ca. Ratan Kumar Agarwala

Inspirational Others

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ca. Ratan Kumar Agarwala

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रिश्तों की कहानी

रिश्तों की कहानी

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बात तब की है जब मैं कॉलेज में पढ़ता था। साल 1982 में ही मैं जन्मस्थान धुबड़ी छोड़ कर मेट्रिक के बाद गुवाहाटी आ गया था। कॉलेज में कई नये दोस्त बन गए थे। उन्हीं में से एक था सुरेंद्र। वह पढ़ाई में बहुत होशियार था। मैं भी पढ़ाई में बुरा नहीं था। हम दोनों की सोच भी कुछ एक जैसी थी। हम दोनों की दोस्ती धीरे धीरे बहुत गहरी हो गयी । कॉलेज में ऐसा कोई भी दिन नहीं गया होगा जब मैंने उसके नूनमाटी वाले घर में जाकर घंटों नहीं बिताएं हो। उसकी माँ के हाथों से बनी पूड़ी और सब्जी तो मैं कभी भूल नहीं सकता। न जाने कॉलेज के पांच सालों में कितनी बार खायी होंगी। जैसा की मैंने बताया कि पढ़ाई में हम दोनों ही अव्वल थे। कभी वह प्रथम आता तो कभी मैं । लेकिन हमें कभी एक दूसरे से जलन या ईर्ष्या नहीं हुई ।

 

बारहवीं की वाणिज्य बिभाग की परीक्षा में उसे राज्य में प्रथम स्थान मिला और मुझे दूसरा । जिस दिन यह खबर मिली कि मुझे दूसरा स्थान मिला है, मैं कमरे में जाकर रोने लगा पर बाद में जब याद आया कि पहला स्थान तो मेरे सबसे अजीज दोस्त सुरेंद्र को मिला है तो मेरी ख़ुशी का पारावार न रहा। हम दोनों का रिश्ता ही कुछ ऐसा बन गया था।

 

फिर जब स्नातक की परीक्षा में गुवाहाटी विश्वविद्यालय से मुझे प्रथम स्थान मिला तो सबसे अधिक हर्ष तो सुरेंद्र को ही हुआ था।

 

दोस्ती का रिश्ता तो ऐसा ही होता है। बिलकुल निःस्वार्थ। एक दूसरे की ख़ुशी में खुश और दुःख में दुःखी। खून का सम्बन्ध भी ज्यादातर ऐसा नहीं होता जैसा सच्ची दोस्ती का होता है।

 

दिन गुजरते गए। दोनों करीब करीब साथ साथ सी ए बन गए और अपनी अपनी ऑफिस खोल प्रैक्टिस करने लगे पर दोस्ती बनी रही। 1993 में मेरी शादी हुई। बाद में मेरी पत्नी और उसकी पत्नी दोनों भी सहेलियां बन गयी। 1998 में मुझे अग्नाशय (Pancreas) की बिमारी हुई तब तो सुरेंद्र ने जो दोस्ती का मान रखा वह मैं कभी भुला नहीं सकता। सच, दोस्ती का रिश्ता ऐसा ही होना चाहिए।


पर वक़्त पलटते देर नहीं लगती। कुछ साल बाद हम दोनों में किसी बात को लेकर संशय की स्थिति पैदा हो गयी थी। बड़ा बुरा लगता था दोस्ती में पड़ी इस दरार के लिए। हम दोनों ने एक दूजे से बातचीत बंद कर दी थी। पर मन में सदा इस बात का गम भी था। मेरी पत्नी और उसकी पत्नी के बीच दोस्ती सही रास्ते पर थी। एक बार मेरी पत्नी ने मुझे समझाया कि दोस्ती सदा नहीं मिलती सो कोशिश करके दोस्ती वापस कायम कर लूँ। पर कोशिश करके भी मैं उतना सहज़ नहीं हो पाया था।


पर जैसा कि मैंने कहा कि वक़्त सदा एक नहीं रहता। हाल ही में एक दिन मैंने सोचा कि सुरेंद्र के घर जाना चाहिए। पत्नी से पूछा तो उसने भी हामी भर दी। पहुँच गए दोनों सुरेंद्र के घर। ऐसा लगा कि हमने कॉलेज वाले दिन फिर से जी लिए हों। डेढ़ दो घंटों तक हम सब गप्पे लड़ाते रहे मानों कुछ हुआ ही न हो । बड़ा सुकून मिल रहा था। एक खो से गए रिश्ते को हम दोनों ने उन डेढ़ दो घंटों में ही बखूबी जी लिया था ।


यही थी हमारे इस अनमोल रिश्ते कि सच्ची कहानी, जिसे कुछ सालों के अंतराल में ही सही, पर हम दोनों ने वापस पा लिया था। संशय कि धुल हट चुकी थी । यादों की पोटली उस दिन खुल चुकी थी। रिश्ते की एक नयी शुरुआत थी दीपावली के कुछ ही दिनों के बाद । शायद हम दोनों को यह ईश्वर की सौगात थी ।


सच में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो बाकी रिश्तों से अलग ही होते हैं। इन्हीं में एक है दोस्ती का रिश्ता। जिसने इस रिश्ते की सच्चाई समझ कर पूरी शिद्दत के साथ इस रिश्ते को निभा लिया उसने मानों ईश्वर की इनायत पा ली। इस रिश्ते में कौन गरीब कौन अमीर यह सब बातें मन में नहीं आती। बस एक रिश्ता होता है दोस्ती का, निःछल सा, पवित्र सा। एक दूसरे के दुःख में दुःखी होना, ख़ुशी में खुश होना, यही तो है दोस्ती जिसे मैंने कुछ समय के लिए दोस्त को खोकर जब फिर पाया तब जाना।


अंत से पहले कुछ पंक्तियाँ और लिखना चाहता हूँ :-


“उलझनें न रहेगी जब रिश्तों में,

जीवन होगा खुशियों का जहान।

सुलझा लो रिश्तों की गुत्थियां,

दे दो रिश्तों को सही पहचान।'

 


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