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chandraprabha kumar

Action Classics

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chandraprabha kumar

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पुराण कथा- भागीरथी गंगा

पुराण कथा- भागीरथी गंगा

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राजा सगर के दो पत्नियां थीं, किंतु किसी से भी संतान न हुई। महर्षि वशिष्ठ ने इसके लिए राजा को उपाय बतलाया कि वे पत्नी सहित ऋषियों की सेवा किया करें।

एक बार राजा सगर के यहाँ एक महर्षि पधारे। राजा की सेवा से संतुष्ट होकर महर्षि ने वरदान दिया कि तुम्हारी एक पत्नी से एक ही पुत्र होगा, जो वंशधर होगा और दूसरी पत्नी से साठ हज़ार पुत्र होंगे।समय पाकर महर्षि का वरदान फलीभूत हुआ। महाराज की दुश्चिन्ताएँ मिट गईं। उन्होंने बहुत से अश्वमेध यज्ञ किये। एक अश्वमेध यज्ञ में उनके घोड़े को इन्द्र ने चुरा लिया।रक्षक राजकुमारों ने घोड़े की खोज में आकाश - पाताल एक कर दिया, किन्तु घोड़ा नहीं मिला।हार कर राजकुमारों ने भगवान्  की शरण ली। तब आकाशवाणी हुई -“सगरपुत्रों ! तुम्हारा घोड़ा रसातल में बँधा है।”

  राजकुमार रसातल जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने घोड़े को बँधा पाया। एक व्यक्ति वहीं सो रहा था, उन लोगों ने समझा यही चोर है और वे उसे जगाने के लिए मारने - पीटने लगे।

वस्तुतः वे कपिल मुनि थे। घोड़े से उनका कोई संबंध नहीं था।वे सगर- पुत्रों के कटु वाक्यों एवं अनुचित पद - प्रहार से क्षुब्ध हो गए। उन्होंने उन्हें रोष पूर्ण दृष्टि से देखा। देखते ही वे सब जलकर राख हो गए। देवर्षि नारद ने इस बात की सूचना राजा सगर को दी। राजा बहुत चिंतित हुए। अंत में उन्होंने धैर्य धारण कर अपने पौत्र अंशुमान् को घोड़ा लाने का भार सौंपा।राजकुमार अंशुमान् ने भगवान कपिल की आराधना की और उनकी आज्ञा से घोड़ा लाकर अपने पितामह को सौंप दिया। यज्ञ संपन्न हो गया।

  सरकार के साठ हज़ार पुत्रों का अभी उद्धार नहीं हो पाया था। अंशुमान् और इनके पुत्र दिलीप दोनों इस उद्धार- कार्य में सफल नहीं हुए। दिलीप के पुत्र भगीरथ परम तेजस्वी थे। उन्होंने राजा सगर से पूछा कि-“इन सब का उद्धार कैसे होगा ?”

  राजा ने बताया कि -“इसका उपाय भगवान कपिल बता सकते हैं।”

भागीरथ की अभी बाल्यावस्था ही थी। वीर बालक भागीरथ रसातल जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने भगवान् कपिल से अपनी अभिलाषा कह सुनाई।

भगवान कपिल ने आज्ञा दी कि -“तुम भगवान शंकर की आराधना कर उनकी जटा से गंगा जी को लाकर अपने पितरों की राख को आप्लावित करवा दो।”

बालक भगीरथ कैलास जाकर भगवान शंकर की तपस्या करने लगे। भगवान शंकर ने संतुष्ट होकर अपनी जटा में विराजमान गंगा उन्हें दे दी, और यह भी बताया-“ अब तुम गंगा की स्तुति करो”

भागीरथ की स्तुति से करुणामयी गंगा माता प्रसन्न हो गईं। वे भगीरथ के कथनानुसार हिमालय से बहती हुई रसातल पहुँची और अपने जल से आप्लावित कर उन्होंने साठ हज़ार सगर- पुत्रों का उद्धार कर दिया।

इस तरह भगवान शंकर की जटामें स्थित गंगा दो भागों में बँटकर जीवों पर अनुकंपा कर रही हैं। विन्ध्यगिरि के उत्तरी भाग में ये भागीरथी गंगा कहलाती हैं और दक्षिण भाग में गौतमी-गंगा (गोदावरी) नाम से जानी जाती हैं। 

क्योंकि ये भगीरथ द्वारा तपस्या से प्रसन्न कर लाईं गईं थीं इसलिये भागीरथी गंगा कहलाईं। 


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