रेशमा
रेशमा
रोज़ रात होते ही सड़क पर वो नजर आती है।
कसी हुई चमकती चोली, घुटने तक उठा हुआ लहंगा, काले लम्बे बिखरे बाल और काजल लगी तीर - सी आँखें !
रूप ऐसा कि हिरोइन भी फीकी पड़ जाए !
ग्राहक तलाशती, पान चबाती, आँखें चलाती।
पास में ही उसकी खोली !
सब सेट था देखने से बिल्कुल !
वो रोज़ जाता उसके पास, रेशमा को जाने क्यों उससे चिढ़ थी ?
ज़्यादा देर रहना ना चाहती, पैसा पूरा देता और बस बातें ही करता।
उसकी आँखों में शायद कुछ ऐसा था जिससे रेशमा डर जाती, वरना सबको डरा देती थी...!
आज कुछ सोचकर रेशमा उसके इंतज़ार में थी।
"साला रोज़ चला आता है ! जब अपून के साथ सोनाईच नहीं तो साला आता काईकू !"
खोली की दहलीज़ पर उसकी शक्ल देख रेशमा फट पड़ी,
"ऐ साला ! जब तेरे को अपने साथ बिस्तर पर होना नहीं तो आता क्यों है ? मेरे धंधे को खराब करेगा।"
वो चुप...।
उसकी चुप्पी खल रही थी !
"देख, मेरा माथा गर्म है, सीधी तरह बोल !"
"क्योंकि...प्यार करता हूँ तुझ से..."
"आक थू...! प्यार ! साले... एक धंधे वाली से प्यार करेगा तू ?"
"हाँँ ! करूंगा।" - आँखें झुकाये बोला।
"दिमाग खराब ना कर। प्यार के नाम से नफरत है मुझको।"
मैं शादी करना चाहता हूँ तुमसे। घरवाली बनाना चाहता हूँ...।"
ठठाकर हँस पड़ी वो ! कितनी देर हँसती रही !
और वो आँखें फाड़े देखता रहा।
"घरवाली...!" - फिर हँस पड़ी।
"एक ने बनाया था घरवाली। पता है, बहुत प्यार करता था मुझे ! शादी की सुहागरात भी बनवाई गई। पूरे दो लाख में ! कितनो के बिस्तर पर भेजा साले भड़वे ने ! पुलिस वाले तक के...! तुम साले मर्द जात...आक थू !
फिर सोचा जब बिकना ही है तो खुद ही क्यूँ ना बेचूँ अपने जिस्म को ! अब अपनी मर्ज़ी की मालिक हूँ। आदमी सोचता है वो औरत खरीद रहा है, पर ये नहीं सोचता माल भी खर्च कर रहा है और खुद को भी...!
"देख रेशमा, बीती बातें मैं नहीं जानता और ये भी नहीं जानने की ज़रूरत कि तू क्या है ? तू पाकीज़ा है मेरी नज़र में !"
"कुछ नहीं सुनना मुझे, तू निकल यहाँ से ! और दोबारा नज़र आया तो साले मार दूंगी।"
उसने धक्का देकर दरवाज़ा बंद कर दिया।
"मैं फिर भी आऊंगा...चाहे कुछ भी कर लेना।"
कितनी देर रोती रही ! जिस बिस्तर पर रोज़ मर रही थी, उसको घूरती रही। पता नहीं, क्या सोचती रही ? अचानक उठी और कहीं चल पड़ी।
पुल पर कितनी देर खड़ी रही !
"तुम पहले क्यों नहीं आये ? अब कैसे तुमको बर्बाद होने दूं...!"
सुबह नदी पर तैरती रेशमा की लाश थी, वो उतनी ही शांत थी जैसे वो नदी...।