रेशम की डोर

रेशम की डोर

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मई का महीना था। गर्मी अपने चरम पर थी। किसी तरह पसीने से लथपथ माला कलेक्टर ऑफ़िस पहुँची। ऑफ़िस पहुँच कर माला अपने साथ लाई बोतल से पानी पी ही रही थी कि सहसा उसकी नज़र कलेक्टर साहब के कमरे के बाहर लगी नेम प्लेट पर पड़ी।”नितिन शर्मा “.......ओह यह कहीं वही नितिन तो नहीं ? माला का मन यादों की पुरानी गलियों में भटकने लगा।

लगभग चार-पाँच वर्ष पहले की बात है, जब माला ने बी.ए. करने के लिये कॉलेज में क़दम रखा था। अभी तक माला की शिक्षा केवल लड़कियों के स्कूल में हुई थी, अत: लड़कों के साथ सहशिक्षा का यह उसका पहला अनुभव था।माला ने जब क्लास में क़दम रखा, तो उसकी नज़र कोने में बैठे शांत और सौम्य नितिन पर पड़ी थी।नितिन का मासूम चेहरा और गहरी बोलती हुई आँखें उसे पहली नज़र में ही भा गईं थीं।वैसे तो माला बहुत सुन्दर नहीं थी, परन्तु साँचे में ढला शरीर, गोरा रंग और काले लम्बे घने बाल उसे आकर्षक बनाने के लिये काफ़ी थे।

 अपने मिलनसार स्वभाव के कारण माला सभी विद्यार्थियों के साथ खूब घुल-मिल गई थी।परन्तु धीर गंभीर नितिन हमेशा पढ़ाई में उलझा रहता था।वह दोस्तों के साथ न तो अधिक बातें करता और न ही घूमता फिरता।ख़ाली समय में भी वह लाइब्रेरी में बैठ कर पढ़ाई करता रहता। एक ही कक्षा में पढ़ने के बावजूद माला और नितिन के बीच कोई ख़ास बातें नहीं होतीं।फिर भी माला को नितिन पसन्द आने लगा था।वह हर समय नितिन से बातें करने के मौक़े तलाशती, कभी नोट्स के बहाने तो कभी किताबों के। नितिन भी उसकी सहायता तो करता परन्तु कभी भी माला से दोस्ती बढ़ाने का प्रयास नहीं करता। 

  जब माला बी.ए. के फ़ाइनल वर्ष में थी तभी उसके लिये प्रभात का रिश्ता आ गया।माला अपने घर में तीन बहनों में सबसे बड़ी थी अत:उसके माता-पिता भी उसका विवाह जल्द से जल्द करना चाहते थे।प्रभात कलेक्ट्रेट ऑफ़िस में क्लर्क था और उसके घर में केवल उसकी माँ और एक छोटा भाई था। माला के निम्न मध्यमवर्गीय माता-पिता को प्रभात का रिश्ता बहुत पसंद आया था क्योंकि प्रभात के घर वालों ने स्वयं आगे बढ़ कर माला का हाथ माँगा था और उनकी कोई दहेज की माँग भी नहीं थी। आनन फ़ानन में उन्होंने माला का रिश्ता प्रभात के साथ तय कर दिया था।माला को जब अपने रिश्ते की बात पता चली तो उसके सपनों का संसार टूट सा गया।वह तो मन ही मन नितिन से प्रेम करती थी परन्तु वह अपने माता पिता से क्या कहे ? वह तो यह भी नहीं जानती थी कि नितिन उसे चाहता है भी या नहीं। माला अपने नारीसुलभ संकोच और नितिन के साथ अपने औपचारिक से संबन्धों के कारण नितिन से कुछ न कह सकी थी और अपने माता-पिता की इच्छा को ही अपनी इच्छा बना बैठी थी।

 एक सादे से समारोह में माला का विवाह प्रभात के साथ हो गया था, वह दुल्हन बन प्रभात के घर आ गई थी। माला और उसके पति प्रभात में दस वर्षों का लम्बा उम्र का अंतराल था,और उनके बीच विचारों की चौड़ी खाइ थी। माला की सासू माँ भी उसे परेशान करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखती थीं, परन्तु फिर भी माला ने इसे ही अपनी नियति मान, ससुराल में सामंजस्य बैठा ही लिया था।

ऐसे ही लगभग तीन वर्ष बीतने को थे, कि एक दिन अचानक माला पर दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा था।प्रभात का ऑफ़िस से लौटते समय ज़बरदस्त एक्सीडेंट हो गया था। उनकी मोटरसाइकिल को किसी ट्रक ने टक्कर मार दी थी।प्रभात को तुरंत ही अस्पताल पहुँचाया गया था परन्तु ख़ून अधिक बह जाने के कारण प्रभात को बचाया न जा सका था।

 प्रभात की मृत्यु के बाद तो माला बिलकुल ही अकेली पड़ गयी थी। उसकी सासू माँ हर समय उसे कोसती रहतीं थीं कि “ तू तो डायन है, मेरे बेटे को खा गई “ 

कुछ दिनों बाद कलेक्ट्रेट ऑफ़िस से संदेश आया कि प्रभात के स्थान पर उनके परिवार में किसी एक व्यक्ति को नौकरी मिल सकती है, हालाँकि नियमानुसार पत्नी का ही पहला हक़ बनता है। यह सुन कर माला की सासू माँ बोलीं “ तुझे नौकरी वौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं, तू घर से बाहर पैर नहीं रखेगी....तुझे हमारे ही टुकड़ों पर पलना होगा....यह नौकरी मेरा छोटा बेटा पवन करेगा “ पवन ने भी अपनी माँ की हाँ में हाँ मिलाई और धमकी भरे लहजे में माला से बोला “ भाभी, अगर तुमने घर से बाहर क़दम रखा तो मैं तुम्हारी हड्डियाँ तोड़ दूँगा “ 

परन्तु,माला बड़ी हिम्मत जुटा कर अपनी पड़ोसन की सहायता से किसी तरह कलेक्ट्रेट ऑफ़िस पहुँची....और यहाँ “नितिन शर्मा “ की नेम प्लेट.....”अंदर जाइये, अब आप साहब से मिल सकती हैं “ ऑफ़िस की सचिव की मीठी आवाज़ सुन कर माला की तन्द्रा टूटी। अगर यह वही नितिन हुआ तो....सोच कर माला का हृदय की धड़कन तेज़ हो गई। क्या करे वो ? क्या वापस लौट जाए ? पर घर के प्रतिकूल हालात का ख़्याल आते ही उसके कदम कलेक्टर साहब के कमरे की ओर बढ़ चले।

कमरे में प्रवेश करते ही माला अवाक् रह गई। उसकी आशंका सही साबित हुई। सामने बड़ी सी कुर्सी पर वही कॉलेज वाला नितिन बैठा था। नितिन ने भी उसे तुरन्त पहचान लिया “अरे.....माला तुम ? तुम हो मिसेज़ प्रभात कुमार ? एक ही झटके में उसने माला से दोनों सवाल पूछ डाले थे। हालाँकि कॉलेज की माला और आज की माला में ज़मीन आसमान का अंतर था। कॉलेज में सदा चहकने वाली माला बिलकुल मुरझा गई थी। रूखा सा निस्तेज चेहरा, लम्बे बालों का जूड़ा और सफ़ेद साड़ी में लिपटी दुबली पतली काया। नितिन ने उसे बैठने का इशारा किया और अपनी सचिव को पानी और चाय का प्रबंध करने को कहा। “ नहीं....नहीं सर, रहने दीजिये, चाय की कोई आवश्यकता नहीं....” माला हिचकिचाते हुई बोली। “ आप आराम से बैठें और अपनी बात कहें “ नितिन ने शांत स्वर में जवाब दिया। माला ने प्रभात के देहांत के बाद उपजी स्तिथियों के बारे में बताया और कहा “ सर, आप नहीं जानते, मेरा अपने पैरों पर खड़ा होना कितना ज़रूरी है....प्रभात के जाने के बाद मैं बिलकुल बेसहारा हो गई हूँ .....मेरी सास व देवर मुझे मारते पीटते हैं....सर, मेहरबानी कर के आप मुझे यह नौकरी दिलवा दें “ कहते कहते उसकी आँखों से निर्झर आँसू गिरने लगे। नितिन की सचिव ने माला को पानी पिलाया। नितिन भी सांत्वना देते हुए बोला “ आप निश्चिन्त रहें, यह नौकरी आपको ही मिलेगी....आप जितनी जल्दी चाहें नौकरी ज्वाइन कर सकती हैं “

 माला ने अगले दिन से ही नौकरी ज्वाइन कर ली थी। उसे भी ऑफ़िस में कनिष्ठ क्लर्क का काम मिल गया था। एक ही ऑफ़िस में काम करने के कारण अब नितिन और माला की मुलाक़ातें अक्सर होने लगीं थीं, परन्तु कॉलेज के दिनों वाली दूरियाँ अभी भी बनी हुई थी। दोनों की आपस में केवल आवश्यक बातें ही होती थीं। परन्तु माला के मन में नितिन के बारे में और अधिक जानने की उत्सुकता बनी रहती थी।  

 एक दिन शाम को माला जैसे ही ऑफ़िस से घर जाने के लिये निकली, अचानक ही रिमझिम बारिश शुरू हो गई। माला ने भाग कर एक पेड़ के नीचे शरण ली। वह असमंजस में थी कि घर कैसे जाए तभी नितिन की गाड़ी वहाँ आ कर खड़ी हो गई। पीछे की सीट पर बैठे नितिन ने उसे अंदर से ही आवाज़ दी “ गाड़ी में बैठ जाओ माला, मुझे घर पर उतार कर मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ आयेगा “ नहीं नहीं सर, आप परेशान न हों, थोड़ी देर में बारिश रुक जायेगी....फिर मैं घर चली जाऊँगी “ माला ने झिझकते हुए कहा। “ बेकार की बात न करो, चुपचाप गाड़ी में बैठो “ नितिन का लहजा आदेशात्मक हो चला था। अब माला के सामने गाड़ी में बैठने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। वह चुपचाप गाड़ी में आगे ड्राइवर के बग़ल वाली सीट पर बैठ गयी, और गाड़ी में एक अजीब सी ख़ामोशी पसर गयी।

कुछ ही मिनटों में गाड़ी नितिन के बड़े से सरकारी बंगले में पहुँच चुकी थी। बड़ा सा शानदार बंगला, सामने बड़ा सा खूबसूरत लॉन। दरबान तुरन्त छाता लेकर गाड़ी के उस दरवाज़े के पास आ खड़ा हुआ, जहाँ से नितिन को उतरना था। गाड़ी से उतरते हुए नितिन ने माला से कहा “ चाहो तो अंदर आ कर माँ से मिल सकती हो....उन्हें तुम से मिल कर अच्छा लगेगा....फिर ड्राइवर तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आयेगा “ अब माँ से मिलने को भला माला कैसे मना करती, इसलिये वह भी गाड़ी से उतर पड़ी। घर के अंदर जाते समय वह सोच रही थी....अंदर नितिन की पत्नी होगी, आज देखूँगी कौन वह ख़ुशनसीब लड़की है, जिसे नितिन ने अपनी अर्द्धांगिनी चुना है।  

घर के भीतर बने बरामदे में नितिन की माँ कुर्सी पर बैठीं थीं। उनके हाथ में कोई पुस्तक थी। नितिन के साथ माला को आते देख, वे बड़े प्यार से बोलीं “ आओ बेटी....यहाँ मेरे पास बैठो....तुम माला हो न ? “ माला उनके मुँह से अपना नाम सुन कर आश्चर्यचकित रह गयी,फिर धीरे से बोली “ आप मुझे कैसे जानती हैं माँ जी ?” नितिन की माँ, कमला देवी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया “ मैं तो तुम्हें तब से जानती हूँ बेटी, जब से तुम नितिन के साथ कॉलेज में पढ़तीं थीं “ उन्होंने नौकर से कह कर तुरन्त चाय और पकौड़े बनवाये और माला को बड़े प्यार से खिलाया। जब माला अपने घर जाने को निकलने लगी तो कमला देवी ने स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा और बोलीं “ घर आती रहना बेटी.... तुम्हें देख कर और तुमसे मिल कर बहुत अच्छा लगा। उनके प्यार से अभिभूत माला अपने घर पहुँच कर भी नितिन और उसकी माँ के बारे में सोचती रही। नितिन के घर में तो कोई और औरत दिखाई नहीं दी....क्या नितिन ने अब तक विवाह नहीं किया है....नितिन की माँ ने यह क्यों कहा कि वे उसे कॉलेज के समय से जानती हैं.....क्या कॉलेज में नितिन भी उसे चाहता था ? क्या वह नितिन की ख़ामोश निगाहों को नहीं पढ़ पायी थी। ऐसे ही अनगिनत विचार रात भर माला को परेशान करते रहे और वह रात भर सो न सकी।  

अगले दिन जब माला ऑफ़िस पहुँची तो देखा नितिन की सचिव छुट्टी पर थी। अत: उसे फ़ाइल पर दस्तख़त कराने स्वयं नितिन के कमरे में जाना पड़ा। जब वह नितिन के कमरे में पहुँची तो नितिन फ़ाइलों में उलझा हुआ था। माला को देख कर हौले से मुस्कुराया और बोला “ आओ बैठो माला “ आज पहली बार नितिन उसे देख कर मुस्कुराया था। माला ने झट अपनी फ़ाइल नितिन के आगे कर दी और सामने की कुर्सी पर बैठते हुए बोली “ मैंने फ़ाइल तैयार कर दी है सर....कृपया आप देख लें....आपके दस्तखत चाहिये थे सर “ “यह तुम हमेशा मुझे सर क्यों कहती हो ? हम सहपाठी रहे हैं....तुम चाहो तो मेरा नाम ले सकती हो “ नितिन ने माला से धीरे से कहा। “ नहीं सर आप इतने बड़े अफ़सर हैं....आपका नाम लेना मुझे शोभा नहीं देता “ माला थोड़ा झिझकती हुई बोली। आज उसे पहली बार नितिन से थोड़ी बातें करने का अवसर प्राप्त हुआ था। “ कल आपकी माँ से मिल कर बहुत अच्छा लगा सर....आपकी पत्नी कहाँ रहतीं हैं सर ? कल वे नहीं दिखाईं दीं “ कल रात अपने विचारों से उत्पन्न हुई उत्सुकता के कारण वह यह प्रश्न नितिन से पूछ बैठी। ” मैंने विवाह नहीं किया है, मैं माँ के साथ ही रहता हूँ “ नितिन ने उत्तर दिया। “ परन्तु आपके लिये तो एक से बढ़ कर एक रिश्ते आते होंगे सर....फिर आपने अब तक विवाह क्यों नहीं किया “ अपनी उत्सुकता में माला नितिन से यह व्यक्तिगत प्रश्न पूछ बैठी। फिर तुरन्त ही उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और वह बोल पड़ी “ क्षमा कीजिये सर....मुझे आपसे ऐसा प्रश्न नहीं पूछना चाहिये था “ “ नहीं क्षमा माँगने की कोई आवश्यकता नहीं.....अब जानना चाहती हो तो सुनो.....मुझे कॉलेज के दिनों में एक लड़की पसन्द थी, परन्तु उस लड़की को विवाह करने की बहुत जल्दी थी....इसलिये उसने कहीं और विवाह कर लिया “ नितिन ने माला की आँखों में देखते हुए कहा।  

 ओह.....तो क्या नितिन उसकी बात कर रहा है ? क्या नितिन भी उसे पसन्द करता था ? तो क्या उसका नितिन के लिये प्रेम एकतरफ़ा नहीं था ? अगर ऐसा था तो नितिन ने कभी कॉलेज में कहा क्यों नहीं ? इन सभी विचारों के बीच, भरसक संयमित रहने का प्रयास करते हुए माला ने कहा “ अच्छा..... कॉलेज में कौन थी वह ख़ुशनसीब लड़की ?” “आज घर जाकर आइना देख लेना, तुम्हें पता चल जायेगा कि कौन थी वह ख़ुशनसीब लड़की ? “ नितिन का उत्तर था।

अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। “ फिर कभी कहा क्यों नहीं ? “ काँपते स्वर में माला ने पूछा। “ क्या कहता ? सोचा था पढ़ लिख कर किसी क़ाबिल बन जाऊँगा तब तुम्हारे माता-पिता से तुम्हारा हाथ माँगूँगा....मुझे क्या पता था कि तुम्हारा विवाह इतनी जल्दी हो जायेगा.....फिर मैं यह समझता था कि तुम्हारे लिये मेरी भावनाएँ एकतरफ़ा हैं....तुम इतनी चहकती हुई चुलबुली सी लड़की थीं, तुम मेरे जैसे धीर गंभीर लड़के को कहाँ पसन्द करोगी “ नितिन ने गंभीर व संयत आवाज़ में जवाब दिया। “ ओह एक बार कह कर तो देखते.....मुझे तो तुम पहली नज़र में अच्छे लगे थे....कॉलेज में तो तुम इतने गंभीर रहते थे कि मैं कभी तुमसे कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाई “ कहते कहते माला की आँखों से आँसू छलक पड़े।  

 उस दिन वर्षों बाद माला को अपने दिल के किसी कोने में प्रसन्नता का अनुभव हुआ था। देर रात तक वह कॉलेज के दिनों को याद करती रही थी। अब धीरे धीरे माला के चेहरे पर मुस्कुराहट लौटने लगी थी। ऑफ़िस में भी नितिन से सामना होने पर वे दोनों एक दूसरे को देख कर आँखों ही आँखों में मुस्कुरा देते थे। माला अब स्वयं के ऊपर थोड़ा ध्यान देने लगी थी। माला का मन कई बार समाज की बेड़ियाँ तोड़ने का करता। वह सफ़ेद के अलावा दूसरे रंग भी पहनना चाहती....कभी उसका मन छोटी सी बिंदी लगाने को करता तो कभी हल्की सी लिपस्टिक। परन्तु समाज की बेड़ियाँ तोड़ना कहाँ सम्भव हो पाता है। बीच बीच में समय मिलने पर वह नितिन की माँ कमला देवी से मिलने चली जाया करती।  

समय इसी प्रकार गुज़र रहा था। अब ऑफ़िस में नितिन और माला की दोस्ती के चर्चे होने लगे थे और ये चर्चे धीरे धीरे अफ़वाहों में बदलने लगे थे। अब ये अफ़वाहें माला के घर तक जा पहुँचीं थीं।

आज दीपावली का त्योहार था ऑफ़िस में छुट्टी थी, परन्तु माला के घर कोहराम मचा हुआ था। माला की सासू माँ उसके ऊपर बुरी तरह चीख़ रहीं थीं “ मैं कई महीनों से तुम्हारे बदले रंग ढंग देख रही हूँ .....ये ऑफ़िस में क्या रंगरेलियाँ चल रही हैं बहू ? तुम्हें हमारे घर की इज़्ज़त की कोई परवाह है या नहीं ? तुम मेरे प्रभात की विधवा हो, तुम्हें सबके साथ हँसना बोलना शोभा देता है क्या ? तुम्हें अब नौकरी करने की कोई ज़रूरत नहीं है....घर में बैठो और चूल्हा चौका संभालो “ पवन भी अपनी माँ की हाँ में हाँ मिलाते हुए बोला “ माँ ठीक कह रहीं हैं, भाभी तुम कल ही ऑफ़िस में अपना इस्तीफ़ा भेज दो.... भइया की नौकरी पर मेरा भी हक़ है “

इसी बीच दरवाज़े पर दस्तक हुई तो माला की सासू माँ ने “ ये त्योहार के दिन कौन टपक पड़ा “ बड़बड़ाते हुए दरवाज़ा खोला। सामने कमला देवी मिठाई के डिब्बे के साथ खडीं थीं। उनके पीछे नितिन भी था। कमला देवी ने आगे बढ़ कर मिठाई का डिब्बा माला की सासू माँ को दिया और मधुर स्वर में बोलीं “ त्योहार के दिन मुँह मीठा कीजिये बहन जी....आज दीपावली पर मैं अपने घर की लक्ष्मी को आपसे माँगने आई हूँ......मुझे पता है मेरे नितिन की ख़ुशियाँ आपकी बहू माला के साथ जुड़ी हैं.....मैं माला को अपने नितिन की अर्द्धांगिनी बनाना चाहती हूँ.....मुझे पूरा विश्वास है कि आपको इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं होगी.....माला अब आपके प्रभात की बहू नहीं, मेरी बेटी और मेरे नितिन की पत्नी बनेगी....मैं जल्द ही कोई अच्छा सा मुहूर्त देख कर बारात लेकर आऊँगी.....तब तक माला मेरी अमानत की तरह आपके घर में रहेगी.....क्यों माला तुम इस रिश्ते के लिये तैयार हो न बेटी ?”

कमला देवी के ये शब्द सुन कर सहसा माला को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने जल्दी से आगे बढ़ कर कमला देवी के पाँव छू लिये और फिर उसकी नज़रें नितिन से जा मिलीं। नितिन की आँखों में अपने लिये अथाह प्रेम देख कर माला शरमा कर भीतर चली गयी।  

दीपावली के दिन माला की जीवन में ख़ुशियों के असंख्य दीप जगमगा उठे थे और आख़िर नितिन ने इतने वर्षों बाद ही सही, उसे प्रेम की नाज़ुक रेशम की डोर से बाँध ही लिया था। इस रेशमी डोर में बंध, नितिन और माला जीवनपथ पर साथ-साथ आगे बढ़ चले थे।  


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