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Seema Singh

Drama Inspirational Others

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Seema Singh

Drama Inspirational Others

रिश्तों के आड़ में धोखा...!!!

रिश्तों के आड़ में धोखा...!!!

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जब बेटी को पालने की औकात नही थी तो‌ बेटी को जन्म क्यों दि.... यही दिन दिखाने के लिए..."चारु गुस्से में अपने माता-पिता को कह रही थी....


"बेटा ऐसे नही बोलते, तुम तो हम दोनों की जिंदगी हो, जो कुछ हुआ इसमें तेरी गलती नहीं है, गलती तो हम लोगों से हो गई उस इंसान को पहचानने में...हमें क्या पता था, वो इंसान के भेष में भेड़िया होगा..."अपनी बेटी चारू को शांत करते हुए उसकी मां(सुधा) उसके सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहीं..


तभी दादी"ये क्या बात हुई, पति पत्नी के बीच तो छोटी मोटी अनबन होती है।इसका मतलब ये है नही की घर छोड़ कर आ जाना"।समाज में क्या हमारी इज्जत रहेगी".... चारु को कहते हुए।


"आपको अपनी इज्जत की पड़ी, वहां मेरी जान पे आ गई थी।"चारु ने गुस्से में अपनी दादी को कही....


"शांत हो जाओ आप दोनों, अब बहस करने से कुछ हासिल नही होगा, जो होना था वो‌ हो गया"....चारु के पापा(अजय) चारु और अपनी मां को शांत रहने के लिए कहते हैं....


"कैसे शांत हो जाऊँ पापा, उस इंसान ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी, मेरे अस्तित्व को खत्म करने की कोशिश की..."चारू ने अपने पापा को कही....


"बेटा हमें क्या पता था कि अपने ही हमारे साथ दागा करेंगे... अगर शादी से पहले थोड़ा सा भी आभास होता तो तुझे उस नरक में कभी नहीं जाने देता.."पापा कहते हैं चारू को...


चारु अपने माता-पिता की एकलौती संतान है।पर कुछ स्वाथी रिश्तेदार अपनी स्वार्थ के लिए अपने ही भोले भाले रिश्तेदारों का फायदा उठा लेते हैं।खास कर वो इंसान जिनसे आप को उम्मीद नही होती की वो कभी आप के साथ ऐसा धोखा करेंगे।पर जीवन की व्यथा तो देखिए आज चारु के साथ जो कुछ भी हुआ उसकी ज़िम्मेदार कोई पराया नहीं बल्कि उसकी अपनी बुआ(आरती) थी। वो बुआ जिसको चारु के पापा अपनी बहन कम और एक बेटी की तरह प्यार और अपनापन दिया।


पर पैसे और शोहरत के आगे अपनो के प्यार की कोई कीमत नहीं होती। अजय और सुधा को शादी के पांच साल भी कोई बच्चा नहीं हुआ था...तब आरती और उसकी बेटी (रिया) की ज्यादा आवभगत होती थी... सुधा और अजय भी रिया को बहुत प्यार करते थे.. आरती भी बहुत खुश...की भाईया और भाभी की अपनी कोई संतान नहीं है अब जो कुछ भी है सब मेरी रिया का होगा..। आरती "भाईया रिया तो आपकी ही बेटी है ना, क्या आप दोनों अपने बच्चे की जिद कर रहे हैं। आप के पास किसी चीज की कमी है सब कुछ तो है".. तभी सुधा " आपके पास कितनी भी दौलत क्यों ना हो जाए पर जब तक मां का आंचल सुना है तो आप दुनिया के सबसे अमीर इंसान हो के भी सबसे गरीब है, अपनी संतान को जन्म देने की खुशी ही कुछ और है'"।


पर कहते हैं ना जिसका मन सच्चा हो उसकी प्रार्थना कभी अधुरी नही जाती... चारु उसी प्रार्थना का फल है। चारु के आने से सुधा और अजय के जीवन का अधूरापन अब पुरा हो गया था।पर ये बात आरती को रास ना आई उसे लगा चारु के आ जाने से अब भाईया और भाभी रिया को उतना प्यार नही करेंगे और उसका मान कम हो जाएगा। अपने स्वार्थ के मोह में इस कदर आरती अंधी हो गई थी की उसकी सही और गलत की समझ पुरी तरह खत्म हो गई थी। जैसे जैसे वक्त बितता गया आरती हर वक्त चारु को गलत साबित करने पर लगी रहती है। और अपनी मां (दादी) को भी चारू के प्रति नफ़रत पैदा करने लगी थी और दादी भी अपनी बेटी के मोह में सब कुछ भुल सी गई थी। आरती ने जो कहा वही सही और चारू ने अपनी सफाई में कुछ कहना वो ग़लत....


रिया भी चारू से जलने लगी थी और हो भी क्यों ना क्योंकि आरती ने उसे ऐसी परवरिश ही दी है। रिया कि शादी की उम्र हो गई थी पर कोई भी अच्छा रिश्ता नहीं आ रहा था। जब भी कोई अच्छा रिश्ता आरती और रिया का एक ही कहना उसके पास दौलत नहीं है। अजय का कहना था पैसे से ज्यादा इंसान की मेहनत की कीमत है...अगर इंसान मेहनती हो तो उसके लिए दौलत कामना कोई बड़ी बात नहीं है ।पर जिसके पास दौलत तो है पर उसे संभाल कर रखने की समझ नहीं वो सब जमा-पूंजी को एक पल में बर्बाद कर देगा.....पर ये बात आरती और रिया को कहा से समझ आयेगी।


पर किस्मत की बात पैसे के चक्कर में आरती ने रिया की शादी उससे उम्र में 10 साल बड़े आदमी से कर दी और इसमें रिया की भी मर्जी और आरती का पति(नकुल) उसके सलाह की कोई किमत नही।पर ये रिश्ता अजय और सुधा को पसंद नही था।पर आरती की जिद के आगे किसी की चली कहा है। पैसा आज है कल नही और वही रिया के साथ हुआ।उसके पति का‌ बिजनेस ठप पड़ गया और रिया का अपने पति से तलाक हो गया। और इसके लिए आरती अपने भाईया और भाभी को ही जिम्मेदार ठहराती।


आरती "भाईया अपने मदद की होती तो आज रिया का तलाक नहीं होता।"


अजय "मैंने, मैं तो इस रिश्ते के खिलाफ था। शादी से पहले ही मैंने कहा था कि ये एक बेमेल रिश्ता। ये शोहरत सिर्फ दिखावे के लिए। इनका पहले से ही दिवाला निकल चुका है। पर तुम्हें लगा था कि मैं रिया का दुश्मन हूँ।"


अजय और सुधा के बहुत समझाने पर भी आरती नही मानती..पर कुछ दिनों के बाद आरती अपने भाईया और भाभी से मिलने आती और साथ में चारु के रिश्ता भी लेकर आती।


आरती "माफ कर दो भाईया मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई, पर जो हो गया वो हो गया। रिया को भी कोई ना कोई अच्छा जीवनसाथी मिल जाएगा। मैं चारु के लिए बहुत ही अच्छा रिश्ता लेकर आई हूँ । मेरे ससुराल के रिश्ते में आते।लड़का और उसके परिवार वाले बहुत अच्छे हैं। लड़के की भी अच्छी नौकरी है। अपनी चारु बहुत खुश रहेगी।"..... अपनी बुआ के मुंह से अपने लिए इतनी तारीफ सुनकर चारू बहुत चौक जाती है और अपनी मां को कहती है "ये बुआ को क्या हो गया है, ये आज ऐसे बर्ताव क्यों कर रही है"।..."ऐसे नहीं बोलते वो उस वक्त परेशान थी , पर अब रिया भी पहले से बेहतर है। और तेरी बुआ तेरा भला ही चाहेंगी "सुधा जी अपनी चारु को प्यार से समझते हुए कहीं..


अजय और सुधा ने भी आंख बंद कर आरती की बात मान ली। बिना कोई जांच पड़ताल किए अपनी बेटी की शादी कर दी।इस भरोसे पर की वो उनकी बहन के रिश्तेदार में है। शादी के कुछ महीनों के बाद ही चारु को अपने पति और उसके परिवार की सच्चाई का पता चला। चारु का पति कोई नौकरी नही करता...वो बस दिखावे के लिए था। ससुराल में आए दिन चारु को मानसिक यातनाएं दी जा रही....हद तो तब हो गई जब आए दिन चारु के साथ उसके पति और ससुराल वाले मारपीट करने लगे। पर चारू भी चुप कहा रहने वाली उसने भी अपना ससुराल छोड़ अपने माता-पिता के पास आ जाती है और उन्हें सारी बातें कहती।


तब अजय आरती को फोन करता तब आरती बिना हिचकिचाए बड़ी बेशर्मी से अपने भाई को कहती"शादी से पहले जांच पड़ताल क्यों नहीं की, यही बात अपने कहीं थी ना मुझे..जब मेरी बेटी सुखी नही रह सकती तो मैं आपको और आपकी बेटी को खुश कैसे रहने देती.. मुझे सब कुछ पहले से पता था।".


."तुम मेरी बहन हो.. मैंने हमेशा तुझे अपनी बहन कम एक बेटी की तरह प्यार किया। तुम पर विश्वास करके अपनी बेटी की शादी की और तुमने...ये सब जानबूझ कर किया.... तुम अपनी सर्वार्थ और जलन में इतनी आंधी हो गई हो की रिश्तों का मान भी रखना भूल गई। गलती तेरी नहीं मेरी है..जो मैंने तुम पर विश्वास किया.. आज जीवन का बहुत बड़ा सबक सिखा दिया तूने।अपने हो या पराये कभी भी किसी पर आंख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए".... इतना कह कर अजय फोन कट कर देते हैं। आरती के इस धोखे से पूरा परिवार सन्न रह जाता हैं।


चारु को अपने परिवार का साथ मिलता और साथ में इन्साफ भी। चारू फिर से अपनी जिंदगी की शुरुआत करती है जिसमें पूरे परिवार का सहयोग होता है। चारु के साथ साथ उसके माता-पिता और दादी के लिए भी बहुत मुश्किल वक्त था पर धीरे धीरे सब ठीक हो जाता है। वक्त से बड़ी कोई दवा. नहीं....।


किसी अजनबी से मिले धोखे का दर्द उतना नहीं होता जितना किसी अपने संगे से मिले धोखे का होता है.... इंसान की फितरत बदलते देर नहीं लगती। जब इंसान के मस्तिष्क में स्वार्थ और दिल में फरेब घर कर जाता है तो ना उसे किसी रिश्ते की परवाह नहीं होती है और ना किसी का डर।


रिश्ता कहीं भी जोड़े, पर उसकी जांच पड़ताल जरूर करें आखिर पुरी जिंदगी का सवाल है।


धन्यवाद


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