Om Prakash Gupta

Others

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Om Prakash Gupta

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वह कुप्पी जली तो,,,,,,,,

वह कुप्पी जली तो,,,,,,,,

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      जब अपने सपनों की मंजिल सामने हो और हासिल करने का जज्बा हो।इसके अलावा जज्बे को ज्वलंत करने के मजबूत दिमाग और लेखनी में प्रबल वेग से युक्त ज्ञानरुपी ऐसा जल प्रलय हो कि सभी प्रकार के विघ्नरूपी विशाल बांधों के मोटी मोटी लोहे की सरियों से निर्मित सीमेंट और रोड़ों की दीवार ढह जाए तो क्या कहने? ऐसे में घरों की अभिषप्त दीवारों पर लिखी इबारतें भी चीख चीख कर बोलेंगी ही कि बेटा, अब तो तुमने हद पार कर दी। अपने सामने कुप्पी की जलती हुई लौ के साहस को अपना आदर्श मानो।जब तक ये जिन्दा है तब तक ज्ञान का बहाव अंधेरें से उजाले की ओर होता रहेगा।देखो अपनी सगी बहन उजाला को सोने मत देना।

      अपने लक्ष्य को पाने में तल्लीन और कातर निगाहों से देखती कुप्पी की लौ को जूही प्रणाम करती रही क्योंकि भादों की घुप्प अंधेरी रात की कालिमा को चीर डालने की क्षमता केवल उसी में थी, क्योंकि उसके मुंह पर लगी पुराने कपड़े के चीर पर लपकती लौ को जीवित रखने के लिए लगातार ईंधन केरोसिन आयल उसके पेट में ही था। भला बरसात के जुगनुओं की क्या बिसात?

      अब भले ही खुली लौ से उठा धुआं, पास की भूरी मिट्टी से पुती दीवार पर अपना असर डाला हो या यूं कहें अपनी उपस्थिति का अहसास जान फूंकने वाली प्राणियों पर नहीं जमा पा रही क्योंकि वहां वो बेबस है। पर दीवार बेजान है तभी तो उस पर छोटे-छोटे नाचीज़ जन्तु जैसे मकड़ियां और उसके जाले, झींगुर और रात भर की उसकी चिल्लाहट और बदसूरत काली और भूरे रंग की छोटी बड़ी सभी साइज़ की छिपकलियां और उनके इर्द-गिर्द भुनभुनाते मच्छर भी अपने पूरे साम्राज्य और अधिकार के साथ कहीं भी डेरा डालकर बैठे हैं।

      हम गांव में जब जब भी उसके घर गये,मैंने कभी भी उस लड़की के दिनचर्या जान नहीं पाया। उसकी छोटी बहन अवन्तिका पढ़ने के अलावा थोड़ी मां बाप के साथ घर गृहस्थी के कामों में हाथ बंटाती दिखती थी। अपने अन्य बहन भाइयों से गांव,खेत खलिहान, पड़ोसियों के सुख दुःख के समाचार या हाल चाल जानने में दिलचस्पी रखती थी।कोई घर का मेहमान आ जाये तो वह बड़ी ही आत्मीयता से उसके आवभगत में लगी रहती।

      उसकी सोच हमें थोड़ी अलग सी लगी । उसकी मान्यता थी कि कुप्पी की लौ प्रबल तभी होती है जब लौ की बाती प्योर केरोसिन तेल में आकंठ डूबी हो। हममें यह तभी भावना प्रबल हुई कि यह तेल पृथ्वी के गर्भ से निकला है तो यह भी धरती के समान धैर्य और सहनशीलता धारण किए हुए हैं।देखो न , इसमें पानी से भी अधिक शीतलता है तभी अत्यंत ज्वलनशील पदार्थ सोडियम को शांत रखने का काम यह करता है जो पानी नहीं कर पाता । हमें यह उचित भी लगा क्योंकि निरा ज्ञान, अहंकार को जन्म देता है और मनुष्य के पतन का कारण बनता है, वाल्मीकि रामायण उठाकर देखो न ,लंकापति रावण में क्या ज्ञान की कोई कमी थी , कहा जाता है तत्कालीन उसके समान पाण्डित्य में तीनों लोकों में कोई नहीं था। परन्तु अहंकार ही उसके पतन का कारण बना। कहने का मतलब ज्ञान की प्रबलता तभी असरकारी होती है जब धैर्य,क्षमा,दृढ़ता,शीलता और धर्म का गुण हो ।

      मैंने उसके भाई प्रिंस से कहा कि इसका अर्थ कहीं अन्यथा यह मत लेना ।जूही भी अपनी मां की तरह गम्भीर है,अपने आराध्य को प्राप्त करने की प्रबल लालसा है, एकाग्रता और कर्त्तव्यनिष्ठ भी है उसकी वाणी में मिठास भी है बैलेंसिंग व्यवहार भी है। बस फर्क इतना अवश्य है कि वह कुप्पी जली तो..........।


       


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