MANTHAN DEORE

Drama Romance Tragedy

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MANTHAN DEORE

Drama Romance Tragedy

प्यासा ये दिल

प्यासा ये दिल

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सिमा अग्निहोत्री का नाम शहर के उद्योगपतियों में सबसे शीर्ष स्थान पर लिया जाता है। अपने सपनों को हकीकत में उतारकर दिखाया, वह भी स्वयं के बलपर जब उद्योग के निर्माण हेतु परिवार का साथ चाहिए था तो मना कर दिया और परिवार का त्याग कर खुद चल पड़ी अपने रास्ते अकेले। अकेले के दम पर अपने उद्योग का नाम अग्रणी स्थान पर पहुँचाना कोई साधारण बात न थी, यह प्रेरणा थी आने वाली नस्ल के लिए। जब मंजिल पाने हेतु सगे- संबंधियों का साथ न मिले, तो दूसरों से कैसी अपेक्षा। जब कभी मदद की जरूरत पड़ी तो कोई साथ नहीं देता, अनेको अटकलें और कांटों से भरे पथ को निडरता से पार करते हुए गुलाब की भाॅंती अपना जीवन सुखकर बनाया। बहुत सारे लोग है, जो उसे स्वार्थी और घमंडी कहते नजर आते है किंतु वह उन्हें नजरअंदाज कर आगे बढ़ जाती है , वह जानती है अगर खुद उन लोगों की बातें सुनकर बदलती रहीं तो स्वयं का विकास करना बहुत कठिन है। 


सुबह के करीब दस- ग्यारह बजे होंगे। बंगलें पर सिमा का सेक्रेटरी गगन किसी काम से आया , कंपनी में जाने के लिए देरी होने के कारण सफर में बातचीत करने की सलाह दी और निकल पड़े ऑफिस जाने के लिए| रास्ता लंबा होने के कारण बातें करते- करते चाय के दुकान के पास अपनी गाड़ी रोकी और चाय पीने लगे। देखा कि युवा नौकरी की तलाश हेतु हाथों में कुछ प्रमाणपत्र लिये घूम रहा था। दिखने में भोला- सा लेकिन उसे देखते ही सिमा के दिल में अजीब से अरमान उमड़ने लगे, कुछ समझ पाती उतने में दिल से आवाज आईं कि ये सिर्फ तुम्हारा है, सिर्फ तेरा। उसकी तरफ इशारा करते हुए गगन से कहा, क्या तुम इसे जानते हो गगन?.. 

मैंने कभी नहीं देखा , लगता है नया है इस शहर में.. गगन ने कहा।

मुझे इसके बारे में दो दिनों में पूरी जानकारी चाहिए.. सिमा ने आदेश दिया।

जी जरूर मैम.. हामी भर आश्वस्त किया।


अगले दिन ही गगन उस नौजवान के बारे में जानकारी लेकर आया। उसके बारे में बताते हुए कहा, " मैम, उसका नाम रूषम है, नाम के मुताबिक ही स्वभाव से शांत- सा और मासूम लड़का है जो एक मध्यम वर्गीय परिवार से आता है जिसके पिता रिक्षा चलाते और माता दूसरों के घरों में बर्तन माँझने का काम करती है। बेटे से बहुत आशा है कि अपना नाम अवश्य बड़ा करेगा, पिछले कुछ महीनों से निरंतर प्रयास कर रहा है किसी अच्छी नौकरी ढूँढने का किंतु सफलता हासिल नहीं हो रही।सूरज का उजाला नई उम्मीद की किरण लेकर आता तो है, किंतु रात का अंधेरा उसे निराश कर देता है।फिर भी हौसले बुलंद हो तो कभी हार का सामना नहीं करना पड़ता इस प्रकार वह भी डटकर खड़ा हुआ है।"

उसकी स्थिति देख उसका हृदय रो पड़ा और गगन से कहा कि " रूषम को हमारे कंपनी की तरफ से ऑफर दिया जाये।" 

गगन ने आज्ञा का पालन करते हुए रूषम को कंपनी की तरफ से आवेदन पत्र दिया।


जब रुषम के हाथों में अग्निहोत्री ग्रुप ऑफ कंपनीज् की तरफ से नौकरी की मांग आई तो इतनी खुशी हुई कि वह किसी के साथ बयां करने के लिए उसे शब्द नहीं मिल रहे थे।

माँ, मेरी मेहनत रंग लाईं शहर की मशहूर कंपनी के तरफ से मुझे नौकरी का आवेदन आया है, मैं आज बहुत खुश हूँ.. अपनी खुशी जाहिर करते हुए माँ को खुशखबरी सुनाईं।

क्या सच, मैं कह रही थी न तुझे भगवान पर भरोसा रख, सब ठीक हो जाएगा.. 

अब बस एक पड़ाव दूर हूँ अपने स्वप्न को प्राप्त करने हेतु.. 

मेरा लाल अवश्य सफल हो जाएगा.. 

जब ये खबर अपने बापू को सुनाई तो उन्होंने अभिनंदन किया साथ में हौसला बढ़ाते हुए कहा, " तुम्हारी मेहनत का फल प्राप्त हुआ है और मुझे विश्वास है कि बहुत जल्द तुम अपनी जगह पक्की करोगे।"

अपने बापू की बातें सुनकर रूषम को नई ऊर्जा प्राप्त हुई , साक्षात्कार के लिए जोरों से अभ्यास करने लगा।


क्या रूषम साक्षात्कार में सफल हो पाएगा या नहीं, देखते है अगले अंक में.... 


साक्षात्कार का डर तो था ही किंतु पिता की प्रेरणा और माता का आर्शिवाद साथ हो तो कठिन से कठिन दुविधा आसानी से हल हो जाती है। 

रूषम के प्रमाणपत्र, बोलने की सौम्य भाषा एवं प्रतिभा देख सिमा उसपर फिदा हो गई और उसकी नौकरी पक्की करा दी.. कहा कि हम आपके प्रतिभा से खुश हुए, आशा है कि आप हमारे उद्योग को बहुत आगे ले जाऍंगे।

धन्यवाद मैम, मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैं आपके भरोसे पर जी- जान से मेहनत कर उद्योग को बुलंदियों तक ले जाऊँगा।

ग्रेट! आप कल से कंपनी जाॅईन कर सकते हो.. 

जी जरूर.. 

इतना कहकर रूषम अपने घर जाकर जब खुशखबरी सुनाता है तब परिवार के सदस्य आनंदित होकर पूरे मोहल्ले में मिठाई बाँटकर हर्ष का अनुभव करते है।


धीरे- धीरे रूषम अपने सहकर्मियों के संग घुलमिल गया और उनके साथ कार्य करते हुए मार्गदर्शन प्राप्त कर हर समस्या का हल ढुँढने लगा| उसका विकास देखकर अनुभवी लोग आश्चर्यचकित हो जाते और उसकी तारीफ करते हुए कहते कि, काश! तुम जल्दी यहाँ आ जाते तो हमारे कंपनी की स्थिति कुछ और होती। 

सिमा को भी उसके इस निर्णय की खुशी हुई। जब गगन द्वारा एक समस्या ने दस्तक दी तो सिमा के माथे पर चिंता की लकीरें साफ नजर आ रही थी, इसका हल जब अनुभवी व्यक्तियों के सामने रखा गया तो सबके मुख पर रूषम का ही नाम आया।

हमें भरोसा है कि वह यह काम अवश्य सफलता से प्राप्त करेगा किंतु वह अभी नया है, उसे इतने बड़े काम हेतु वहाँ नहीं भेजना चाहिए.... 

पता है किंतु हमें पूरा यकीन है कि रूषम ही इस कार्य हेतु सक्षम लड़का है.. क्या कहते भाईयों.. 

सभी के मुख से एक ही आवाज़ गूँजने लगी, रूषम.. रूषम.. 

सारे सदस्यों की मान्यता होने के कारण रूषम को कार्य पूरा करने हेतु भेजा गया.. रूषम ने भी नयी जिम्मेदारी हंसते - हंसते सहर्ष स्वीकार की.. उसका वही हावभाव और विश्वास देखकर ही आधी जंग जीती हुई नजर आ रही थी।


जिस आशा से रूषम को भेजा गया था, उससे कई गुना ज्यादा सफलता प्राप्त कर अपनी जगह स्थापित की.. उसकी वाह- वाह चारों ओर से की जाने लगीं। उसे आये अभी कुछ डेढ़ ही साल हुए थे फिर भी सबसे ऊँचे पद पर कार्यस्थ करने का निर्णय जब सुझाया गया तो सभी सदस्यों ने बिना किसी अवरोध के स्वीकार किया। जब रूषम को पता चला तो आनंदविभोर होकर झूमने लगा, सिर्फ उच्च पद ही नहीं उसके साथ- साथ बड़ा मकान, गाड़ी जैसे अन्य सुविधा भी दी गई।

संपूर्ण सदस्यों के सामने उसने भरोसा देते हुए कहा, मैं आप सबका ॠणी हूँ कि मुझे इतनी बड़ी जिम्मेदारी दी जा रहीं है.. मैं अपना कार्य बखूबी और सच्ची निष्ठा के साथ निभाने का भरसक प्रयास करूँगा.. जिस उम्मीद से आपने मुझे इस कुर्सी पर बैठाया है उसे हर हाल में अवश्य पूरा करूँगा.. पुनः एक बार फिर से धन्यवाद करता हूँ।


जब ये खुशखबरी परिवारवालों को सुनाई तो आनंद की सीमा न रहीं.. पूरे मोहल्ले वालों को खबर जब पता चली तो कई बातें सुनकर पिता को गौरव का अनुभव होने लगा .. जो हाथ रिक्शा चलाते- चलाते थकान महसूस नहीं करते वही हाथों से आज बगीचे के पौधों पर पानी डाला जा रहा है.. जो हाथ कभी दूसरों के घरों में बर्तन धोते वही आज आराम से हाथों की मालिश करने लगे है। जिस तरह का जीवन जीने लगे उसकी आशा कभी सपनों में भी नहीं की थी.. किंतु आज वही आरामदायक जीवन अपने बेटे की मेहनत से हासिल की है।

जो आस हमेशा से अपने बेटे से थी उससे कई गुना ज्यादा सफलता रूषम ने हासिल की।



सिमा के साथ रूषम का संबंध पहले से ज्यादा निकटतम आता दिखाई देने लगा, जितनी मेहनत रूषम की थी इस पद पर आने के लिए उससे कई गुना ज्यादा इच्छा सिमा की उसे अपने नजदीक पहुँचाने के लिए रही.. नहीं तो ये मुकाम इतनी जल्दी किसी के भी बस की बात नहीं है।


दोनों के दिल में प्यार की उमंगें बढ़ती जा रही थी, अपनी दिल की बात कहने में हिचकिचाहट होती। एक तरफ धन, ऐश्वर्य से लैस जिंदगी तो दूसरी ओर गरीबी से जूझते हुए इस मुकाम तक पहुँचा रूषम, दोनों के लिए मन की बात करने का संकोच होना लाजमी है।


जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु मैंने अर्श तक पहुँचाया, उसे अपनी मन की बात कहने के लिए इतनी देर क्यों? आखिर इतनी देर क्यों? क्या उसके साथ रहकर मेरा दिल उसके जैसा हो गया.. क्या उसके अंतर्मन में कोई संवेदना नहीं जग रही.. या वह किसी दूसरे से प्यार करता हो.. अनेकों प्रश्न उसे खाए जा रहे है.. दूसरी ओर रूषम जो सिर्फ काम के पीछे लगा रहता, मन में छिपे दर्द को किसी से कुछ कहने से हमेशा से कतरता किंतु वह अब चूप न बैठकर बिना किसी की परवाह कर दिल की बात सिमा से कहने वाला है।


दोनों मुलाकात के लिए एक रेस्तरां में आ पहुँचते है, बहुत देर तक एकदूसरे को ताकतें रहे| कुछ क्षण बाद एकसाथ कहने लगे, मैं क्या कह रहा/ रही थी.. 

अच्छा तुम ही बताओ.. रूषम ने सिमा से शुरुआत करने के लिए कहा|

मुझे तुमसे प्यार है.. बिना किसी डर के सिमा ने अपने प्यार का इजहार किया।

और मैं भी तुम्हारी बेकरारी में नींद भूला चुका हूँ.. रूषम ने भी हिम्मत से अपने दिल की बात कह दी।

दोनों एकदूसरे का हाथ थामें टकटकी नजरों से निहारते रहें, प्यार की मदहोशी में मशगूल हो भूल गए कि हम कहाँ है, किसी की धड़ाम आवाज सुनकर एहसास हुआ कि हम कहाँ है। सिमा अपनी गाड़ी घर पर ही रखकर आयी थी, उसी कारण रूषम उसे घर तक छोड़ने आया.. सिमा सिर्फ उसे निहारती, गाड़ी रूकी और बिजलीयॉ जोर से कड़कने लगी इसी कारण रूषम उसके घर ठहर गया।


रात के करीब दस बज चुके थे। वह दोनों अकेले थे। रूषम अपने कमरे में सोने चला गया और सिमा मोमबत्ती की रोशनी में अपने दिल की बातें सुन रही थी। अचानक से उसे आवाज आईं, "क्या कर रही हो सिमा आज मौका भी है और दस्तूर भी जा दिल की प्यास बुझा ले.. ऐसे मौके बार - बार नहीं आते.. तू भी उससे प्यार करती हो और वह भी तो कुछ गलत नहीं होगा.. जिस प्रेम की भूख दबाकर रखी है उसे कबतक छुपाकर रखेंगी.. तोड़ दे सारी जंजिरे नहीं तो कल तुम्हें छोड़कर दूसरे के साथ चला जाएगा.. नहीं, नहीं.. ये गलत है इतनी बेसब्री क्यों? आखिर क्यों? रिश्ता लेकर उसके परिवार से बात करेगी, लेकिन क्या वह तेरी सच्चाई जानकर रूषम को तेरे साथ भेजने के लिए राजी होंगे, नहीं उल्टा ये कहेंगे जो अपने परिवार की नहीं हो सकी वो हमारे रूषम की क्या होगी.. नहीं जब रूषम समझायेगा तो घरवाले जरूर मानेंगे, तुम नादान हो उनकी सोच कुछ अलग है, जा और लपक ले अपने प्यार को कहीं देर ना हो जाए। " 

सिमा ने अपने दिमाग से न सोचकर दिल की आवाज पर कायम रहीं.. रूषम के साथ अपने दिल की बात सुनकर रूहानी प्यास बुझाकर संतुष्टि पाईं। 

  

सुबह हुईं तो रूषम को समझ आया कि अनजाने में कितनी बड़ी गलती हो गई है.. वह भागा- भागा मन में असंख्य प्रश्न लेकर उस घर से अपने घर चला आया। घर आते ही जोर- जोर से अश्रुधारा बहाते- बहाते स्वयं से न हुई गलती पर पछतावा करता रहा।



घर आते ही किसी से कुछ न कहकर अपने कमरे में जाकर अपने अश्क बहाने लगा.. कितनी अजीब बात है ना एक लड़की ने अपनी अतृप्त इच्छा को किसी अनपेक्षित कार्य से पूरा किया.. मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि घिनौना कृत्य कोई लड़की कर सकती है.. बड़े लोग हुए तो क्या सभी मान मर्यादा भूलकर इस हद तक कैसे जा सकते है? नहीं ये तो अमीरों के लिए आम बात है जो हमारी संस्कृति, सभ्यता एवं परंपरा की खुले आम तौहीन कर रहे है, मैंने तो ऐसा भारत कभी नहीं चाहा जो किसी के आकर्षण में आकर इस तरह का बर्ताव करते है.. क्या सच हम अपनी अतृप्त इच्छाओं को पूरा करने सारी मर्यादाओं को भूल चुके है.. अनजाने में ही सही किंतु मुझसे गुनाह तो हुआ है और वह भी अक्षम्य, जिसका कोई प्रायश्चित्त है या नहीं मालूम नहीं। अनगिनत सवाल उसे खाए जा रहे थे, जिनके जवाब उसके पास न थे। 


देखो जी, रूषम जब से घर आया है तब से अपने आपको कमरे में बंद कर लिया है.. रूषम की माँ अपने पति से कहती है।

रूषम बेटे क्या हुआ, दरवाजा क्यों बंद कर रखा है बताओ परेशानी क्या है? .. रूषम के पिताजी ने दरवाजा खटखटाते हुए पूछा|

रूषम ने आवाज सुनते ही अपने नेत्र पोंछते हुए दरवाजा खोला, वह बोला क्या हुआ क्यों पुकार रहें हो? 

बेटा, जब से घर आया है तभी से स्वयं को कमरे में बंद कर रखा है, परेशानी क्या है? 

कुछ नहीं बापूजी, एक सवाल खायें जा रहा था कि दूसरों की गलती से क्या हमें पाप लग सकता है.. उसकी वह एक गलती क्या हमारी जिंदगी बरबाद कर सकती है? बहुत सोचने के बाद अंतर्मन बार - बार यही कह रहा है कि हमें उससे दूर चले जाना चाहिए जहाँ उसकी परछाई भी हमें ढूँढ नहीं सकती आप क्या सोचते हो इसके बारे में?.. 

रूषम ने पिताजी के सामने प्रश्न खड़ा कर दिया।

यहाँ सवाल ये उठता है कि वह गलती कितनी बड़ी है लेकिन मेरी राय ये कि जहाँ तक हमसे संभव है उससे हमें संघर्ष करना चाहिए..पिताजी के जवाब से रूषम को धैर्य आया।

बापूजी क्या मैं अपने बाॅस के संग विवाह कर सकता हूँ? वह भी मुझे चाहती और मैं भी उसे.. अपनी शादी का प्रस्ताव माता- पिता के सामने रखा।

हमें कोई ऐतराज़ नहीं लेकिन क्या तुम ये चाहते हो कि दो परिवारों के बीच ऊंच नीच का भेद हमेशा बना रहें, क्या तुम्हें अपने पिता पर भरोसा नहीं कि वह तुम्हारे लिए अपनी एहसियत का खानदान ढुँढ पायेगा.. पिताजी की बात सुनकर उसका हृदय रो उठा।

पिताजी मुझे क्षमा करें, मुझसे गलती हो रही थी उसे आपकी बात सुनकर रोकने जा रहा हूँ.. रूषम ने पिताजी से माफी चाही।


रूषम के दिल से आवाज उठी कि " वह तेरी कभी नहीं हो सकती जो औरत अपनी हदें पार कर जाए वह किसी की बिवी होने योग्य नहीं.. काश! उसने थोड़ा सब्र रखा होता तो स्वयं को भी खुश पाती और अपने प्यार को भी पा लेती.. अगर भगवान की मर्जी यही है तो फिर हम इन्सान क्या कर सकते है.. मैं उसके लिए बना ही नहीं ना वह मेरे लिए, जो औरत आकर्षण से अपने मन को शांत नहीं रख पाती क्या विश्वास की शादी कर मेरी ही रहें.. नहीं मैं उसके लिए काबिल नहीं.. बड़े लोगों की बड़ी ख्वाहिशें, मेरी जिंदगी में आया सिमा का साथ सिर्फ एक सपना है, बस एक सपना जिसे हकीकत में उतारने की सबसे बड़ी गलती ना कि सिर्फ उससे बल्कि मुझसे भी हुई.. काश! मैं वहाँ के रास्ते न जाकर अपना चेहरा फेर लेता.. कितना बेवकूफ हूँ ना मैं, मुझे लगा मेरी काबिलियत से अपना मुकाम हासिल किया अब समझा मैं सिर्फ एक प्यादा था जिसका इस्तेमाल कर कुचल दिया जाता है.. सिर्फ और सिर्फ एक प्यादा और कुछ नहीं हा... हा.... " जोर- जोर से हंसने लगा अपनी बेवकूफी पर।


रूषम ने फैसला कर लिया था, किसी अनजान जगह बसने का.. और नौकरी को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कहने का। 


जब सिमा को रूषम के इस्तीफे के बारे में पता चला तो उसे ऑफिस में बुलाया गया। 

क्या समझते हो अपना इस्तीफा देकर भागना चाहते हो, अपने आप को बचाकर.. 

जो गलती मुझसे हुई ही नहीं उससे डर कैसा? मेरा ये निर्णय दूसरे शहर बसने के कारण है.. न चाहकर भी रूषम को झूठ बोलना पड़ा।

तुम क्या समझते हो, दूसरी जगह जाकर अपने आप को कबतक बचा पाओगे.. जो मुकाम हासिल किया है मत भूलों कि वह सिर्फ मेरे कारण मिला है.. नहीं तो आज भी घूम - फिर रहे होते अपनी डिग्रीयों के कागज हाथों में थामें, एक वक्त ऐसा आता कि थक हार के अपने बाप की तरह सड़कों पर सवारियों के इंतजार में खड़े रहते।


काश! यही होता तो तुम जैसी औरत का मुख न देखता, बड़ा गुरूर है ना अपने आपपर सारी सुख- सुविधा रहकर भी तुम हमेशा के लिए अपने प्यार के लिए तरसती रहोगी श्राप है मेरा.. गुस्से से रूषम ने अपनी बात कही।


जो जिन्दगी मैंने तुमको दी है वह तुम कभी हासिल नहीं कर पाओगे..तुम्हें फर्श से उठाकर अर्श तक मैंने पहुँचाया ये मत भूलों.. 


मैं लाथ मारता हूँ, उस ऐश्वर्य को जो एक दिखावा है, छल है.. मुझे नहीं चाहिए ऐसी बेहया, बेइज्जत और बेशर्म लड़की का साथ जो अपने प्यार को पाने के लिए अपनी सारी हदें भूल जायें.. 


हूँ मैं बेशर्म, गलती क्या है मेरी। बचपन में परिवार के प्यार के लिए तरसी, जवानी में किसी से मित्रता न हो पायीं तुमसे अपने सुख - दुःख की बातें करनी चाही तो तुम भी छोड़कर जा रहे हो, क्या हमसफ़र देखा था ख्वाबों में वो भी मेरी जिंदगी में आने से पूर्व ही रफूचक्कर हो गया.. तुम्हें देखा दिल में आशा की किरण दौड़ पड़ी अब वो धूमिल होती जा रही है.. अपने मन में छिपी वेदना रूषम से कह दी। 


तुम सब पा सकती शायद उससे भी ज्यादा..लेकिन जब ये रूपयों का गुरुर तोड़ती..


कौन है जो पैसों पर घमंड न करता हो, चुटकियों में खरीद सकती हूँ मैं तुम जैसे लोगों को लेकिन मैंने वह रास्ता नहीं अपनाया.. अगर नौकरी नहीं देती तो जिस महल में रह रहे हो ना वह भी नसीब में नहीं होता.. एहसान मानो कि मेरे कारण जिस जीवन का स्वप्न न देखा था उसे हकीकत में जी रहे हो.. 


नहीं चाहिए तुम्हारा वह चार दिवारों वाला आलिशान मकान, पुराना मकान छोटा ही सही लेकिन किसी महल से कम नहीं है.. 


एक बार पुनः सोच लो, मेरे साथ ठहरोगे तो फायदे में रहोगे, ऐसी जिंदगी किसी नसीबवालों को ही मिलती है.. अपने पास बुलाने का सिमा ने प्रयत्न किया।


सोचना क्या है, तुम्हें क्या लगता है पैसों की ताकत से मुझे खरीद पाओगी ये तुम्हारी गलतफहमी है.. 


मैं भी देखती हूँ कौन तुम्हें नौकरी देता है.. 


रूषम आगे कुछ नहीं बोला और चुपचाप वहाँ से निकल गया.. नौकरी तो छोड़ दी उसके साथ कंपनी से मिली जायदाद भी त्याग दी।


सिमा को अपना ही मकान किसी कोप भवन से कम नहीं लग रहा था.. सारी दिवारों से रूषम रूषम नाम की गूँज उठ रही थी.. क्या मैंने किया वो असभ्य था, नहीं उसे कभी नहीं समझा कि मैं उसे कितना चाहती हूँ.. सारा दोष मुझपर डालकर चला गया, क्या मैं अपनी हदें उस दो टके के लड़के के लिए भूल गईं ,ना मैंने कोई गलती नहीं की उसकी नजरों ने मुझे हद पार करने के लिए विवश कर दिया.. 

सिमा को अभी भी समझ नहीं आ रहा था कि स्वयं से कितनी बड़ी गलती हुई है.. वह लगातार रो रही थी लेकिन अपनी गलती होने से नहीं बल्कि रूषम का साथ छूट जाने के कारण.. अपने प्यार में इतनी पागल हो गई कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें या क्या नहीं.. 

जिस प्रेम को पाने के खातिर उसने ये सब किया वही आज उससे दूर चला गया हमेशा के लिए.. उसे देखकर जो खुशी मिलती वही अब उसका न होने से ज्यादा दुःख होने लगा।


नये शहर में आकर रूषम के परिवार को कुछ ही हप्ते हुए थे, रूषम को नयी नौकरी मिलने में कोई भी कठिनाई नहीं हुई, पद छोटा भला ही हो लेकिन रोजी रोटी कमाने का जरिया मिल गया। रूषम को खुशी इस बात की है कि मेरे कारण माँ- पिताजी को कष्ट नहीं उठाना पड़ा, उनके सामने सिर्फ भविष्य की चिंता थी। अपना अतित भूलकर नई उमंग के साथ भविष्य सवारने की मेहनत करने लगा। 


उसकी मुलाकात जब निषिता से हुई, तब अपने कॉलेज के दिनों की यादें ताजा हो गई।कैसे बातों- बातों पर लड़ते झगड़ते, वह रूठना और रूठकर मनाना, उसके संग बिताए हसीन लम्हें जीवन की जिम्मेदारीयों को निभाते हुए कब और कहाँ गुम हो गए दोनों को पता ही नहीं चला। 


निषिता का वह एक गीत सुनकर रूषम उसका कायल हो गया, उसकी मिठी मृदुल वाणी सुन भावविभोर हो गया था मानो ईश्वर ने निषिता को अपने लिए ही धरती पर भेजा हो। वह हर समय उसके पिछे गोते लगाते हुए नजर आता, उसका दीवानापन देखकर निषिता ने अपनी दिल की बात रूषम से कहीं। आखिरी साल की पढ़ाई चल रही थी उसी वक्त निषिता के पिताजी का तबादला दूसरे शहर हो गया, जब ये बात रूषम को पता चली कि निषिता कॉलेज छोड़कर जा रही है तो वह सुन्न हो गया।


निषिता ने उसे मिलने के लिए उपवन में बुलाया और कहने लगी, मुझे पता है तुम्हें कितना दुःख हो रहा होगा उससे ज्यादा गम मुझे है तुम्हें छोड़कर जाने का.. तुम्हें शायद पता नहीं मैंने पिताजी को कितना समझाया कि कुछ महीनों बाद चलते है लेकिन सरकारी हुक्म का पालन करना यही उनका धर्म है।


लेकिन अब तुम कहाँ मिलोगी और हमारा प्यार, जबतक पढ़ाई पूरी नहीं कर लेती तबतक तुम मेरे साथ ठहर तो सकती हो ना.. अपने शहर में ठहरने की सलाह देते हुए|


नहीं हम विवश है और मेरा प्रवेश भी निश्चित हो चुका है, अगर हमारी मोहब्बत सच्ची है तो हम जरूर मिलेंगे.. निषिता ने धैर्य रखने हेतु कहा।


हा, हम जरूर मिलेंगे.. हाथों को चुमते हुए रूषम ने निषिता को कहा।


निषिता तब से अपने पुराने दोस्तों को छोड़कर हमेशा के लिए दूसरे शहर चली गई।


रूषम को उसे देखते ही अपने पहला प्यार और वो आखिरी मुलाकात याद आ गईं। दोनों में काफी बदलाव आ चुका था, किंतु प्यार की वो मिठास वही पहले जैसी थी। जब से मुलाकात हुई तभी से उनके प्यार में बढ़ोतरी होने लगी और मुलाकातें भी, दोनों अधूरे अरमानों को सपनों में संजोने लगे। दोनों को दिखने लगा हमारे प्रेम की जीत जो कहीं गुमनाम हो गई थी।


निषिता क्या तुम मुझसे अभी भी उतना ही प्यार करती हो, देखा तुम्हारी वो बात सच साबित हुई है.. रूषम ने पूछा|

गाँव आकर संजना को दो दिन हुए थे कि उसके माता और पिता दोनों को उसके स्वभाव में कुछ- कुछ परिवर्तन दिखाई देने लगे। उसके इस व्यवहार को देखकर वह खुश थे कि जो लड़की पहले सुबह देर तक सोती वह आजकल सुबह कुछ जल्दी ही उठ जाती और उसकी शरारतें भी कुछ कम हो गई थी। संजना में आया यह बदलाव एकाएक न था। उसकी माँ ने उसके इस व्यवहार के बारे में जानना चाह मगर वह समझ नहीं पा रही थी। 


बेटी संजना यहाँ आओ तो जरा मुझे तुमसे जरूरी बात करनी है.. देविका ने संजना को अपने कमरे बुलाया। 

संजना तुरंत हाज़िर हो गई और कहा क्या बात है माँ? 

तुम ठीक तो हो न, कहीं तुम बीमार तो नहीं.. अपनी हथेली से देवकी संजना का बदन देख रही थी। 

उसे लगा कि कुछ तो बीमारी हुई है अन्यथा ऐसा बदलाव कैसे आ सकता है इस लड़की में। जो कभी दस बजे के बाद उठती हो अब अचानक सुबह जल्दी उठकर सैर - सपाटा लगाने क्या जाती है, प्राणायाम क्या करती है? कल तक तो मैंने उसे कभी ऐसा नहीं देखा। 

माँ कुछ भी तो नहीं , मैं बिल्कुल ठीक हूँ .. यह कहते हुए वह जाने को निकली। 

संजना.. देवकी की आवाज में थोड़ा भारीपन था, मुझसे नहीं कहोगी कि बात क्या है? .. देवकी ने उसका हाथ पकड़कर कहा। 

ओ, माँ तुम तो पीछे ही पड़ गई, तुमसे बहुत दूर रही हूँ न कई महीने और हाँ सहेलियों के साथ साथ रहते हुए मैंने उनके तौर- तरीकों को अपना लिया है बस इतना ही है.. संजना ने अपनी माँ की मंशा जानकर कहा। 

अच्छा, ठीक है.. इतना कहकर देवकी ने उसका हाथ छोड़ दिया। 


संजना को तो जाने दिया लेकिन देवकी का मन कुछ आशंकाओं से भरा हुआ था। उसे बार - बार लग रहा था कि हो न हो लेकिन संजना कुछ तो छिपा रही है। बेटी का दिल माँ नहीं पहचान सकती ऐसा कभी हुआ है भला। कुछ दिनों तक देवकी ने संजना के उपर नजर रखनी शुरू कर दी पर कुछ ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि उसपर शक करें। देवकी ने मन ही मन इस विषय पर अपने पति से बात करने की ठानी। 


संध्या समय जैसे ही उमाकांत अपने काम से लौटा तो देवकी ने संजना के विषय में अपनी बात रखी तो उमाकांत कहने लगा, तुम बैठे- बैठे ज्यादा सोचा मत करो हमारी बेटी अब बड़ी हो चुकी है। उसके दोस्त है जो विभिन्न प्रदेश से आये है, उनके तौर- तरीके कुछ अलग होंगे ही और उनके साथ रहने से वह गुण संजना में आना स्वाभाविक ही है। 

कितनी आसानी से आपने इस पर विश्लेषण किया पर मैं तो एक माँ हूँ, उसकी फिक्र होना लाजमी है.. देवकी ने कहा। 

मैं समझता हूँ तुम्हारी तकलीफ लेकिन चिंता मत करो, उसे अपने हिसाब से जीने दो, तुम्हें विश्वास है न अपनी बेटी पर .. उमाकांत ने बड़ी निश्चिंतता के साथ कहा। 

उमाकांत की बातें सुनकर देवकी कुछ आश्वस्त हुई, कुछ ज्यादा न सोचते हुए वह अपना काम करने लगी। 


उमाकांत पेशे से एक वकील है और देवकी एक साधारण गृहिणी। अ तभी हमारा प्यार साबित होगा, अब देखो हमारी मोहब्बत जीत गई, दो बिछड़े प्रेमी फिर एकबार जुड़ गए, ठीक कहा ना मैंने.. 

हा पता है, बातों को घूमाना कोई तुमसे सीखे.. 

  हंसी मजाक की बातें उन्हें पुराने वर्षों की याद दिला जाते। 


कुल छह - सात महीनों बाद ही दोनों ने ही अपने -अपने घर में एकदूसरे के साथ शादी करने का प्रस्ताव रखा और दोनों परिवार मिलने के लिए राजी हो गए, इतना ही नहीं उन दोनों को एकदूसरे का स्वभाव, व्यवहार पसंद आया| दोनों ही परिवार समकक्ष थे, ना उनके बीच जातिभेद था न ही ऊॅच- नीच का भेद।

अंततः उन दोनों का रिश्ता तय हो गया।


सिमा का मन अब काम में नहीं लग रहा था, उसके दिमाग में रूषम का नाम ऐसे गूंज रहा था जिसे वह चाहकर भी भूल नहीं पा रही थी। स्वयं ने गलती कि और उसका पछतावा तब होने लगा जब डाॅक्टर ने कहा कि आपके पेट में नन्ही जान जन्म ले रही है, जब ये खबर सुनी तभी से गगन को रूषम की खोज करने के लिए कहा। 

गगन ने जब समाचार सुनाया कि रूषम की शादी तय हो चुकी है, शादी शब्द सुनकर वह वही वेदना से गिर पड़ी और उसके पास जाने की तैयारी करने लगी।


पूरे सफर में रूषम के बारे में ही सोचती रही, साथ ही अपने आपको कोसती रही, क्या सच में मैं इतनी पागल हो गई थी जो एक छोटे- से देहाती लड़के से प्यार कर बैठी इतना ही नहीं उसी के रूह से अपनी प्यास बुझा ली, शायद उसकी भोली- सी सूरत ही अपने ओर खींचती हो.. कही देरी ना हो जाए मैं दूसरी लड़की की जिंदगी खराब नहीं होने दूंगी, नहीं उसे दूर करना ही होगा, कहीं ऐसा न हो जाए और उसकी जिन्दगी बर्बाद हो जाए, मुझे जल्द वहाँ पहुँच जाना चाहिए। 


सुहाने मौसम का आनंद लेते हुए उनकी गाड़ी ने किसी पहाड़ी गाँव में प्रवेश किया, उन संकरी घुमावदार गलियों से होकर एक बंगले के नजदीक गाड़ी रूकी। जब सिमा घर में प्रवेश करने लगी तो बैठक खोली में दाम्पत्य को देखकर उसके नेत्रों से पानी टपकने लगा। गगन से जब पूछा गया तो उसने सौ टका सच खबर है, ऐसा कहा।


माँ बापूजी.. जोर से सिमा ने आवाज लगाईं।

उन दोनों ने जब अपनी बेटी को देखा तो बाहें फैलाकर उसका स्वागत करते हुए गले से लगा लिया। 


बेटी कहाँ चली गई थी, अपनों से दूर कभी हमारी याद नहीं आती.. माँ ने अपनी बेटी से पूछा।

कैसे आती मैं आपसे मिलने और क्या अपना काला चेहरा आपको दिखा सकती थी? बोलो ना माँ मैं अपना मुंह कैसे तुम्हें दिखाती? लेकिन आप तो मुझे मिलने आ सकते थे ना.. 

याद है तुम्हें ,जब तू हमें छोड़कर चली गई थी तो कहा था कि कभी अपना चेहरा मत दिखाना, तो बता हम तुझसे मिलने कैसे आते? .. 

वह मेरा बचपना ही नहीं बल्कि अहंकार था, मेरी सबसे बड़ी भूल जिसके चलते मैं अपनों से ही दूर होती चली गई.. अपने आपको थप्पड़ जड़ते हुए कहने लगी। 

मत मार अपने आपको मेरी प्यारी बच्ची, मत मार स्वयं को.. सिमा की माँ उसका हाथ रोकते हुए कहने लगी।


"माँ मैंने सफलता तो पाईं किंतु आपकी कमी हमेशा खलती रहीं, रूपये के पीछे- पीछे भागते हुए कब अपनों का साथ छूटता चला गया पता ही नहीं चला। मैं अंधी हो गई थी और पैसों की होड़ में पागल होकर अपनों को कब भूल गई पता ही नहीं चला। पता है माँ आपको मैंने जबसे उद्योग का भार संभाला है उसी क्षण से मेरी आँखों के सामने चारों ओर पैसा ही दिखाई दे रहा है.. मैं तो नकचढ़ी हूँ लेकिन आपने मुझे रोकने की कोशिश नहीं की.. मैं आपके प्यार को पाना चाहती हूँ, तुम्हारा साथ चाहती हूँ .. देंगी ना साथ मेरा, करेगी ना माफ मुझे।" सिमा ने सारी वेदना माँ को बताईं और अपना दुःख थोड़ासा कम किया|


माँ ने एक शब्द न कहकर प्यारी सी प्यार की झप्पी देते हुए नेत्र गीले किए। दोनों का प्यार देखकर सिमा के पिता मन ही मन खुश हुए।  


जब निषिता को देखा तो झट् से गले लगाकर गप्पे लड़ाने लगी, उनके बीच बहुत सारी बातें हुई साथ में तकरार भी होने लगी, उन दोनों की प्यार भरी मुस्कान देखने के लिए जो ऑंखें बरसों से तरस रहीं थी वही नेत्र खुशी से चमक उठे। आज संपूर्ण परिवार एकसाथ है।


 ८

माँ ने जब निषिता के बारे में बताया कि निषिता की शादी तय हो चुकी है, लड़का बहुत मेहनती और सुशिल एवं मासूम है तो सिमा ने उसका नाम पूछा। 

माँ ने जब लड़के का नाम रूषम बताया तो वह (सिमा) आश्चर्यचकित हो गई| 

बेटी क्या तुम लड़के की तस्वीर देखना चाहोगी? 

सिमा ने बिना विलंब किए झट् से 'हा' में अपना सिर झुकाया।

रूषम का चेहरा देखकर पूरा यकीन हो गया कि वह वही है, जिसने मेरी जिन्दगी खराब की और अब प्यारी बहना को अपने जाल में फंसाया। 

सिमा ने सबको बताया कि वह कितना शरीफ है| बताते हुए कहने लगी, देखने में निहायत शरीफ लगता हो लेकिन इसके कारनामे बिल्कुल हैवान की तरह है.. आपको ताज्जुब होगा लेकिन इसकी भोली सूरत से कतई विश्वास नहीं होगा कि ये लड़कियों के साथ बलात्कार का खेल करना और उन्हें रास्ते पर बेसहारों की तरह छोड़ देना एक आम बात है उसके लिए। 

ये क्या कह रही हो बेटी, कुछ गलतफहमी हुई होगी तुम्हें.. माँ ने रूषम का पक्ष लेते हुए कहा। 

नहीं माँ ये बिल्कुल सच बात है कि वो एक हैवान है, ऐसी बहुत लड़कियाँ है जो उसका शिकार हुई है उनमें से एक मैं हूँ।

ये क्या कहती हो बेटा, क्या तुम्हें भी उसने अपना शिकार बनाया है.. माँ कहने लगी।

हा, माँ हा मेरी कोक में उसका ही वंश पल रहा है.. बता तेरे साथ क्या हुआ था और कैसे उसने अपने जाल में फंसाया.. माँ सच्चाई जानने के लिए तड़प रही थी।

"माँ एक दिन नौकरी के लिए ये बंदा ऑफिस में आया और अपनी परिवार की दयनीय दशा को बताने लगा, उसकी करूण व्यथा को सुन मेरा हृदय द्रवित हो गया और मैंने उसे नौकरी पर रख लिया, कुछ ही महीनों में अपने काम से प्रभावित होकर उच्च पद हासिल किया। जैसे- जैसे दिन बीतते गए, हमारे बीच में प्यार बढ़ता चला गया, मैं प्यार में अंधी उसके बहकावे में आकर उसके बुलाए हुए स्थान पर चली गई और उसी रात षड्यंत्र से मुझे अपना शिकार बना लिया, जबतक मुझे समझ में आता तबतक काफी देर हो गईं और वह शहर से भागकर कहीं दूर चला गया .. सिमा ने बिना रूके एक साॅंस में अपने साथ हुई आपबीती कह डालीं।

जब बहन के साथ घटी बात सुनी तो निषिता को विश्वास नहीं हुआ वह कहने लगी, बता दो दिदी की ये बात झूठ है मैं उसे कबसे जानती हूँ वह ऐसा घिनौना कृत्य कभी नहीं कर सकता.. निषिता ने रूषम का पक्ष लेते हुए कहा। 

मैं समझ सकती हूँ तुम्हारी पीड़ा लेकिन यही सच्चाई है, तुम्हारे कहने से हकीकत तो बदल नहीं सकती.. सिमा ने धीरज देते हुए कहा।


निषिता को अपनी बहन पर अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था और वह फूट- फूटकर रोयीं जा रही थी। क्या सच और क्या झूठ इसका रहस्य खोलना ही होगा, इसी वजह से वह दौड़े- दौड़े रूषम से मिलने आ पहुँची।


जो रूषम ने कहा उसे सुनकर वह सुन्न हो गईं और चक्कर खाकर वही गिर पड़ी। अब दुविधा यह थी कि वो किसपर भरोसा करें अपनी दिदी पर या अपने प्रेमी पर। 

उसने कहा था," किसी अग्निहोत्री कंपनी के तरफ से अचानक नौकरी के लिए ऑफर आईं, खास बात ये कि बिना किसी आवेदन दिए मुझे नौकरी की आवश्यकता थी तो मैंने किसी बात पर ध्यान न देकर तुरंत नौकरी स्वीकार कर ली.. बहुत कम समय में मुझे ऐश्वर्य का धनी बनाकर आसमान की ऊँचाईयों तक पहुँचा दिया.. एक दिन किसी काम से मुझे रेस्तरां में बुलाकर प्यार का इज़हार किया उस दिन भारी बारिश के कारण मुझे बॉस सिमा के घर रूकना पड़ा और मुझे नींद में सुलाकर अपनी हवस को पूरा कर अपने आपको संतुष्ट किया .. " 

उसके नेत्रों में जो सच्चाई दिखाई दे रही थी, वह सिमा के नेत्रों में नहीं|


निषिता सब समझ गई कि कौन झूठा है और कौन सच्चा| वो कुछ नहीं बोली और रूषम के साथ अपने घर चली आईं वह जानती थी समय आते ही सच्चाई सबके सामने आ जाएगी।


रूषम अपने मन में अनेकों सवाल लिए निषिता को छोड़कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। 


अनजाने में ही सही पर मुझसे बहुत बड़ा पाप हुआ है, न जाने वह औरत कहाँ- कहाँ दरबदर की ठोकरें खा रही होगी.. क्या इसका कोई प्रायश्चित है या नहीं मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.. लेकिन निषिता ने मुझे अचानक ये सवाल क्यों पूछा होगा उसे तो उन दिनों से पता था कि मैं सिर्फ उसी का हूँ.. मेरा अतित मेरे पिछे - पिछे यूँ चला आया जिसकी कानोंकान खबर नहीं मिली.. क्या वह सिमा को जानती है या निषिता का मुझपर से भरोसा उठ गया है.. कहीं सिमा मेरा भला नहीं चाहती जो उसकी गलती होते हुए भी सारे इल्जाम मेरे नाम करना चाहती है.. इन सबका जवाब केवल एक ही व्यक्ति दे सकती है वो निषिता, हा उसी के पास मेरे सवालों के जवाब मौजूद है, काश! मैं अपनी भूली जिन्दगी के बारे में पहले ही उसे बता देता तो यूँ मुझपर ऊंगली न उठती, आज मैं अपने ही नजरों में गुनहगार साबित हो गया हूँ..जिसका कोई दोष न होते हुए भी जीवनकाल तक लांछन लग गया.. इस कलंकित देह को मिटना होगा, मिटना ही होगा, क्या मेरे अंत से मेरा कलंक हमेशा के लिए नदारद हो जाएगा या परिजनों को मेरा निर्णय जीने नहीं देगा। 

सोचते- सोचते वह कब घर पहुँच गया पता ही नहीं चला, घर आते ही सवालों की वर्षा होने लगी लेकिन अपने गम को दबाकर चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो गया। 


माँ पिताजी के सामने तो सोने के लिए सो गया लेकिन जिन सवालों को ढुँढना चाहता वो प्रश्न उसकी नींद चुरा रहे थे, पूरी रात उसके सामने सिमा के साथ बितायीं रात नाचने लगी और वह करवटें बदलता रहा। 

दिमाग में बहुत सारे शैतानी कल्पनाएँ आने लगीं, अपनी जिम्मेदारियों ने उसके हाथ थाम लिए, कल सुबह के इंतजार में उसने अपने नेत्र बंद कर लिए।


सुबह होते ही निषिता के घर जाने की जल्दी कर रहा था लेकिन किसी जरूरी काम से अपने ऑफिस जाना पड़ा। 

जल्दी से मिटिंग खत्म करने की सोची किंतु काफी देर हो गई, फिर भी अपने आपको रोक ना सका और सुनसान रास्ते से निषिता से मिलने जाने लगा| दूर दूर तक कोई वाहन नजर नहीं आ रहा था, उसी काली रात में उसके सिर पर पिछे से जोरदार हमला हुआ। नसीब अच्छा कि दूर से रोशनी चमकने लगी, नहीं तो गुंडों ने रूषम को मौत के घाट उतार दिया होता।

रिक्शा वाले ने उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाया, जब रूषम के घरवालों को खबर मिली तो वह तुरंत अस्पताल पहुँच गए। जबतक वह आते उससे पहले ही रिक्शावाला मसीहा निकल चुका था। 

डाक्टर के कहने के मुताबिक रूषम को बहुत चोटें लगी लेकिन उस भले आदमी के चलते वह घाव ज्यादा गहरे नहीं हुए, अगर उसे आने में जरा- सी भी देरी हो जाती तो इसका बचना मुश्किल हो जाता। 

मैं शुक्रगुज़ार हूँ उस देवता समान व्यक्ति का जिसने मेरे प्यारे बच्चे की जान बचाईं और डाक्टर बाबू आपका भी बहुत बहुत आभार.. धन्यवाद प्रकट करते हुए रूषम के पिताजी हाथ जोड़कर कहने लगे।

धन्यवाद किसलिए साहब ये तो मेरा कर्तव्य ही नहीं बल्कि धर्म है.. डाक्टर बाबू इतना कहकर अपने कॅबिन में चले गए।


अगली सुबह होते ही जब रूषम का स्वास्थ्य अच्छा हुआ तब पिताजी ने रात में हुए हमले की सच्चाई जानने हेतु पूछा, बेटा कल रात को तुझपर हमला हुआ वह हमलावरों को तुम जानते हो? .. 

नहीं मैं उन लोगों को देख नहीं सका, मुझे मारने की मंशा क्या थी और वह कौन आदमी थे? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ.. रूषम ने कहा|

बेटा कोई बात नहीं, इसका पता पुलिस कर लेगी, चलो अब हम घर चलते है.. 

नहीं बापूजी, मुझे अपने घर नहीं निषिता के घर पहुँच जाना चाहिए नहीं तो काफी देर हो जाएगी.. जल्दी से कहते- कहते तुरंत खड़ा हो गया। 

उसकी बेसब्री देख तीनों निषिता के घर चलने के लिए रवाना हुए। 


क्या है सच? रूषम पर हमला आखिर किसने करवाया सिमा या खुद रूषम ने, देखते है अगले भाग में।


१०

रूषम अपने सिर पर पट्टी बाँधकर निषिता के घर अपने माँ- पिताजी के साथ पहुँच आया, वहाँ देखा तो निषिता को देखने कुछ मेहमान आये थे।

रूषम ने जब निषिता को आवाज लगाईं तो झट् से रूषम के गले लग गईं, ये दृश्य देखकर आये हुए मेहमान उठकर चले गए। 

रूषम की सच्चाई जानकर भी निषिता उसके साथ है, ये देखकर निषिता के पिताजी गुस्सा हुए| निषिता पर गुस्सा देखकर रूषम ने सच्चाई जानने के लिए कहा।


सिमा बीच में बोलते हुए कहने लगी, क्या सच कहेगा ये दरिंदा, कोई मनगढंत कहानी रचकर मेरी बहन की जिंदगी खराब करना चाहता है, क्या सुनते हो इसकी धक्के मार कर बाहर फेंकिये इसे.. 

निषिता बाहर करो इस हैवान को, मैंने क्या कहा बाहर करो इन लोगों को.. गुस्से से पिताजी बोले जा रहे थे|

क्या कोई गलती हुई है हमसे समधी जी, कोई हमें भी बतायेगा कि बात क्या है.. सच्चाई जानने हेतु रूषम के पिता कहने लगे। 

आप ना जानो तो ही बेहतर होगा, आपका बेटा रावण है, रावण जो भोली - भाली लड़कीयों को अपने हवस का शिकार बनाता है.. सच्चाई कह दी।

ये सुनकर रूषम के पिताजी वही गिर पड़े। पानी की बूंदें नेत्रों पर डाली गई और होश में लाया गया। 


निषिता कुछ देख न सकी और चिल्लाकर कहने लगी, बापूजी ये झूठ है कि रूषम ने दिदी को बर्बाद किया बल्कि 

दिदी ने ही अपनी प्यास बुझाने के लिए रूषम का इस्तेमाल किया.. बिना डरें बहन पर आरोप लगा दिया।

निषिता की माँ ने खींचकर जोरदार तमाचा मारा और कहने लगी, शर्म नहीं आतीं अपनी बहन पर आरोप लगाते हुए|

रूषम आग- बबूला हो गया और हकीकत बता दी, उसे सुनकर रूषम के माता- पिता को जोर का झटका लगा जिससे वह पूरी तरह अनजान थे। 


नहीं बापूजी ये झूठ है.. सिमा चिल्ला- चिल्लाकर कहने लगी। 

रूषम ने ये भी कहा कि " हर किसी को पैसे कमाने का हक है किंतु शान- शौकत छोड़कर कौन छोटी नौकरी करना चाहेगा लेकिन इसकी मंशा देखकर मैंने नौकरी से इस्तीफा देकर यहाँ दूर चला आया, मैं ही पागल था जो इसके द्वार तक चला गया।"

तुम क्या समझते हो तुम्हारी मिठी बातों में आकर हम तुम्हें माफ कर देंगे चलो दूर हो जाओ हमारी नजरों से.. बिना कुछ समझे निषिता के पिता बोले जा रहे थे। 

मुझे तो लगता है, इसने स्वयं ही सिर पर चोट लगाने का निशान लगाकर जताने चाहता है कि ये हमला मैंने करवाया है.. सिमा ने संशयास्पद बाद कही। 

सिमा की बात सुनकर सभी को लगा कि " दाल में कुछ काला है " .. 

सिमा के पिताजी ने सिमा को अपनी कसम खाकर सच्चाई बताने कहा। कुछ वक्त तक काफी सन्नाटा रहा।

सिमा कुछ क्षण बाद बोलने लगी, " मैं क्या करती पिताजी बचपन से मुझे अपनों का साथ नहीं मिला, जिस वक्त आपके प्यार की जरूरत थी उस वक्त आपका प्यार न मिला, बस पैसे ही पैसे और परिवार, रिश्ते- नाते सबकुछ छुटता चला गया.. एक दिन जब ऑफिस के लिए निकली तो इसे देखकर प्यार की उमंगें दौड़ने लगी.. इसे नौकरी की जरूरत और मुझे इसके प्यार की, बस फिर क्या मैं इसे आगे लेकर आईं और अपने करीब किया.. एक दिन मैंने मौका देखकर इसके साथ रूह से रुह जोड़ ली, ताकि ये मुझसे दूर ना हो लेकिन इसने सारी योजना पर पानी फेर दिया और इस्तीफा देकर यहाँ चला आया.. इसको ढूँढते हुए मैं यहाँ तक चली आईं, मुझे क्या पता कि ये मेरी बहन से ही प्यार करता है.. ये सच्चाई छुपी रहे इसलिए ही मैंने रूषम पर हमला करवाया लेकिन बच गया साला और दोबारा मुझे शर्मसार करवा दिया।"

बेटी के मुख से सच्चाई जानकर माता- पिता बहुत लज्जित हुए और सिमा को चाटा जड़कर कहने लगे, हमें शर्म आती है बेटी कि हमने तुझ जैसी औलाद को जन्म दिया ये सुनने से पहले हमारी कब्र क्यों नहीं खोदी।


रूषम और समधी जी मुझे क्षमा कर दिजीए, हो सके तो सिमा को भी, मैं आपके पैरों पर गिरता हूँ। 


सिमा ये देख न सकी और अपने कमरे में चलीं गईं। 


सिमा को अपनी बहू स्वीकार करेंगे, मुझे कहते हुए शर्म आती है लेकिन उसके पेट में आपका ही वंश पल रहा है.. 


ये कैसी बात कर रहे हो, बेटी की गलती की सजा नवजात शिशु को क्यों? हमें मंजूर है.. 


कमरे से कुछ गिरने की आवाज आईं, देखा तो सिमा ने अपने आपको फांसी पर लटका लिया। जो घिनौना कृत्य सिमा से हुआ उसका आखिर यही अंजाम होने वाला था| सभी फूट- फूटकर रोने लगे आज सिर्फ सिमा ही नहीं उसके साथ एक शिशु की भी मौत हुई है।




॥ समाप्त॥ 




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