प्यार कभी स्वार्थी नहीं होता
प्यार कभी स्वार्थी नहीं होता
"दादू आप दादी से कितना लड़ते हैं, दादी परेशान हो जाती हैं"।
"अरे ऋतिक! इनकी तो आदत हो गई है मुझसे लड़ने की, तू ध्यान मत दे बेटा"।
"दादू आप ऐसा क्यों करते हैं, दादी आपकी हर बात को हंसकर टाल देती हैं, लेकिन बुरा तो उनको भी लगता होगा ना?"
"सही कहा तुमने ऋतिक लेकिन तुम्हारी दादी मुझपर गुस्सा होती रहें बोलती रहें इसलिए ही मैं ऐसा करता हूँ"।
"इसका क्या मतलब हुआ दादू आप जानबूझ ऐसा करते हैं"?
"हाँ बेटा! आओ यहाँ बैठो मैं बताता हूँ। तुम जानते ही हो यहाँ दिल्ली आने से पहले हम गांव में रहते थे ना. वहाँ यहाँ जैसा जीवन तो नहीं था लेकिन हम दोनों अपने प्यार के सहारे अपना जीवन काट रहें थे, मैं खेती कर शाम को आता और तुम्हारी दादी अपनी हाथों की चाय तैयार रखती।
हमें किसी की जरूरत नहीं महसूस होती, तुम तो जानते ही हो तुम्हारे पापा हमारी एक ही संतान हैं.शहर में पढ़ाई कर यही नौकरी करके रहने लगे और फिर तुम्हारे पापा ने हमारी इजाजत बिना शादी भी कर ली जब मैंने ये सुना मुझे गहरा धक्का लगा।
तुम्हारे पापा की सब इच्छा हमने पूरी की लेकिन अपने बेटे की शादी भी हम अपनी मर्जी से नहीं कर पाए, तुम्हारी दादी ने तो तुम्हारे पापा को माफ़ कर दिया लेकिन मैं नहीं कर पाया।
मुझे यूँ लगा जैसे वह हम दोनों बहुत अकेला कर गया । तुम्हारी दादी को तुम्हारे पापा की बहुत याद भी आती, उसने कई बार कहा भी यहाँ आने को लेकिन मैं अपने गुस्से की वजह से नहीं आता और तुम्हारी दादी मेरी वजह से नहीं आती।
"तुम चली जाओ कांता अपने बेटे के पास मेरी वजह से क्यों रूकती हो "...
"नहीं जी मैं आपके बिना क्या करुँगी, कभी अकेली रही हूँ क्या "...
कभी लगता मैं स्वार्थी हो गया हूँ बेटा बुलाता हैं फिर भी नहीं जाता मेरी वजह से कांता नहीं जाती लेकिन बेटा मैं गांव की मिट्टी से जुडा इंसान कैसे रह पाता यहा और फिर मेरा गुस्सा जो था तुम्हारे पापा पर उसने माफ़ी भी मांगी पर !!
"पापा हमें माफ कर दीजिये, आप हमारे साथ रहिये ना प्लीज "...
"अपनी माँ को लें जा सकते हो, मैं नहीं आऊंगा "...
धीरे धीरे तुम्हारी दादी की तबियत खराब रहने लगी, तुम्हारे पापा और मम्मी आते देख कर चले जाते..तुम्हारी पढ़ाई की वजह से ज्यादा रुक भी नहीं पाते थे। अब तुम्हारी दादी को अंदर ही अंदर ये डर खाने लगा था की वह दुनिया से चली गई तो मेरा ध्यान कौन रखेगा इस कारण उसकी हालत और खराब हो गई....
डॉ को दिखाया तो उन्होंने शहर जाने की सलाह दी,क्यूंकि तुम्हारी दादी डिप्रेशन में जा रही थीं और मैं अपनी आँखो के सामने अपनी कांता को यूँ जाते नहीं देख सकता था।
इसलिए अपनी जिद छोड़कर मैं यहाँ आगया, डॉ ने मुझसे कहा था की इनसे बोलते रहें चुप ना रहने दें खुश रखें बस इसलिए ही मैं इनको छेड़ता रहता हूँ ताकि तुम्हारी दादी मुझसे बोलती रहें खुश रहें बस और हमेशा मेरे साथ रहें!!
"वाह दादू मैंने प्यार के बारे में बहुत सुना है कि प्यार में त्याग, समर्पण करना होता है और आज आपका प्यार देख भी लिया सच कहा है किसी ने प्यार कभी स्वार्थी नहीं होता"।
क्यों सही कहा ना मैंने? प्यार कभी स्वार्थी नहीं होता। एक दूसरे को समझना उसकी इच्छा का मान रखना भी प्यार है। आपको ये कहानी कैसी लगी अवश्य अपनी राय रखें।
आपकी अपनी
प्रियंका दक्ष

