Om Prakash Gupta

Classics

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Om Prakash Gupta

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राम,शाश्वत हैं......और रहेंगे

राम,शाश्वत हैं......और रहेंगे

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हमें ऐसा प्रतीत होता है कि " राम" एक अदना दो अक्षरों का मामूली शब्द नहीं है बल्कि इस एक ऐसा बहुआयामी शबद है जो समस्त प्राणी जगत में व्याप्त एक आदर्श "माँ" के सम्पूर्ण वात्सल्य ;पिता के आकाश सा विशाल हृदय ; पुत्र का अपने पूर्वजों के गौरव गाथा का रक्षा और मान सम्मान, भाई के सामान श्रद्धा और प्रेम से युक्त आँसुओं की बूदें,पत्नी में समाया निस्वार्थ समर्पण,पति के समन दृढ रक्षा कवच तथा विश्व के समस्त समाज के लिए कल्याणकारी और सच्चा पथ प्रदर्शक बना हुआ है Iयह शब्द मूक होकर भी संदेश देता है कि सत्य का मार्ग कँटीला होता है पर अंतिम मंजिल ऐसा गौरवशली होता है जिसकी कीर्ति सम्पूर्ण ब्रम्हाँण्ड में अपने पूर्ण कलाओं के साथ आलोकित होता है I यह धर्म के बन्धन से मुक्त धरती के जर्रे जर्रे में समाया है, कभी यह प्रभु परमेश्वर बनकर सृष्टि के रचनाकार बनकर,कभी अल्लाह के रूप में समस्त जीव जगत को शांति और अमन का संदेश देना ,लाख पाप करने के बावजूद सच्चे एवं पवित्र मन से दुआ या माफी माँगने पर सारी दुआएं कबूल करना और कभी ब्रह्मा,विष्णु, महेश बनकर सृजक, पोषक,नियंत्रक बनकर अवतरित होता है I इसका इतिहास बताता है कि जब चारों ओर असत्,अनाचार और अन्याय का बोलबाला था।राजभवन में कैकेई की सत्तालोलुपता थी,अमानवीय शक्तियों का वर्चस्व था।सत्ता के ऐश्वर्य और मद में चूर,अहंकारी प्रबल रावण था तो उस समय भी मानवीय संवेदनाएं और संकल्पनाओं का अदम्य साहस, मर्यादा को हृष्ट पुष्ट करने और उसे यथास्थान प्रतिस्थापित करने की प्रबल इच्छा शक्ति और सत् ,न्याय, सदाचार और सत्ता

के अनासक्त भाव के प्रतीक राम भी थे।

हमारी प्रबल धारणा है कि जब भी कोई युग, क्रांतिकारी परिवर्तन हेतु आकुल्ल हुआ है उसको परिवर्तन करने में प्रबल और सक्षम दैवीय शक्ति समय समय पर अवतरित हुई है और वह यह वर्तमान में भी अदृश्य रूप में विद्यमान है और भविष्य के गर्भ में भी हमेशा रहेगी। तभी तो राम कभी कबीर का होता है जो ,ढोंग-पाखंड,आडम्बर के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द करता है।

कभी यही राम तुलसी का होकर कहता है"पराधीन सुख सपनेहुँ नाहीं"।यही नहीं गाँधी के राम-राज्य में राम पुनः जीवित होकर अंग्रेजों के अपराजेय साम्राज्य को चुनौती देता है और "रावण रथी विरथ रघुवीरा" के धर्म को धारण कर अपने देश को उनके चंगुल से छुटकारा दिलाकर स्वतंत्र दिलाता है।आज भी गौरव गाथा के लिए आतुर भव्य राम मंदिर हेतु अपने राष्ट्र की

आत्मा से जुडी सत्ता पलक पावडे बिछाई बैठी है I

ऐसा लगता है कि आज भी सभी के अंदर राम जिंदा है, पर अब वह उस समय की प्रतीक्षा में है कि कोई उठकर उसे चुनौती दे। लेकिन अब राम और रावण के बीच अलगाव की यह रेखा इतनी पतली हो गई है कि यह ऑकना कठिन है कि शरीर से दिखने वाला राम हृदय से कितना राम है या कहीं से अधूरेपन में विद्यमान है या राम सा समभाव सा बनावटी चेहरा लिये कहीं से रावण सा कुटिल है, जो साधुवेश में सीता को सोच को भटकाने में रची थी , यह कहना अब बडा मुश्किल है कि वह अपने कितने निजी और पारदर्शी उद्देश्यों पर स्थित है।पर यह बिल्कुल निश्चित है कि जब तक यह रेखा है भले ही कितनी पतली हो, राम हमारे भीतर रहेंगे। यदि रावण मरा नहीं है तो राम भी नहीं मर सकते।


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