प्यास
प्यास
"अरे लड़के...बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि तेरी माँ पर इलाज नहीं लगा। उनका शरीर शांत हो गया है।" अस्पताल मेंं चार दिन से बाहर बैठे बुधुवा को नर्स आकर कह गई। "उसकी बॉडी को भी म्युनिसिपलटी की तरफ से जला दिया जाएगा।
घर पर माँ और बुधुवा दो ही तो जन थे।
छः दिन पहले बुखार में माँ अपने काम वाले घर से लौटी तो सर्दी, खांसी और बुखार तेज हो गया था। उनके घर कोई विदेशी मेहमान आए थे तो उसके मना करने पर भी माँ को काम पर जाना पड़ा था। न जाती तो मालकिन पगार काट लेती। अभी तो महीने के पन्द्रह दिन बाकी थे। धीरे धीरे माँ की तबीयत ज्यादा खराब होने पर बस्ती वालों नेए अस्पताल में खबर क
ी तो वे आकर उसे ले गए थे। सभी बस्ती वालों ने कह दिया था कि यह कोई विदेशी बीमारी है जिसे पकड़ ले फिर वह बचता नहीं है।
माँ हमेशा ही बुधुवा से कहती थी "बस अन्तिम समय दो बूंद गंगाजल मुंह में चला जाए तो जीवन सफल हो जाए।"
बुधुवा घर से एक खाली शीशी लेकर सभी जगह घूम आया था कोई थोड़ा सा गंगाजल दे दे तो माँ की मौत तो सुधर जाएगी।
"अरे.. अरे.. तेरी माँ को वायरस वाली बीमारी हुई है। हमारे घर से दूर रह और तू भी कुछ दिन घर से बाहर न निकल।"
बुधुवा खाली शीशी और खाली पेट लिए शून्य सा अस्पताल के बाहर बैठा सोच रहा था कि खाली शीशी का रोना तो जीवन भर रहेगा पर खाली पेट लेकर घर में बन्द कैसे रहे।