प्यार का बंधन है, रुपयों का मोल अहिं
प्यार का बंधन है, रुपयों का मोल अहिं


अरे नीता , अगले महीने कुसुम आ रही है, तेरी फोन पे बात हुई है ना, नीता की सास ने कहा।
हाँ माजी दीदी से बात हो गयी ये लेने चले जायेंगे। राखी है,
तेरा कैसा कार्यक्रम रहेगा,
माँ मैंने भैया को यही बुला लिया भैया भाभी यही आ जायेंगे, सब साथ मैं रक्षाबंधन मनाएँगे।
ठीक है, मुझे पता है तू सब संभाल लेगी।
रक्षाबंधन जब आया तो सुंदर सुंदर राखियों से सजे बाजार में को मोहित कर रहे थे, ये राखी ले लूँ वो ले लूँ बहुत दिनों से रुपये बचा के रखे है इस बार भी जे लिए चाँदी की राखी लूंगी , नीता ने सोच रखा था, और राकेश से भी पूछ लिया था,
बहुत ही सुंदर राखी थी उसने ले भी ली, भाभी के लिए भी एक सुंदर सी साड़ी ले ली थी। सोची तो थी कि दीदी के लिए और बच्चों के लिए भी कुछ ले लूँ, पर दीदी ने साफ बोल रखा था कि मुझे तो रुपये दे दिया करो। तब से नीता और राकेश दीदी को लिफाफा ही देते थे।
नीता ने कभी अपने भाई से ऐसी कोई माँग नहीं की।
वैसे तो हर साल नीता राखी भिजवा देती थी पर इस साल उसका मन था कि वो अपने भाई को घर बुलाये।
अगले दिन राखी थी सबकी पसंद के हिसाब से उसने पकवान बनाये। वो आज बहुत खुश थी, उसका भाई कितने सालों बाद आ रहा था।
महूर्त के हिसाब से सब पहुँच गए थे। अपनी ननद का खूब स्वागत किया उसने
उसके भाई और भाभी भी आ गए थे।
जब नीता राखी बांध रही थी तो उसकी आँखों ने नमी थी कितने सालों बाद वो खुद अपने हाथों से अपने भाई को राखी बांध रही थी।
उसके भाई की भी आँखें नम हो गयी।
अरे नीता बता क्या चाहिए तुझे आज राखी पर बचपन में तो लिस्ट पकड़ा देती थी, अब बड़ी हो गयी तो कुछ माँगती भी नहीं, हक़ है तेरा।
नहीं भाई राखी तो प्रेम का धागा है, राखी को उपहारों से मत तौलिए।
देखा कितनी समझदार हो गयी मेरी छुटकी।
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पर मेरा हक़ है नीतू जा बाहर जाकर देख तेरा उपहार तेरा इंतज़ार कर रहा है। नीता ने बाहर जाकर देखा तो चमचमाती लाल रंग की स्कूटी खड़ी थी।
भैया ये, नहीं नहीं मैं नहीं ले सकती।
क्यों नहीं ले सकती, ये तेरी पसंदीदा स्कूटी है जिसके ऊपर बैठकर तू सवारी करती थी, बिल्कुल वैसी ही है, तुझे ये रंग पसंद है ना।
नीता की आँखें भर आयी, अरे पगली तेरी दुआ से आज तेरा भाई अच्छी स्थिति में है तो क्यों रोकती है। तू बस खुश रह और क्या चाहिए मुझे, ये जमाई जी के कपड़े।
अरे नही भैया इसकी क्या जरूरत थी, अब मुझे मना नहीं करोगे मेरा हक़ है, और चुन्नू कहाँ है। भैया वो यहीं कहीं होगा।ये खिलौने उसके लिए।
अरे राकेश आजा अब तू और नीता भी राखी बंधवा लो। आओ बेटा
जी माँ पर कुसुम का मन कुछ विचलित हो रहा था।
कुसुम ने भाई और भाभी के हाथों में राखी बांधी, उन्होंने कहे अनुसार उसे लिफाफा और बच्चों औऱ जमाई जिनको भी लिफ़ाफ़ा दे दिया, हर राखी पर यही लिफाफा लेकर कुसुम खुश हो जाती थी, पर आज उसने अपने आप की और अपने भाई की तुलना, भाभी के मायके से कर ली थी, जिसमें बहुत अंतर था, राकेश की स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी पर ऐसी थी कि नीता को खुश रख सके।
आज जाते वक़्त कुसुम ने माँ से कहा देखा माँ राखी पे ऐसे तोहफे देते है अपनी बहन को मुझे तो बस लिफ़ाफ़ा पकड़ा देते हो।
माँ को आज बहुत बुरा लगा,
कुसुम आज तूने इस पवित्र रिश्ते को पैसों से तोला है, तेरी भाभी शादी के बाद कभी अपने मायके भी नहीं गयी। ना कभी उसने कुछ माँग कर लिया, कुछ सीख उससे आज तेरा भाई जिस स्थिति मे है तुझसे छुपा नहीं है और नीता जिस घर से आई उसका कभी दिखावा नही की। वो खुश है।
कुसुम को अपने कहे पर पछतावा हुआ, पर ये बात भाई बहन तक नहीं पहुँची और राखी की मुस्कान ऐसे ही आगे बनी रही।
#भाई औऱ मेरा बचपन