Kanak Harlalka

Tragedy

4.9  

Kanak Harlalka

Tragedy

दोषी...कौन..

दोषी...कौन..

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आज चार दिन से काम वाली का पता नहीं था।मैं बड़बड़ाती हुई घर के कामों में उलझी हुई थी तभी वह आती हुई दिखाई दी।

"क्या रमा.., क्या हो जाता है तुम लोगों को। चार दिन के बाद आज सूरत दिखाई दी है। अरे...रे... अब रो क्यों रही है? क्या हुआ..?"

"भाभी... वो.. लड़की..."

"अरे. कुछ कहेगी भी। क्या हुआ लड़की को..?"

"भाभी, लड़की की सगाई छूट गई है। लड़के ने आकर शादी से इन्कार कर दिया है।"

"क्यों... क्या हुआ? तब तो बड़ी खुशी खुशी बता रही थी बड़े घर का लड़का है।उसने खुद आकर शादी की बात की है। लड़की का बड़ा लाड करता है। मोबाईल खरीद कर दिया है।सारे दिन फोन करता है।अपने साथ घुमाने भी ले जाता है। गाड़ी है... बाड़ी है...। अब क्या हो गया?"

"कह गया है तुम्हारी लड़की फोन पर किससे किससे बात करती है, किस किस के साथ घूमने जाती है मैं ऐसी लड़की से शादी नहीं कर सकता।"

"अरे.. ऐसे कैसे नहीं करेगा शादी ? कोई मजाक है क्या ? शादी ब्याह यूँही नहीं तोड़े जाते। उसके घर वालों से बात की ?"

"गई थी न भाभी। पहले तो पचास हजार देने की बात थी। मैंने तो अपनी सारी जमा पूंजी और गाँव गली से मांग कर किसी तरह लड़की को बिदा करने का मन बनाया था।"

"तो अब...।"

"अब लड़के वाले कह रहे हैं लाख रूपये दे दो तो लड़की ब्याह लेंगे। अब मैं लाख रूपये कहां से लाऊँ..?"

"छोड़ो भी..। अच्छा हुआ ऐसे लालची लोगों से सम्बन्ध नहीं हुआ। वरना जीवन भर तुम लोगों को और लड़की का जीना दूभर कर देते। अब दूसरा सम्बन्ध देखकर लड़की ब्याह देना।"

तभी रमा ने जोर से रोते हुए मेरे पैर पकड़ लिए 

"भाभी दोष तो मेरी लड़की का है। शादी के पहले क्यूँ इतनी छूट दी...। मेरी बेटी पेट से है.... लड़के का क्या...."


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