रिश्तो का मकड़जाल अंतिम भाग
रिश्तो का मकड़जाल अंतिम भाग
नीतू की अचानक आंख खुली तो देखा सुबह हो चुकी थी, नितिन रात भर कमरे में नहीं आया था उसका फोन वहीं पर पड़ा हुआ था, आंख खुलते ही सबसे पहले नीतू ने उसके अनसेफ नंबर चेक किए नंबर चेक करते समय उसे एक मैसेज दिखाई पड़ा जो शायद वह डिलीट करना भूल गया था, वह बैंक का मैसेज था जिसमें मनी ट्रांजैक्शन दिखाया जा रहा था, एक भारी रकम किसी अकाउंट में ट्रांसफर हुई थी, सारी जानकारी लेने के बाद, नीतू जल्दी से नहा धोकर, अम्मा जी की पूजा की थाली तैयार करने के लिए उनके कमरे में चली गई ।
परिवार वालों को भी नीतू और नितिन की लड़ाई की आदत सी हो गई थी इसलिए कोई भी इस बारे में बात नहीं करता था। पर आज अम्मा जी को नीतू का गुमसुम सा चेहरा समझ नहीं आ रहा था थाली को देखते हुए अम्मा जी बोली "बहू आज तुम्हारा ध्यान कहां है?, देखना तो ,तूने इसमें न माचिस रखी है और ना ही रोली।"
नीतू ने तुरंत ही अपनी गलती सुधारते हुए दोनों समान अम्मा जी को पकड़ा दिए, जैसे ही नीतू उठकर रसोई की तरफ जाने लगी ,अम्मा जी फिर बोली "तुम्हारी आंखें कैसे सूजी हुई है क्या रात भर सोए नहीं, अपने को ऐसे मत जलाया कर, देख वह तो अपने में मस्त हो जाता है, तू भी मस्त रहा कर, लड्डू गोपाल तेरी गोद भर देते, तो तू भी अपने जीवन में व्यस्त हो जाती।"
हरे राम !हरे कृष्णा! का जाप करते हुए अम्मा जी अपनी पूजा में लग गई, नीतू रसोई में जाकर गुमसुम गैस चूल्हे के पास खड़ी हो गई,
"अरे नीतू , तुम कब आए"?
"बस अभी -अभी आई"
ऐसा कंचन भाभी को जवाब देते नीतू, रोने लगी,
"अरे क्या हुआ नीतू तुम आज इतना क्यों रो रही हो" चाय चढ़ाते हुए कंचन भाभी ने पूछा
"कुछ नहीं भाभी, आज मां की बहुत याद आ रही है, मन करता है कि उनके पास चली जाऊं।"
नीतू की बात सुन कंचन भाभी ने उसे एक गिलास पानी देते हुए पूछा "क्या हुआ ? ऐसे क्यों बोल रही हो।"
नीतू अपने अंदर चल रहे द्वंद्व को रोक नहीं पाए और कंचन भाभी को बताने लगी "आपको पता है नितिन किस से बात करते रहते हैं?"
कंचन भाभी के हाव -भाव से ऐसा लग रहा था कि वह कुछ इस मामले में जानती है, चाय में दूध डालते हुए वह बोली "मुझे साफ-साफ बताओ क्या क्या बात है"।
नीतू अपने आंसू पूछते हुए बोलने लगी "कल हमारी लड़ाई के बाद नितिन कमरे से जल्दबाजी में निकलते वक्त अपना दूसरा फोन वही भूल गए, कुछ देर बाद एक अनसेफ नंबर से लगातार नितिन के फोन पर घंटी बज रही थी, मैंने जैसे ही वह फोन उठाया पता है किसकी आवाज मैंने सुनी? वह लखनऊ में रहने वाली मेरी बहन अनीता की आवाज थी।"
गैस बंद कर अनिता भाभी ने पूछा "बुआ जी के जेठ की लड़की है ना वह।"
'हां 'कहकर नीतू सोच में पड़ गई।
दो कप में चाय निकालकर कंचन भाभी बस इतना ही बोली उससे बचकर रहो, उसके बारे में मैंने कुछ अच्छा नहीं सुना है।
आज नीतू का किसी काम में मन नहीं लग रहा था वह अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही थी, उसके पास आज कोई भी अपना ऐसा रिश्ता नहीं था जिससे वह अपने मन की व्यथा कह सकें।
नीतू की हालत देख कंचन भाभी ने उसे कमरे में जाकर आराम करने को बोला। नीतू अपना काम अधूरा छोड़ कर अपने कमरे में जाने लगी तभी पीछे से उसे आवाज देकर कंचन भाभी ने इतना कहा "नीतू तुम सारी बात अपनी दीदी से जरूर शेयर करना ,वह कोई ना कोई रास्ता अवश्य निकाल देगी।"
उनकी यह बात सुन नीतू दोबारा से रसोई के अंदर आ गई, और भाभी का हाथ पकड़ बोली "अगर आपको कुछ पता है तो भगवान की दया से मुझे बताइए, मेरे साथ उसने ही धोखा कर दिया जिस पर मैं सबसे ज्यादा विश्वास करती थी।"
कंचन भाभी से नीतू की हालत नहीं देखी गई रसोई का दरवाजा आधा बंद कर उसे पास रखे स्टूल पर बैठा कर , उसे बताते हुए बोली "तुम्हारे भैया मुझे अक्सर बताते हैं कि दुकान में किसी लड़की का फोन नितिन के लिए आता है कई बार उन्होंने भी वह फोन उठाया है और हेलो की आवाज उन्हें शायद तुम्हारी लखनऊ वाली बहन की जैसी लगी, क्योंकि वह उनकी आवाज सुनकर फोन रख देती है इस वजह से वह पूरी तरीके नहीं कह पाते कि वह अनीता का ही फोन है।"
"कंचन भाभी , आपको अगर ऐसा कुछ लगा था तो आपने यह बात मुझे बहुत पहले बता देनी चाहिए थी शायद मैं इस परेशानी का कोई हल ढूंढ चुकी होती।" ऐसे नीतू ने कंचन भाभी को बोला।
नीतू की यह बात सुन कंचन भाभी अपनी व्यथा बताने लगी "नीतू तुम हमारी हालात के बारे में तो सब जानती हो, तुम्हारे भैया को बैंक का काफी पैसा देना है और घर का सारा बिजनेस नितिन ही देखता है, हम सब उस के आधीन हैं तथा नितिन और अनीता के संबंध का हमारे पास कोई ठोस सबूत भी नहीं है, कई बार तुम्हारे भैया ने नितिन से घुमा कर बात पूछनी चाहिए तो वह यह कह देता है कि लखनऊ से बुआ का फोन आया था, तुम्हें पता है वह अक्सर लखनऊ भी जाता है पर किसी को नहीं बताता, जब बुआ का फोन लखनऊ से आता है तब हमें पता चलता है कि नितिन लखनऊ गया था।"
नीतू इन बातों को सुन गुस्से में भाभी से बोली आप इतना कुछ जानती थी पर आपने मुझे कुछ नहीं बताया यह तो मुझे पता है कि वह काम के सिलसिले में अक्सर बाहर जाता रहता है पर लखनऊ जाता रहता है यहां मुझे आज पता चल रहा है, मुझे ऐसा लग रहा है कि आप सब लोग कुछ ना कुछ इस रिश्ते के बारे में जानते हैं और मुझसे इस बात को छुपाते आ रहे हैं।"
नीतू की आवाज बोलते- बोलते बढ़ती जा रही थी और कंचन भाभी घबरा रही थी।
नीतू को विश्वास में लेते हुए कंचन भाभी ने नीतू को से कहा मुझे जितना पता था मैंने तुम्हें बता दिया तुम यह सारी बातें अपनी दीदी को जरूर बताओ जैसा कि मैंने पहले कहा वह कोई ना कोई हल जरूर निकाल लेंगी।"
कंचन भाभी ने नीतू को समझा-बुझाकर उसके कमरे में भेज दिया।
अनीता के कारण नीतू के अपने रिश्ते, अपनों से काफी हद तक खराब कर लिए थे, उसकी विदेश में रहने वाली भाभी उसके संपर्क में काफी सालों से नहीं थी, नैना दीदी का भी फोन महीने दो महीने में आया करता था छोटा भाई का भी यही हाल था।
अपने कमरे में जाकर नीतू अपने को असहाय महसूस करने लगी, आज उसके पास कोई भी अपना ऐसा रिश्ता नहीं था जिससे वह अपने मन की बात कह सके। जिसे वह अपना विश्वासपात्र समझती थी उसी ने पीठ में खंजर घोप दिया।
नीतू ने अपने कमरे से ही नैना दीदी को सारी बात फोन पर बताई, तथा नितिन के मोबाइल से निकालें नंबर अपनी दीदी को भेज दिए तथा बैंक से आया मैसेज भी उसने दीदी को फॉरवर्ड कर दिया। नैना दीदी ने उससे बस यही कहा "तुमने अनीता के आगे कभी किसी की नहीं सुनी, जो लड़की अपने घरवालों की नहीं हो सकी, वह किसी की कैसे हो सकती है ,उसने जिस- जिसके घर में अपने कदम रखें उसे बर्बाद कर दिया। कल तुम बैंक जाकर सारे स्टेटमेंट निकाल लाओ, मैं छोटे को यह नंबर पता करने के लिए बोलती हूं, ऐसा बोलकर नीतू को अपना ख्याल रखने तथा संयम से काम लेने की सलाह दें, फोन रख दिया।
नीतू ने अगले दिन का इंतजार किए बिना घर में मंदिर जाने का बहाना कर सीधे बैंक गई और अच्छी पहचान होने का फायदा उठा बैंक स्टेटमेंट निकाल लाए। स्टेटमेंट देख उसके होश उड़ गए, पैसे का ट्रांजिशन कई सालों से हर महीने जिस अकाउंट में हो रहा था वह लखनऊ का, किसी महिला का अकाउंट था। उसका नाम देख नीतू का शक विश्वास में में बदल गया, अक्सर अनीता अपनी एक बेस्ट फ्रेंड का नाम लिया करती थी और यह अकाउंट अनीता की उसी सहेली का निकला। इधर नीतू के भाई ने भी फोन नंबर की जांच करी तो पता चला यह नंबर लखनऊ में अनीता के नाम से रजिस्टर है।
जैसे ही नीतू के हाथ में सबूत आए, नैना दीदी और छोटू वाराणसी नीतू की गृहस्थी बचाने के लिए पहुंच गए।
शातिर नितिन ने अपने को फंसा देख अपनी गलती स्वीकार करना ही उचित समझा, घर वालों ने भी उसकी गारंटी लेते हुए दोनों को अपना जीवन फिर से शुरू करने की सलाह दी। नैना दीदी और छोटू यह समझ कर वहां से वापस आ गए कि अब सब कुछ सही हो जाएगा।
वाराणसी से सीधी दीदी लखनऊ गई और अपनी मौसियों को उनकी बेटी की हरकतें बताई, अनीता को पहले ही सारी बातों की जानकारी मिल चुकी थी अतः उसने अपनी मम्मी तथा छोटी मम्मी (मौसी) का पहले से ही माइंड वाश कर दिया था, दोनों अनीता के बारे में कुछ भी गलत सुनने के लिए तैयार नहीं थी। जब नैना ने अनीता की चाची से इस बात में बोलने को कहा तो वह यह कह कर चुप हो गई कि वह कुछ नहीं जानती हैं, वह खुद कई परेशानियों से गुजर रहे हैं बिना पति के उन्हें दो बच्चों की परवरिश करनी है और वहां खुद अनीता के पिता पर आर्थिक निर्भर रहती हैं।
अनीता को नैना दीदी पहले से पसंद नहीं करती थी पर वह इतनी चतुर और चालाक है उन्हें आज पता चल गया।
इधर वाराणसी में नितिन और नीतू के रिश्ते सब को सुधारते हुए दिख रहे थे कि अचानक लखनऊ से बुआ जी व नीतू की मौसी का जागरण में आने का न्योता आया, लखनऊ पहुंचकर नीतू ने देखा और परखा कि नितिन और अनीता की बातचीत नहीं हो रही है और दोनों एक दूसरे से कट रहे हैं उसे लगा कि अब सब सही हो गया है, जागरण वाली रात , जागरण के बीच से नितिन, नीतू से यह कहकर उठ गया कि उसे नींद आ रही है और वह कमरे में जाकर सो रहा है, नीतू जागरण में मग्न हो गई, अचानक उसकी नजर अनीता जहां बैठी थी वहां गई अनीता भी अपनी जगह पर नहीं थी, तेजी दिखाते हुए नीतू अनीता को ढूंढते हुए पूरे पंडाल का चक्कर कटा आई, पंडाल में अनीता उसे नहीं मिली, दोनों को पंडाल पर नहीं देख कर नीतू जागरण को बीच में छोड़कर आशंकित मन से उस कमरे की ओर गई ,जहां उन्हें ठराया गया था, वहां नितिन को ना पा, सीधे तहखाने की तरफ भागी, जैसे वह तहख़ाने के दरवाजे पर पहुंची, उसे दो लोगों की आवाज़ें सुनाई देने लगी, धीरे से दरवाजा खोल नीतू सीढ़ी उतर कर नीचे उतरी उसने जो देखा, उसे देख कर उस के होश उड़ गए। जो मौसियां अपनी बेटी पर बहुत विश्वास करती थी, आज यह देखकर उन्हें भी शर्मिंदा होना पड़ेगा ऐसा सोच कर वह सीधे पंडाल पर गई और उसने पहले अपनी बुआ सास यानी कि अनीता की चाची के कान में कुछ कहा उन्हें लेकर तथा दोनों मौसियों को जबरदस्ती अपने साथ चुपचाप चलने का इशारा करते हुए तहख़ाने की सीढ़ियां धीरे -धीरे उतरवाकर जैसे ही उसने तहख़ाने की लाइट ऑन करी, सच्चाई सबके आंखों के सामने आ गए दोनों को आपत्तिजनक हालत में देख कर चाची जी तहख़ाने से बाहर निकल आई, अंदर नीतू जोर- जोर से बोल रही थी "देख लो,अपनी लड़की की करतूत, इस पर बहुत विश्वास था ना तुमको, तुम सब ने मिलकर मेरे साथ साज़िश की है नितिन तुम्हें तो भगवान कभी माफ नहीं करेगा तुम बहुत बड़े पाखंडी हो,"नीतू जोर जोर से अनीता और उसके पूरे परिवार को अपशब्द कहने लगी इतनी जोर से वह बोल रही थी कि उसकी पूरी आवाज बाहर जा रही थी।
घर पूरा मेहमानों से भरा हुआ था अतः अनीता की मम्मी और छोटी मम्मी अनीता को बुरा भला बोल उसे बाहर जाने के लिए कहा, फिर नीतू से धीरे बोलने की विनती करने लगी जैसे -तैसे नीतू को चुप करा कर, दूसरे कमरे में ले गई तथा नितिन अपना सामान पैक कर नीतू को लेकर रात में ही बस स्टेशन चला गया, जो भी बस मिली उससे आधे रास्ते का सफर तय कर दूसरे दिन शाम को दोनों वाराणसी पहुंच गए। अचानक बहू बेटे को आया हुआ देख सबको समझ में आ गया कि कुछ अनर्थ हुआ है।
लखनऊ में भी सब नीतू के अचानक जाने का कारण पूछ रहे थे तो मौसियों नहीं सच्चाई छुपाते हुए घरवालों को नितिन की मम्मी की खराब तबीयत का बहाना बना दिया।अब नितिन और अनीता का नाजायज रिश्ता सबके सामने आ चुका था , अपने रिश्ते को छुपाने के लिए दोनों भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को बदनाम कर चुके थे, जो लड़का कल तक अनीता का भैया समझा जाता था आज वह अनीता का सैया निकला।
नीतू और नितिन का रिश्ता लगभग खत्म हो चुका था फिर भी समाज में अपने परिवार की इज्जत बनी रहे इसलिए दोनों साथ रह रहे थे। वाराणसी में घरवालों से कुछ नहीं छुपा देखकर अब नितिन खुलेआम अनीता से बात करता और उसे खुलेआम पैसे भेजता, यह सब देख कर नीतू दिन प्रतिदिन शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहने लगी। नीतू जितनी परेशान होती अनीता और नितिन उतने खुश होते। अब अनीता ने अपनी चाची का मायके जाना भी बंद करवा दिया , नीतू की ननद की शादी में अनीता घर की मालकिन बन वाराणसी पहुंच गई, और सारे वैवाहिक कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए देख घर के लोगों को उस पर गुस्सा बहुत आ रहा था पर बहन की शादी में कोई अवरोध उत्पन्न ना हो इसलिए सब अपना मुंह बंद कर लेते, शादी के बाद अम्मा जी ने अनीता को उसके घर भेज दिया।
अब बेशर्मी हद से पार हो चुकी थी, सारे रिश्ते तार-तार हो चुके थे, अम्मा जी और अपने घर की इज्जत के कारण नीतू यह सब सहन कर रही थी।
अचानक एक दिन फिर से नीतू और नितिन की लड़ाई हुई नितिन बार-बार उसे किसी पेपर में साइन करने के लिए कह रहा था और नीतू ऐसा करने के लिए मना कर रही थी, उस दिन नीतू ने खाना भी नहीं खाया, नवंबर का महीना होने के कारण अंधेरा भी जल्दी हो चुका था, नितिन गुस्से में घर से बाहर चला गया और कंचन भाभी खाना लेकर जब नीतू के कमरे में आई नीतू पलंग में लेटी हुई थी, कंचन भाभी ने नीतू से बात करने की कोशिश की पर नीतू ने कोई जवाब नहीं दिया बस वह यही कही जा रही थी" जाओ उसे ले आओ"
वही स्टूल पर उसका खाना रख भाभी भी सोने चली गई।
आधी रात को फिर से दोनों के कमरे से लड़ने की आवाज आई और नीतू अपने कमरे से यह कहते हुए निकल गई "जा उस अनीता के साथ अपना मुंह काला कर ले"
कंचन भाभी ने अपनी खिड़की के पर्दे को हटाकर देखा कि गुस्से में नितिन भी कुछ देर बाद उसी छोटे कमरे की ओर जा रहा था, जहां नीतू अपनी डायरी लिखा करती थी और दूसरे दिन उसी कमरे से नीतू की पंखे से लटकती हुई लाश मिली।
अनीता से धोखा खाने के बाद नीतू अपनी बहन नैना से सारी बात बताने लगी थी बस उस रात के बारे में नैना दीदी को नहीं पता चल रहा था, अनीता की मृत्यु के बाद, नैना दीदी ने कंचन भाभी से बहुत विनती करके उस रात के बारे में पूछ लिया जितना कंचन भाभी ने देखा और सुना था उतना नैना दीदी को उन्होंने बता दिया। कोई सबूत कंचन भाभी भी नहीं दे पाई।
जिस कारण नैना दीदी ,लाख कोशिश करने के बाद भी अपनी बहन की आत्महत्या या हत्या का राज नहीं खोल पाई।
यह कहानी यहीं पर खत्म नहीं हुई नीतू के मौत के 7 साल बाद अनीता और नितिन ने शादी कर ली।
रिश्तों के बदलते रंग काफी लोगों को पसंद नहीं आए पर कोई भी कुछ नहीं बोला। अनीता और नितिन की साज़िश में, नीतू बलि चढ़ गई।