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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy Inspirational

बेदखल

बेदखल

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8 मई को पूरा विश्व मातृ दिवस मना रहा था। कृष्णनगर के “शारस्वत वृद्धाश्रम” में भी मातृ दिवस की तैयारियां चल रही थी। इंग्लैंड के किसी परिवार से कोई डॉक्टर नरेन, पत्नी शालिनी और उनके दोस्त आश्रम की महिलाओं के साथ मातृ दिवस मनाने आने वाले थे। मन में एक सवाल भी था। यह मातृ दिवस की तैयारी चल रही थी या नरेन दम्पति को ख़ुश करने की कवायद? साल भर तो हम “माँ” को पूछते तक नहीं। अजीब विडम्बना है हमारी। जिस माँ ने नौ महीने उसे कोख में रखा उस माँ की ओर जरा भी फर्ज़ नहीं बनता? यह सवाल कोंध रहा था कि क्योँ बच्चे बुजुर्गों को आजकल वृद्धाश्रम में छोड़ जाते हैं? उसी वृद्धाश्रम में एक औरत थी नलिनी देवी। कई सालों से वह वृद्धाश्रम में ही थी। पति सुरेश की तो पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। बेटा बहू को इंग्लैंड में बसना था इसीलिए वर्षों पहले कृष्णनगर का पुश्तैनी घर बेचकर चले गए थे। माँ को फुसला कर घर के कागजों में दस्तखत ले लिए थे। सारा भुगतान भी लड़के ने अपने नाम लिया और नलिनी देवी को वृद्धाश्रम में छोड़ गए। सारी माँओं की तरह नलिनी देवी भी उस दिन वृद्धाश्रम में बैठी राह देख रही थी कि शायद उसका बेटा आज आए उससे मिलने। कोई तो आज उसे “माँ” कह कर पुकारेगा। पर आजकल बेटों को कहाँ फुर्सत हैं? माँ को माँ कहने में उन्हें शर्म महसूस होती हैं। नलिनी देवी सुबह से प्रतीक्षा कर रही थी कि शायद बेटा आ जाए। ऑंखें पथरा गई थी। शरीर में दम नहीं था। शाम हो गई। तभी बाहर दरवाज़े के पास एक गाड़ी रुकी। कुछ प्रतिष्ठित दिखने वाले पुरुष, कुछ महिलाएं और 15 साल का बच्चा। सबके हाथों में कुछ न कुछ सामान था। किसी संस्था का झंडा भी था। नलिनी देवी ने चश्मा लगाकर देखा। हाँ, उनमें उनके बेटे बहू भी थे। “शायद ले जाने आए हैं”, सोचकर नलिनी देवी ख़ुशी से मुस्कुरा उठी। वे लोग वृद्धाश्रम की महिलाओं में खाना बाँट रहे थे, फोटो खिंचवा रहे थे। तभी किसी की आवाज़ आई, “मैं नरेन, मेरी पत्नी शालिनी, और बेटा यीशु आज ही इंग्लैंड से लौटे हैं। कैसा जमाना आ गया है, लोग अपनी माँओं को क्यों अपने साथ नहीं रख सकते? मेरी माँ तो जब तक “जिन्दा” थी, हम सब साथ रहते थे, माँ पिछले दिनों ही “गुजर” गई, पर मेरे दिल में सदा रहती है”। लोग तालियां बजा रहे थे।

रोज मर मर कर जीने वाली वह वृद्धा, आज कभी वापस न आने के लिए मर चुकी थी, उसकी साँसे रुक चुकी थी सदा के लिए, हाथ बेटे की ओर आशीर्वाद की मुद्रा में। बेटा अनदेखी करके मरी हुई माँ को फिर मार कर जा रहा था। आज फिर एक बेटा अपनी मरी हुई माँ को अपने जीवन से “बेदखल” किये जा रहा था। तभी यीशु की आवाज़ आई, “पापा, देखो यह दादी अम्मा। दादी की फोटो से मिलती जुलती। आपने तो कहा था कबकी मर चुकी। पर इन लोगों का कहना है की ये वर्षों से यही थी और अभी अभी देहांत हुआ हैं। आपने दादी के लिए मुझसे झूठ कहा। आज से आप भी मेरे लिए मर चुके। अब मैं यहीं रहूँगा और आपके अपराध का प्रायश्चित करूँगा।“ जिस नरेन ने अपनी माँ को जीते जी मार दिया था आज उसी नरेन को उसके बेटे ने भी अपनी जिन्दगी से बेदखल कर दिया था।

समाज के समक्ष जो अनसुलझा प्रश्न था शायद अब सुलझ रहा था। नरेन ने सब से क्षमा मांगी और अपनी माँ का पूरे नीति नियम से दाह संस्कार करवाया और वृद्धाश्रम को हर साल 10 लाख रुपये भेजने का वादा किया।


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