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Rajeev Ranjan

Others

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Rajeev Ranjan

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नज़रिया जिन्दगी का

नज़रिया जिन्दगी का

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पहले पहल,

मुझे भी यूँ लगता था कि

मैं कोई दिव्य आत्मा हूँ

जो विहार को धरा पर आया हैं।

बचपन के इस मीठे भ्रम ने 

मुझे खुब पुचकारा।

दिलों को जीतने वाले हुनर ने

मुझे सत्ता दिलाई।

अपने मित्र खेमों का नेतृत्वकार 

अपने नवाबी अंदाज से,

हर शख्स का ध्यान अपनी और खींचता।

बाल सुलभ कि मनोहर क्रीड़ाओं से सदैव 

घर को सजाए रखता।

दिन बीतने में देर न लगी,

बालवस्था जानें कब किशोरावस्था 

कि और रुख कर गया भनक भी न लगी।

वक्त के साथ सब कुछ बदल गया।


आकार- परिवेश- आदत- पसंद- ख्वाहिश

आदत और पसंद तो एकदम विपरीत ही हो गया।

और हाँ वो नादानी भरा मीठा प्यारा भ्रम भी टूट गया।

पहले वाली दिनों और आज के दिनों में अभी 

बैठे-बैठे फर्क आंकता रहा हूँ।

काफी अंतर है यार 

गुलजार और उदासी में _

आज सब कुछ हैं,

हर प्रकार का ऐशो-आराम है ,

फिर भी दिल असंतुष्ट हैं।

और कहाँ कल पापा का बूढ़ा स्कूटर भी 

हवाई जहाज सा लगता था।


लालसा -मोह -कामना कि इस मायावी 

जाल में जिंदगी दिन प्रति दिन फंसते-उलझते जा रहीं हैं।

कहाँ पहले दिव्य आत्मा वाली फीलिंग स्वंय में शिरोमणि था ,

और कहाँ आज लालसा रुपी कभी न मिटने वाली भूख को मिटाने के लिए

काश्मीर से कन्याकुमारी शापीत आत्मा सा भटकते फिर रहा हूँ।



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