गरीब फकीर की कहानी
गरीब फकीर की कहानी
एक गांव मे खेती करके काम करनेवाला गरीब आदमी था रोज जंगल मे जाता था और जंगल से लकड़ियां तोड के लाता था। खेती करके काम करके अपना गुजरा करता था फिर उसकी शादी तय हो गयी एक अच्छे घर वाले लडकी से जो की अच्छे खानधान होते है लेकिन इस गरीब ने उनसे कुछ भी नाही लिया और मैं खुद्द मेहनत करके अपना गुजारा कर सकता हूं कह कर लडकी के घरवाला के पास कुछ भी नाही लेने मांग की और कुछ लिया भी नाही और उनकी शादी हो गयी दोनो पती और पत्नी बहोत खुश थे रोज पती जंगल जाया करता लकडी या तोड कर ऊसे बेचकर कूच पैसे कामाया करता था ओ बहोत खुश थे दोनो अपने जिंदगी मे फिर एक दिन अचानक जंगल मे लकडीया तोड के जलदी घर वापस आ गया और अपने पत्नी से कह ने लगा की आज अच्छा पक्वान बनवा दोनो मिलकर साथ मे खा लेंगे
पत्नी भी खुश होकर आज घर जलदी जलदी पक्वान बनाने मे मश्गुल हो गयी खाने मे चावल पलवा बनया और बैगन का बडता और आलू का सालन रोटी ऐसे करके सारे पक्वान बनाये उसके पत्नी ने फिर दोनो मिलकर साथ खाने की लिये बैठे गये फिर पत्नी ने परोसना शुरू किया प्लेट मे दोनो मीलकर खाना शुरू करने ही वाले थे उतणे मे बहार से आवाज आई एक फकीर की घर मे कोई है मुझे भूक लगी मैं मैं बहोत दिन से कुछ अच्छा खाना खाया नाही हू घर मे कुछ खाने है तो देदो ऐसे कह ओ फकीर आवाज देने लगा फिर ओ गरीब अपने पत्नी से कह ने लगा ये जो कुछ पक्वान जो तुमने पकाया है ये सारा कूच सब ऊसे दे आओ पत्नी कह ने लगी मैं इतनी मेहनत करके देर तक पकाया है और आप कह रहे है ए सारा ऊसे दे आऊ हा तुमने सही सुना है ए सारा जो कूच पकाया ए सारा दे कर आजाओ
फिर पत्नी उटकर थोडा थोडा कर के बरतन मे डालकर देने ऊसे बाहर गयी ऊसे देख थे ही ओ जोर से चिख मारी और बेहोश हो गयी ऐसे सूनते ही उसका पती बाहर आया और ऊस फकीर से पुचने लगा क्या किया मेरे पत्नी को जो तुमे खाने का बरतन देने आई फिर बेहोश कैसे हुयी ऊस फकीर ने कूच नाही कहा फिर उसके पती ने ऊस फकीर से कहा तुम से सारा खाना लेकरं जावो तुम खालो मैं देखता हू फिर ओ फकीर सारा खाना लेकर चला गया फिर ओ गरीब आदमी अपनी पत्नी को जगाने की कोशीष किया फिर थोडी देर उसकी बिवी होश मे आ गयी तो उसके पती ने ऊसे पुचने लगा क्यू ऐसा क्या जो तुमने ऊस फकीर को खाने खा बरतन देने गयी और जोर चिख मारकर बेहोश हो गयी क्या हुवा था तो उसकी बिवी ऊसे कह ने लगी मैं तुमे एक कहानी सुना थी हू तुम सुनोंगे ओ कह ने लगा जरूर तो वो कहने ओ मेरे पहले पती हैं ऐसे कह थे ही उसके पती को अजिब लगा उसके बात पर तो ओ कहने लगी ओ ऊस गाव बादशहा था उसके पास नौकर चाकर बहोत थे उसकी बागायत थे रोजना अलग अलग पक्वान बनाये जाते थे फिर एक दिन ऐसा वक्त आया हम दोफर के वक्त खाने के लिये बैठे ने वाले थे इतने मे घर बाहेर से आवाज आई कूच खाने हैं तो देदो ऐसे जोर जोर से आवाज करणे लगा ओ फकीर फिर इस बादशहा को गुस्सा आया और ऊस फकीर धके मार के बाहेर निकाला फिर ओ फकीर रोते हुये ऊस घर निकल गया फिर उसके बाद ऊस बादशहा के एक एक बागायत सब बेच के खतम हो गयी और उसको खाना मिलना मुश्किल हुवा फिर ओ बादशहा मुझे कहने अब तुम भी अपने घर जाओ मेरे पास कूच नाही बचा तुम अपने घर जाओ ऐसे कह कर ओ निकल गया फिर मेरे घरवालो ने आपसे शादी कर के देदी ये सूनकर ओ गरीब आदमी जो उसका दुसरा पती था ओ हसने लगा और कह ने लगा तुमने तुमारी कहाणी सुनाई अब मेरी भी एक कहाणी है ओ तुमे सुनना पडेगी तो ओ गरीब उसका पती कह ने लगा जब आप खाने के लिये बैठे मैं आवाज दि बादशहा के घर तो आवाज देने वाला दुसरा कोई नाही बलकी मैं ही ओ फकीर था
ये सून के ओ हैराण हो गयी इसिलीये याद रखना कोई फकीर अपने घर पर आये तो ऊसे खाली हाथ नाही भेजना ये याद रखीये
वक्त कभी बदल सकता है
