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Harshita Joshi

Abstract Others

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Harshita Joshi

Abstract Others

"राधेश्याम की कलियुगी लीला!! "

"राधेश्याम की कलियुगी लीला!! "

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आओ सुनो 'हर्षिता' से मन को हर्षित करने वाली एक कलियुगी प्रेम लीला, 

 आए थे जिसमें राधेश्याम स्वयं धरती पर हरने अपने भक्तों की पीड़ा,

रहता था एक दफा पृथ्वी पर एक परमेश्वर प्रेमी जोड़ा, घोर तप कर दोनों ने प्रभु से ये बोला --

    

"है हमारे पास सब सुख ! नहीं हैं आपके रहते हुए कोई भी हमें दुख !! 

पर फिर भी मन में है एक गहरी आस!  आए है परमेश्वर इसलिए हम तेरे पास!!

 न चाहिए हमें धन और न ही मांगे हम पुत्र लाभ! बस कर दे पूरा हमारा श्री राधेरानी को पुत्री बनाने का ख्वाब!!

 जिस प्रभु पर ह यह सारा ये जग है मरता!  चाहिए हमको वही राजकुमारी जिससे गोकुल का ग्वाला सबसे अधिक प्रेम है करता !!

दे दो नाथ हमको भी मौका विष्णुप्रिया के कन्यादान करने का ! दे दो हमको मौका लाडलीजी की लीलाओं पर मर मिटने का!! 

आप न करना उनकी कोई भी चिंता रहने की! नहीं आएगा कोई भी अवसर हमारी शिकायत करने की !!

बस दे दो हमें राधा रानी के माता - पिता बनने का वरदान! दे दो हमारे इस निर्जीव से जीवन को आप जान! !

सुन भक्त दंपति के मुख से ऐसी प्यारी बात! नहीं पाये परमेश्वर राधेश्याम अपने भक्तों की बात काट!!"


भावुक हो गए निश्चल भक्ति को देख भगवान, दे दिया उनको उनका मनचाहा वरदान, 

बोली श्रीमती राधेरानी :

" आऊंगी मैं धरती पर तुम्हारे घर लेने जन्म! 

पावन करने पृथ्वी वासियों का मन! !"

सुनकर ऐसे वचन भक्त दम्पति हो गए अति प्रसन्न,

 करा दोनों ने राधेश्याम को नमन।


 बीते कई दिन बीते कई वर्ष , आने वाला था वो दिन जो इतिहास में होने वाला था दर्ज, गोलोक वासियों और श्रीकृष्ण से लेकर विदा, बरसी राधेश्याम की उसी भक्त दम्पति के अगले जनम में कृपा।

 "आना मुझसे मिलने तुम मेरे 21वे वर्षगाँठ पर , करेंगे हम धरती पर रास पुनः पूर्णिमा की रात पर। उससे पहले मुझसे मिलने तुम न आना,

 अपने अलौकिक रूप में मेरे पास, क्योंकि इंतजार कर बनाना चाहती हूं मैं, उस दिव्य मिलन के पल को खास।"

   

लेकर ऐसा अपने प्राणनाथ से वादा, धरती पर पुनः पहुंची रानीराधा।  लिया उन्होंने अपने भक्त के घर जन्म,  भूलकर भी दंपतिजन पुरानी यादें पूर्व की सारी,

 किया उन्होंने अपनी लक्ष्मी स्वरूप पुत्री को नमन। अंजान थे वो उस दिव्य बालिका के रूप से, फिर भी अत्यंत प्रेम करते वो अपनी पुत्री के स्वरूप से।

उनकी प्यारे खुशहाल परिवार को,कैसे लग सकती थी आखिर किसी की भी नजर, राधा जी के सानिध्य ने बना दिया था क्योंकि उन सब को अमर।


हैरान थे सारे घर वाले राधा जी का देख अद्भुत व्यवहार, जिस उम्र में नहीं रहती हैं होश हवास, उस उम्र से ही से करने लगी थी वो कान्हा से अनोखा प्यार

 चित्र मूर्तियाँ देख प्रीतम की वह अपने आप ही रुक जाती , कृष्ण नाम सुन अनुपम सुख को वो पाती। जब लगी बढ़ने उम्र के साथ लाडली जी भक्ति और भी अपार, तो घर वाले लगे सोचने शायद उनकी पुत्री है परमेश्वर का अद्भुत चमत्कार। अल्फा बीटा गामा (αβγ) के साथ थी उन्हें गीता कंठस्थ याद, 

बॉलीवुड के गानों की जगह गाती थी वह अपने कान्हा का राग। कोई माने उन्हें ईश्वर की कृपा, तो कहे कोई उन्हें पागल दीवानी, दूसरों से क्या था हरिप्रिया को मतलब भला!! उन्होंने तो बस कृष्ण भक्ति की थी ठानी।


देव पुण्यात्माएं सारी रहती सदैव उनके दर्शन को प्यासी , आई माँ दुर्गा स्वयं उनसे मिलने बन उनकी मासी। कृष्ण भी आते हर रोज बदल के अनेक रूप ,

 खेली राधा जी ने ऐसी नटखट लीला प्यारी, नहीं पहचाना जान बूझ कर श्रीहरि का स्वरूप। रहते भले ही दोनों प्रेमी दूसरे से अनजान , फिर भी अलग होते हुए भी थे दोनों एक दूसरे की जान।

आखिरकार आ गया वो दिन !! आ गई हो पावन रात,जो देने वाली थी कलयुग के भक्तों के कष्टों को मात। बिछाया नियति ने कुछ ऐसा जाल, 

पहुंचे राधारानी के 21 वीं वर्षगांठ पर, भाग्यशाली भक्तजन पहुंचे वृंदावन होकर भक्ति में बेहाल। हुआ था जो भी प्राणी उस समय वहां उपस्थित ,

उन सभी की ह्रदय की प्यास जाने वाली थी मिट। द्वापर युग में जिस दृश्य के लिए तरसे थे ब्रह्मांड के सारे प्राणी, करेंगी सबका उद्धार बन भक्त दंपति की पुत्री श्री राधारानी।


वृंदावन की भूमि में रखने जा रही थी जैसे ही वो पहला कदम , होकर अदृश्य बांकेबिहारी ने पकड़के हाथ राधे का, बढ़ाये साथ-साथ दोनों ने अपने चरण।

वो पल था राधेश्याम के लिए अत्यंत खास, जी लिया हो मानो उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन का अहसास। हल्की मुस्कुराहट लेकर राधा रानी के जैसे ही बढ़ती है आगे, उनका कण कण अपनी प्रीतम की झलक की मांगे। आखिर कैसे करते श्रीराधारमण मना अपने प्राण को, आए सामने बदल वेष अपना, 

लग रहा था वो दृश्य मानो हो कोई सपना। देख अपने कान्हा को बहने लगे अश्रुओं की धारा,  एक बार फिर बन गई वो अपने कृष्णा की राधा।


आए बन वृंदावन के गाइड ग्वाले संग गिरधारी, माया मे सबको फसा कर अपनी, लगे घूमने हाथ पकड़ कर साथ दोनो राधे और मुरारी।

अपने लीलाओं के स्थानों में घूम साथ हो जाते दोनों भावुक, मुसुकुराते कभी तो कभी घंटों ताकते रहते एक दूसरे का मुख। घूमते घूमते जब छा गई रात्रि की छाया ,शुरू कर दी तब राधेश्याम ने गोपियों संग महारास की माया। छोड़ सारे बंधन हो गया परमात्मा से एक बार पुनः मिलन, 

हुआ फिर से हर भाव से मुक्त निधिवन, रास गीत और बांसुरी की पावन मीत, या हो गोपियों के घुंघरू की प्रीत, हर कण-कण वहां का कृष्ण कृष्ण पुकारे, 

लगाता ब्रह्मांड सारा प्रभु के जय-जयकारे।


रास का दर्शन कर प्राणी हो गए आभारी, गाने लगे श्रीनारद रास की महिमा न्यारी। नहीं है रास शरीरों के मिलन का गीत, ये तो है आत्माओं का परमात्मा से मिलन की पावन रीत। इसे पाने के लिए तप नहीं चाहिए निश्चल भक्ति, परमेश्वर प्रेम ही तो है समस्त प्राणियों की असली शक्ति। एक बार पुनः धन्य हो गया धरती लोक, मानो बन गई पृथ्वी धाम गोलोक।


अगली प्रातःकाल का था सबको बेसब्री से इंतजार, क्योंकि खुलने वाला था भक्तों की भक्ति का द्वार। चुनकर प्रभात में रंग बिरंगी फूल सारे ,

करने लगे श्रृंगार राधे का मोहन प्यारे। फिर चले समक्ष दोनों राधिका के पिता के सामने , बोली राधे कि मैं करती हूं इस ग्वाले से प्यार, जोड़ी बनाई है हमारी स्वयं सियाराम ने। सुनकर अपनी पुत्री से ऐसे बातें चौक गए उनके मां-बाप , लगे पूछने कौन है यह ? क्या है इसका नाम ?! सुनकर राधे रानी मुस्कुराते हुए बोली, यह है ग्वाला कान्हा ... यही है मेरी धड़कन !!, यही है मेरे प्राण ... बस यही है मेरा मन।


आ नहीं रही थी समझ में माता-पिता को बात, फिर गिरधारी ने याद दिलाई पूर्वजन्म की तप की रात। बोले उनसे आपके ही कारण होगा पुनः विवाह हमारा, होगा राधिका का कन्यादान वचन अनुसार आपके द्वारा, इस दिव्य पल के साक्षी बनेंगे आपके साथ देव गण और भक्त हमारे।

सुनकर ऐसी बातें याद आ गया दंपति को अपना पूर्व जन्म , श्रद्धा पूर्वक किया उन्होंने राधेश्याम को नमन।

बोली ऐसा करते देख राधेरानी -- 

   "ना मां-बापू अभी तो आप माता-पिता हो मेरे ,

   प्रणाम करूंगी अभी मैं वैसे ही आपको जैसे  

   करती हूं प्रत्येक सवेरे।"


शुरू हो गई विवाह की तैयारी वृंदावन मंदिर के सम्मुख, सारे भक्तजन हो रहे थे भक्ति में डूब बड़े ही भावुक।हुआ विवाह संपन भक्त दंपती के कन्यादान द्वारा, परमेश्वर के मिलन से बन गया ये सारा जग आभार।

आए अपने दिव्य स्वरूप में राधे और गिरधारी , सारे भक्तजन हो गये उनके आभारी। चले दोनों एक दूसरे के साथ मंदिर के भीतर, जय-जयकार करने लगे सारे भक्त भक्ति का रस पीकर। मूर्ति के अंदर बसकर पहुंचे दोनों अपने गोलोकधाम, आकर कलयुग की धरती पर बढ़ा दिया दोनों ने भक्तों का मान।

समाप्त होकर भी आरंभ हुई राधेश्याम की लीलाओं की महिमा न्यारी। पुकारे मेरा कण कण अब सारा आ जाओ हमसे भी मिलने अब राधे और मुरारी।।

बोलो जय राधेमुरारी की।।

श्री बांकेबिहारी की।।

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