पुरानी गलियां
पुरानी गलियां
पूर्णिमा बड़बड़ाती हुई घर के अंदर दाखिल हुई। कितनी बार कहा है इनसे इस शहर की भीड़-भाड़ से दूर कहीं पर एक प्यारा सा घर ले लो। लेकिन जनाब मेरी तो कुछ सुनते ही नहीं। पता नहीं क्या समझते हैं जनाब अपने आप को । जब मैं अपनी पर उतर गई तो श्रीमान जी को आटे दाल का भाव पता पड़ जाएगा।
तरुण ने हंसते हुए कहा " क्या बात है पूर्णिमा आज तो तुम तवे की तरह गरम हुई जा रही हो आखिर बात क्या हो गई क्यों इतना बड़बड़ा रही हो मैं भी तो जानूँ मैडम को किस बात का इतना गुस्सा आ रहा है।" पूर्णिमा ने मुंह बनाते हुए कहा " ओहो जनाब को पता ही नहीं कि मैं किस बात पर गुस्सा हो रही हूं पूर्णिमा ने तुनतुनाते हुए कहा। मैं इस शहर के मकान से दुखी हो चुकी हूं कितनी बार कहा आपसे शहर की भीड़भाड़ से दूर कहीं शांत जगह पर एक प्यारा सा एक घर ले लो । " तरुण ने हंसते हुए कहा तो इस घर के अंदर क्या बुराई है शहर में ऐसा घर कहां देखने को मिलता है। और फिर यह भी तो देखो ना तुम्हारा और मेरा ऑफिस यहां पास में पड़ता है ।बच्चों के स्कूल भी पास में है। हर तरह की फैसिलिटी यहां पर अवेलेबल है ।और तो और यहां पर हमारे पड़ोसी भी बहुत अच्छे हैं, जो कि बुरे वक्त पर हमेशा मदद के लिए तैयार रहते हैं। फिर भी तुमको शहर से बाहर रहने का फितूर चढ़ा हुआ है ।
पूर्णिमा ने कहा मैं कुछ नहीं जानती बस मुझे 1 महीने के अंदर अंदर शहर से बाहर एक सुंदर सा घर चाहिए।
मैं नहीं रहना चाहती इस भीड़भाड़ वाले माहौल में। तुमने यहां की गलियां देखी है बहुत तंग है बहुत घुटन होती है चलने में बहुत परेशानी होती है।
लेकिन तुमको क्या यह सारी समस्या मुझे ही फेस करनी पड़ती है। तरुण ने देखा पूर्णिमा आप किसी तरह से नहीं मानने वाली तो उसने एक बिल्डर से संपर्क किया और बिल्डर ने उनको अच्छा सा शहर के बाहर शांत माहौल में एक घर दिला दिया। पूर्णिमा बहुत खुश थी। उसको शहर की तंग गलियों से छुटकारा जब मिल गया था। खुशी से वह गाने लगी थी
"छोड़ आए हम शहर की वह तंग गलियां।"
लेकिन तरुण खुश नहीं थे ।और तरुण खुश रहते भी कैसे शहर की गलियों और उस घर में उसके बचपन की यादें जुड़ी हुई थी । किस तरह से तरुण अपने मां बाबूजी के और अपने भाई बहनों के साथ मस्ती किया करते थे।
लेकिन कोई बात नहीं पत्नी को खुश रखना भी बहुत जरूरी था। इसलिए तरुण वक्त से समझोता कर लिया। नए घर में पूर्णिमा हो तरुण को रहते हुए ज्यादा वक्त नहीं गुजरा था। वक्त ने उनके साथ अच्छा खिलवाड़ किया । पुराने घर को छोड़ने के कारण तरुण बीमार रहने लगे।
और एक दिन उनको दिल का अटैक आ गया। पूर्णिमा एकदम से घबरा गई । पड़ोस में उसने मदद मांगी तो किसी ने भी मदद करने से इंकार कर दिया । पूर्णिमा के शहर के मकान के पास मिसेज अरोड़ा रहती थी । पूर्णिमा ने तुरंत उनको कॉल लगाया और सारी परेशानी बता दी। मिसेज अरोड़ा ने कहा पूर्णिमा तुम चिंता मत करो । हम अभी एंबुलेंस भिजवा देते हैं आप तरुण जी को लेकर सिटी हॉस्पिटल आ जाइए । तुरंत ही एंबुलेंस तरुण को सिटी हॉस्पिटल ले आई और तुरंत ही डॉक्टरों ने उनका ट्रीटमेंट शुरू कर दिया। तरुण की हालत में पहले से ज्यादा सुधार होता हुआ दिख रहा था। अब वह दिन भी आ गया जब तरुण को डिस्चार्ज मिलने वाला था ।मिस्टर एंड मिसेज अरोड़ा भी वहीं पर खड़े थे। पूर्णिमा ने मिस्टर एंड मिसेज अरोड़ा का आभार जताते हुए कहा अगर आप नहीं होते तो पता नहीं तरुण जी का क्या होता ।वहां के पड़ोसी तो किसी की मदद तक नहीं करते।
बीच में तरुण जी बोले " क्यों पूर्णिमा कहां जाना है शहर से दूर अपने नए घर में या फिर जहां प्यार बसता है जहां सकड़ी सकड़ी गलियां हैं जहां पड़ोसी अपनत्व का पाठ पढ़ाते हैं ऐसे अपने पुराने से सुंदर घर में।"
पूर्णिमा कहती हैं । " नहीं तरुण मुझे तो अपने पुराने घर में जाना है नई गलियों में मैं कुछ ज्यादा ही उलझ गई।
मुझे अपने घर की पुरानी गलियां बहुत याद आ रही है।"
तभी मिस्टर एंड मैसेज अरोड़ा पूर्णिमा की चुटकी लेते हुए कहते हैं की " चलो देर आए दुरुस्त आए ।"
और सभी खिलखिला कर हंस पड़ते हैं।