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Rekha Shukla

Romance

3  

Rekha Shukla

Romance

पुराना तुम्हारा

पुराना तुम्हारा

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"कैसे बिसरुं तुम्हैं? काश तुम आ जाती ...!!"

पुराना हो गया हूँ फि रभी तुम्हारा हूँ... पार्टीशन हो गया धर बदल गया पर जडसे नही उखडा हूँ... हा, थोडा कम देखता हूँ पर दूरका सब देखता हूँ. मेरी बुढी आंखे याद करती है करीमचाचाको पता नही पर दूर दूर से साफ देखती याद करती है.. शाखे फिर से निकली थी फिरसे इसी घरमें पूरी जिंदगी गुजारने के लिये तैयार हूँ काश तुम आ जाती...!! वही घर हैं, करीमचाचा और वो पूरानी अलमारी नक्शीकाम वाली... उसमे तुम्हारा बुना स्वेटर और दादाजी की अलमारीमें पूरी तूफानी यादे अभी भी बंद हैं... काश तुम आ जाती...!! पर ये घर तो एन्टीक अलमारी से भी पूराना दादाजीके दादाजीका है और इसी कमरेंमें तो में पैदा हुआ था... पर तुम्है थोडा पता था? वो तो बूआ थी जो दीदीको बोल रही थी उनकी शादी के बाद तब मुजे पता चला था.वो केह रही थी जब तक मैं जिन्दा हूँ तुम इस घर को देखलो... मिल लो इन दीवारों को ... मीट्टी तरस गई हैं आ के कर्ज चूका दो..!! काश तुम आ जाती..!! पूरानी चद्दर में पडी सलवटें... पुरानी बातें.. मीठ्ठी बातें काश तुम आ जाती. ये महेंक तो उनके हाथों की बनाई रसोई से आती थी.. अभी भी वही महेंक रसोईघर में बस गई हैं, ग्रामोफोन पर बजतें वो मधुरें गाने देखो अभी भी आंखे भर जाती हैं... काश तुम आ जाती...!!


वक्त और आबादी आधा कब्रस्तान खा गई, अब अच्छी मिट्टीमें बोये जाये बीज तो तेरे और मेरे नई जड़ें बनाई जाये... पर काश तुम आ जाती..!! किताबों से कभी गुजरों तो युं मिलते हैं किरदार गये वक्तकी जोडी में घडे कुछ यार दोस्त मिलते हैं जिसे हम याद करतें हैं उसी में शहरो की तासीर मिलती है.. खुली हवा में तेरा बाल सुखाना तेरी लटों को तुझे परेशान करना...सजे गुलाब बालों में और गुलाब की महेंक का मुझमे खो जाना, काश ये तस्वीर से निकलकर सामने आ जाती...हमने बोया था पौधा वो घनघोर वॄक्ष बन गया हैं .. उसकी घनी छांवमें जमीं पे पडे फूलोकी चादर पे सोना कित्ना अच्छा लगता है... काश तुम आ जाती...!!


कुछ याद आया ये लम्बे लम्बे बाल वाला कौन था तुम्हारे साथ में ?? तुम्हारे अम्मी के पास ले जाने का बहाना करके ले गया... लोग कहते हैं तुम्हारे ही अब्बु ने तुम्हैं बेच डाला.. कोई कहता हैं तुम्हारी शादी हो गई !! एक हप्ता हो गया आंखे रो रो के सूजज गई.. काश तुम आ जाती..!! देखो ना महीने में तुम्हारी कित्नी तस्वीर बना ली मैंने... तुमसे तुमको मांगा था... वक्त मिल गया पर तुम कभी ना आई... काश तुम आ जाती...!! ये शाम यूँ ही ढल जायेगी.. दीवारों ने बाते सुनना बंद कर दिया है..इन रुखी सुखी आंखे भी इन्तजार करना बंद करदे उस्से पहेले काश तुम आ जाती..!! आईना कितना धुंधला हो गया हैं.. वैसे

मैंने उन्से मिलना बंद किया हैं. ये ढलता सूरज मेरी तरहा पानी में डूब जायेगा... रंग बदल जायेगा. आंगन मे तेरी मेना कूक करने नहीं आती हैं! वो सुबहा कभी आ जाती की सूरज की धूप आंगन आने से पहेले तुम आंगन मे खडी बाल सूखाती... काश तुम आ जाती वो मेना की कूक सुनने को कान तरस गये हैं ! सब छोड कर आ जाती वही वजूद और मक्सद हैं इन सांसो का. सुनो आज करीम चाचा ने फिर से हमारी तस्वीर तकिये के नीचे देख ली है...तुम शरम से पानी पानी हो गई थी और मैं हंस पडा था... देखो आज भी हंस पडा हूँ बुरा मत मानना...गुस्से मे तेरी लटोंको सुलझाने में तेरी महेंदू तेरे कान पे लग गई थी..और मैं हंसा और करीमचाचा ने खींचली तस्वीर..है ना..हाथ फैला कर खडा हूँ काश तुम आ के समा जाती...!!


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