रिश्तो का मकड़जाल भाग 2
रिश्तो का मकड़जाल भाग 2
स्टेशन से घर पहुंच नैना दीदी, उनके पति व उनके पापा मानसिक रूप से परेशान तो थे ही और लंबी यात्रा से कुछ शारीरिक रूप से भी थक चुके थे। घर का ताला खोल नैना दीदी सीधे अपने कमरे में चली गई, नैना के पति ने पापा से चाय के लिए पूछा तो उन्होंने मना कर दिया और वह भी यह बोल कर अपने कमरे में चले गए कि उन्हें नींद आ रही है सुबह के लगभग 4:00 4:30 बज रहे थे, नैना दीदी को सर पर हाथ रख लेटी हुई देख उनके पति ने उनसे कहा " नैना चाय पियोगी?" नैना दीदी ने सिर हिलाकर ना कर दी। फिर उनके पति भी लाइट बंद कर पलंग पर लेट गए।
अभी तक नैना दीदी को अपनी बहन की आत्महत्या पर विश्वास नहीं हो रहा था, वह यह सोच रही थी कि अगर उसे आत्महत्या करनी होती तो वह दो-तीन साल पहले ही कर चुकी होती जब उसे नीतीश की करतूतों के बारे में पता चला था, अपनी हंसती -खेलती बहन को कई सालों से गुमसुम सा देखा था पर वह कभी हालातों के आगे टूटी नहीं थी। बेचैन होकर नैना दीदी दूसरे कमरे में चली गई जहां उनके पापा सो रहे थे। दरवाजा खोल के देखा तो पापा पलंग पर टेक लगाएं किसी सोच में बैठे थे, उन्हें देख कर नैना दीदी रसोई में गई और दो कप कॉफी बना कर, फिर पापा के पास आकर बैठ गई पापा को कॉफी पकड़ा कर नैना दीदी अपने आंसू नहीं रोक पाई "पापा मैं नीतू को नहीं बचा पाए, उन लोगों ने आखिर नीतू को मार ही दिया, मुझे पता चला है नितिन ने नीतू की सारी डायरी भी जला दी है।" ऐसा बोलते-बोलते नैना दीदी जोर -जोर से रोने लगी, नैना दीदी को कमरे में ना देख उनके पति भी पीछे -पीछे पापा वाले कमरे में आ गए, उनका मन नैना को चुप कराने का था पर उन्हें लगा रोने से दिल का बोझ कुछ हल्का हो जाएगा। हाथ में पकड़े कॉफी मग में भी उनके आंसू गिर रहे थे, कॉफी को वही रख, वह अपने कमरे में चली गई। रोते-रोते उन्हें नींद आ गई। नैना दीदी को सोता देख उनके पति भी कुछ देर के लिए सो गए।
सुबह 9:30 बजे डोर बेल की आवाज सुन नैना दीदी उठी दरवाजा खोल कर देखा पड़ोस में रहने वाली उनकी एक सहेली सुबह का नाश्ता लेकर आई, नाश्ता देते हुए वह बोली "नैना मैं बाद में फिर आऊंगी अभी तुम लोग सब, यह नाश्ता कर लो"
उस से नाश्ता ले, नैना दीदी नहा धोकर सबको नाश्ता करा वहीं सोफे पर बैठ गई।
नैना कई साल पहले यादों के उस पल में चली गई जब उनके घर में इस घटना का पहला बीजारोपण हुआ था।
उन्हें अच्छे से याद है वह घर के लैंडलाइन फोन की घंटी जो दो -तीन बार बज के कट गई थी, बिस्तर पर बीमार पड़ी उनकी मां नैना दीदी को आवाज लगा रही थी शायद वो किसी काम में व्यस्त थी और घर में कोई और नहीं था अतः अपना काम निपटा कर नैना दीदी मां की पलंग के पास आकर बैठ गई। फिर फोन की घंटी बजी तो नैना दीदी ने फोन उठाया दूसरी तरफ से उनकी सगी मौसी फोन पर थी बिना उनके नमस्ते का जवाब दिए "बोली अपनी मम्मी से बात कराओ"
मम्मी को तकिए का सहारा लगा दीदी ने मम्मी को फोन दे दिया, इधर से बार-बार मम्मी यही कही जा रही थी "तू फ़िक्र मत कर, हम लोग हैं।"
फोन रखने के बाद नैना दीदी की मम्मी बोली "लखनऊ से छोटी व कम्मो का फोन आया था (यह दोनों ही नैना दीदी की मम्मी की सगी बहने थी दोनों की शादी एक ही घर में हुई थी।)
दोनों बहुत परेशान हो रही थी, तीसरी बार अनीता फिर से दसवीं में फेल हो गई", अपनी मम्मी की बात बीच में काटते हुए नैना दीदी बोली "उस लड़की का पढ़ाई में मन कब लगता है वह तो पूरे मोहल्ले की दादी अम्मा बनी घूमती है।"
"अरे नहीं उसकी मां और कम्मो बहुत परेशान हो रहे थे तेरे मौसा जी ने उसकी आगे की पढ़ाई बंद कर दी है लड़कियों का पढ़ा लिखा होना बहुत जरूरी है दोनों मुझसे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे थे कि मैं इसे यहां बुला लूं और नीतू के स्कूल में अनीता का भी एडमिशन करा दो" अपनी मां की बात सुन नैना दीदी फिर बोली "अरे मम्मी वह बच्ची नहीं, आफत की पुड़िया है ऐसा सोचो भी मत आप बिस्तर पर हो, नीतू और छोटा अभी पढ़ रहे हैं और कुछ दिनों बाद मेरी शादी हो जाएगी उसकी जिम्मेदारी कौन उठाएगा।"
शाम को नैना दीदी के पापा, नीतू को उसकी कोचिंग से लेकर घर आए तो नैना दीदी ने अपने पापा को अनीता के बारे में बताया। उनके पापा भी नैना की बात से सहमत थे लेकिन नीतू व अपनी पत्नी की जिद के आगे हार कर, उन्होंने अनीता को अपने घर बुलाकर आगे की पढ़ाई कराने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी।
नीतू और अनीता में 5 से 6 साल का अंतर था और दोनों की ही बचपन से काफी अच्छी बनती थी, नीतू को लगा नैना दीदी की शादी के बाद उसे बहन की कमी महसूस नहीं होगी।
कुछ दिनों बाद अनीता अपना बोरिया बिस्तर लखनऊ से समेट उनके पास रहने आ गई, नीतू के घर का माहौल अनीता के घर के माहौल से पूरी तरह से अलग था, सब लोग एक अनुशासन में रहते थे, नैना दीदी को अनीता कुछ खास पसंद नहीं थी और उसका बड़बोलापन उन्हें कभी नहीं भाता था, जब तक नैना दीदी उस घर में थी तब तक वह उनसे कुछ डर कर रहती थी पर उनकी शादी के बाद अनीता ने अपने पैर ऐसे फैलाएं कि मानो वह उस घर की मालकिन हो, नीतू जो दिखने में लंबी चौड़ी सुंदर व हर कार्य में निपुण थी वही अनीता 5 फुट सांवला रंग लिए औसत दिखने वाली चतुर लड़की थी। वह अपनी बातों से किसी को अपने वश में कर लेती थी, नीतू जो एक निडर ,हर कार्य में निपुण रही, वह भी अनीता की बातों में आ जाती। जैसे-जैसे करके नीतू ने अनीता को 3 सालों में 12वीं पास करा दी। इस बीच नीतू की मां का भी स्वर्गवास हो चुका था तथा अब पूरे घर पर अनीता ने अपना कब्जा कर लिया क्योंकि अब उसे देखने वाला कोई नहीं था नीतू अपनी पढ़ाई पूरी कर नौकरी करने लगी तथा उसका छोटा भाई आगे की पढ़ाई करने के लिए हॉस्टल चला गया।
एक दिन सुबह 4:00 बजे घर की बेल बजी देखा तो एक लंबा चौड़ा साफ रंग का लड़का दरवाजे पर खड़ा है ,नीतू के पापा ने जब उसका परिचय पूछा तो पता चला कि वह अनीता की चाची का भतीजा है जो वाराणसी में रहता है और यहां किसी कार्य के लिए आया हुआ है, उसे अपने घर पर देख नीतू के पापा कुछ अचंभित हुए ही थे कि पीछे से अनीता आ गई, "मौसा जी यह नितिन भैया है मुझे पता चला कि वह यहां आ रहे हैं तो मैंने उन्हें घर पर ही बुला लिया , मैंने सोचा जब अपना घर है तो होटल में क्यों रहे। ऐसा बोल वह नितिन को अंदर ले गई।
सुबह उसने नितिन की मुलाकात नीतू से कराई, नितिन उनके घर 3 दिन रहा और तीनों दिन की नीतू ने अनीता के कहने से अपने ऑफिस से छुट्टी ले ली अपना काम निपटा कर नितिन इन दोनों बहनों को लेकर पूरा दिन घूमता रहता। इस तरह से नीतू और नितिन की अनीता ने दोस्ती करा दी।
इसी बीच विदेश में रह रहे नीतू के भाई की शादी हो गई और वह अपनी पत्नी को कुछ महीनों के लिए हिंदुस्तान में छोड़ कर चले गए ताकि वह उसके पेपर और वीजा बनने के बाद अपने साथ ले जा सके।
अनीता का व्यवहार नीतू की नई नवेली भाभी के साथ कुछ सही नहीं रहता आए दिन वह किसी ना किसी काम के लिए भाभी को ताना मारती रहती, भाभी उसकी चालाकियां समझने लगी थी और उन्होंने इस बात का जिक्र अपनी ननद नीतू से भी किया लेकिन नीतू अनीता पर आंख बंद करके विश्वास करती थी ,उसने अपनी सगी भाभी की बात ना मान, उन्हें ही उल्टा सीधा बोलतीं। अब भाभी भी अपने विदेश जाने के दिन गिनने लगी, जब तक भाभी भारत में रही वह अक्सर देखती थी नीतू किसी नितिन नाम के लड़के से दिन-रात बात करती हैं पर उन्होंने अनदेखा कर दिया। तय समय के अंदर वह भी विदेश चली गई।
नीतू का अब घर लखनऊ वाली उसकी मौसियों तथा अनीता की राय से चलने लगा।
नीतू की मौसियों तथा अनीता के कहने और नीतू की जिद के कारण, नीतू के पापा ने नीतू की शादी नितिन से कर दी।
कुछ महीनों के अंदर ही नितिन और नीतू के लड़ाई-झगड़े के किस्से आम हो गए, जो लड़का नीतू को बहुत पसंद था और नितिन भी नीतू के प्यार के कसीदे पढ़ता था, वह अब अक्सर नीतू पर चिल्लाता हुआ ही दिखता था। इधर नीतू के घर पर उसका छोटा भाई अपनी पढ़ाई पूरी कर, नौकरी करने लगा उसे अनीता का ज्यादा हस्तक्षेप अपने घर पर पसंद ना होने के कारण ,उसने अनीता को वापस लखनऊ सम्मान के साथ भेज दिया।
नीतू अपनी दिल की सारी बात अपनी सगी बहन से सांझ न करते हुए अनीता से अपने वैवाहिक जीवन की हर परेशानी कहती और उसकी राय के अनुसार अपना काम करती। अनीता की सलाह के कारण, नितिन -नीतू दिन पर दिन दूर होते जा रहें थे, नितिन रात भर किसी से फोन पर लगा रहता, यह बात जब नीतू ने अपनी जेठानी कंचन को बताइए तो कंचन ने उन्हें सलाह दी कि अब तुम एक बच्चे के बारे में सोचो बच्चा आने के बाद शायद नितिन का बर्ताव बदल जाए।
इस तरह नीतू की शादी को 3 साल बीत गए पर बहुत कोशिश के बाद भी नीतू कि गोद न भर पाई, सास की सलाह से नीतू ने जब अपना चेकअप कराया तो उसकी सारी रिपोर्ट सही आई, जब नितिन को मेडिकल चेकअप के लिए बोला गया तो नितिन गुस्सा दिलाता हुआ हर बार बात टाल जाता। जब भी नैना दीदी नितिन से बात करती तो नितिन उन्हें अपनी बातों में बहला लेता।
नितिन और नीतू की बहस बहुत बढ़ चुकी थी, अब आए दिन नितिन को नए-नए नंबरों से दिन रात फोन आते, घर ,बाजार यहां तक कि दुकान में भी अब फोन बिना हिचकिचाहट के आने लगे। जब भी नीतू या घर वाले उससे इस विषय में बात करते हैं तो वह लड़ने लगता। घर का सारा बिजनेस नितिन के हाथ में होने के कारण उसके भाई उससे ज्यादा बहस नहीं करते। घर के सब लोग नीतू को ही चुप रहने की राय दे देते। 1 दिन रात में नीतू और नितिन की फिर फोन को लेकर तथा अकाउंट से निकाले जाने वाले पैसों को लेकर बहस होने लगी इस बहस के बीच नितिन बिना अपना फोन लिए दूसरे कमरे में सोने चला गया, फोन की रिंग बजते ही नीतू ने देखा कि फिर किसी नंबर से फोन आ रहा है उसने तुरंत फोन उठा लिया, जैसे ही फोन कान पे लगाया , दूसरी तरफ से हेलो की आवाज ने उसके होश उड़ा दिए। फोन काट कर नीतू सुन्न रह गई। ऐसा क्या उसने सुन लिया था कि पूरी रात उसने आंखों में काट दी और सुबह होते- होते उसकी आंख लग गई।
नैना !नैना! की आवाज ने नैना दीदी को वर्तमान में लाकर रख दिया, दरवाजे पर देखा तो नैना की सहेली के साथ कुछ पड़ोसन संवेदना प्रकट करने उनके घर आए हुए थी।
