेने के पश्चात दोनों घर के छत पे गए

अंगुलियों से गार्डेन कि और इशारा करते हुए दीप्ति पूछी "क्या ये वही बाग है जिससे तुम हर रोज़ गुलाब तोड़कर

मुझे लाकर देते हो"

श्लोक हां

दीप्ति । "ओ कितना सारा और कितना प्यारा- प्यारा फूल है .    मैं इन फूलों को पास जाकर देखना चाहती हूं"

श्लोक दीप्ति को अपने बाग में लेकर जाता है

दीप्ति तो नज़ारा देखकर पागल ही हो जाती है

फूलों से खेलने लगती है । फूलों से बाते करने लगती है

असल में ये बाग ही इनके प्रेम का जहां था

श्लोक हर गुलाब के पोधो को दीप्ति का प्यार समझ कर बोया थाऔर अपने चाहत से सींचा था ...

हर रोज़ जब भी फुर्सत मिले ।

श्लोक अपना समय इसी बाग में बिताता ।

अक्सर शाम के वक़्त में श्लोक इन फूलों के संग बैठकर

कविताएं किया करता।।

........................

  श्लोक के साथ कुछ वक़्त बिताने के बाद दीप्ति ख़ुशी ख़ुशी अपने घर लौट आई।।

इतिहास गवाह है कि खामोशी जब अपनी ज़ुबान खोलती है तो ज़िन्दगी में बहार आ जाता है।।

ये उन्माद भरा पल दीप्ति श्लोक को पूरे ४ वर्ष की कड़ी तपस्या के बाद मिला था।

आसानी से जो बयां हो जाए उसे मुहब्बत नहीं आकर्षण कहते हैं ।

अक्सर लोग आकर्षण ओर प्रेम का भेद नहीं जान पातें हैं

और अपने आकर्षण को ही प्रेम समझ बैठते हैं।

ठोकर आकर्षण में मिलता है प्रेम में नहीं ।

प्रेम तो दो अंतर्मन का मिलन है ।

और आकर्षण दो सूरत का मिलन ।

आकर्षण वाला प्रेम सूरत के साथ - साथ ढल जाता है ।

किन्तु वास्तविक प्रेम आत्मा की तरह अजर अमर रहता है।।।।

दीप्ति श्लोक का संयोग- हर्ष से भरा प्रेम क़रीब १० दिन तक ही चल पाया।.....

शायद परमात्मा को ये प्रेम मंजूर ही नहीं था।

एक रोज़ शाम के वक़्त दीप्ति और उसके छोटे भाई में

टीवी प्रोग्राम को लेकर नोक झोंक चल रहा तक.

भाई का कहना था मूवीज देखेंगे।

दीप्ति का कहना था सिरियल

अचानक भाई ने ये कहकर न्यूज लगा दिया ।

जा किसी का मन नहीं चलेगा।

न्यूज़ चेनल का लगना था कि एक सूचना जो बिजली कि गति से आया और दीप्ति का संसार उजाड़ कर चला गया।

" सूत्रों से पता चला है कि रांची से धनबाद ले जाने वाली

मार्ग पे ट्रक और कार की भारी भिड़ंत हो गई ।

..................जी हां श्लोक अब इस दुनियां में नहीं था

..............

आगे की कहानी फिर कभी।।।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance