प्यार की ताकत
प्यार की ताकत
इस दुनिया में अब कोई नहीं है मेरा। में बेसहारा हूँ।
उसकी आवाज अभी भी साफ नहीं है। सैफुद्दीन ने उसे सहारा दे दिया। दोनों ने शादी कर ली। वह बदहवास थी अपने महबूब के प्यार की खातिर; लेकिन अब अपने मकसद में वह कामयाब हो गई है। उसे लगा कि वह ऐसी शाहजादी की तरह है, जो ढेर सारे फूलों की सेज पर नींद में ऐसा सपना देख रही है, जिससे चाँद की हसीन रोशनी है। दुनिया की तमाम रंगीनियां हैं।
गरीबी हटाने के लिए सुल्तान को सूझा, सोने-चाँदी के बदले पीतल-ताँबे के सिक्के क्यों न चला दिये जाए, गरीबी खुद-बखुद दूर हो जाएगी। फिर क्या था, हुक्म की तामील हुई। एलान हो गया, "आज से हिन्तुस्तान में शहंशाह मुहम्मद तुगलक की हुकूमत से तांबे-पीतल के सिक्के जारी हुए। इन सिक्कों की वही कीमत होगी, जो सोने-चाँदी के सिक्कों की होती थी, जो भी इसका उल्लंघन या विरोध करेगा, उसे सुल्तान के हुक्म से सख्त से सख्त सजा दी जाएगी। "
लेकिन सिपहसालार जाफर खाँ ने अपने विचार बादशाह के सामने पेश किए, "सोना-चाँदी और पीतल-ताँबा में वही फर्क है, जो अमीर-गरीब और मेहनत-मजदूरी करने वालों में है। सुल्तान इस बात पर फिर से विचार करें।"
उसे गिरफ्तार कर लिया गया। सुल्तान ने हुक्म दिया, इस गद्दार का सिर धड़ से जुदा करके बरछे की नोंक पर रख कर दिल्ली की सड़कों पर मेरे जुलूस के आगे दिखाया जाए; ताकि ऐसी हरकत कोई दूसरा आदमी न कर सके।"
रात में उसने भयानक सपना देखा-एक सुन्दर युवती तहखाने में कैद है। दरवाजे पर डरावने रूप वाले दो जल्लाद खड़े, नंगी तलवार लिए पहरा दे रहे हैं। छोड़ दो, रिहा कर दो। खुदा मुझे कभी माफ नहीं करेगा।' उसके चीखने-चिल्लाने की आवाज काफी दूर की मालूम होती है। कभी पागलों की तरह हंसने भी लगती है।
सुबह बादशाह अपने तामझाम सहित सड़कों पर निकले। सबसे आगे जल्लाद है। उसकी कमर में गड़ासा बँधा है और एक हाथ में बरछा, जिसकी नोक पर जाफर खाँ कर सिर लगा है। तामझाम रुका। लोग बार-बार बेतहासा सलाम करने लगे। लेकिन अन्धा और उसकी महबूबा भीड़ में पीछे छिपने की खास कोशिश कर रहे हैं।
जल्लाद ने वक्तव्य दिया कि जाफर खाँ को इस तरह की सजा क्यों दी गई। लोग-बाग बरछे की नोंक पर रखा सिर, बड़ी दहशत से देख रहे हैं और ध्यान से जल्लाद का भाषण सुन रहे हैं। उसका वक्तव्य समाप्त होने पर सुल्तान ने रोआब से गर्दन हिलाई।
"यहाँ जो गरीब है, सामने आए।"
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