प्रयोगशाला का वह यादगार दिन
प्रयोगशाला का वह यादगार दिन
प्रयोगशाला शब्द बहुत छोटा है।मगर बहुत गूढ़ अर्थ है जिंदगी में भी हम हमेशा कुछ ना कुछ प्रयोग करते ही रहते हैं और वे प्रयोग जिंदगी भर चलते हैं
स्कूल के प्रयोगों की तो बात ही कुछ और है।उसी में से आज एक बहुत मजेदार संस्मरण आपके साथ शेयर कर रही हूं।
1974 हमारा बायोलॉजी का प्रैक्टिकल था।प्रैक्टिकल में चूहे का डिसेक्शन था हम सब लोग अपनी वैक्स ट्रे के साथ बैठे थे। और एनिमल कैचर था वह आया हर एक की ट्रे में एक एक चूहा डालता चला, फॉर्मलीन से बेहोश चूहे थे।
हम फ्रेंड्स बातें करते हुए अपनी अपनी ट्रे मैं डलवा रहे थे ,और जैसे ही मेरी फ्रेंड शशि की ट्रे में डाला गया वह चूहा उछलकर उसके शर्ट के अंदर घुस गया गले से।अब वह इतनी डर गई तो भी बहुत हिम्मत करके खड़ी रही।
बहुत निकालने की कोशिश करी कभी हाथ से कभी पांव से कभी कहीं पहुंचता कभी कहीं पहुंचता10, 15 मिनट तक यही चलता रहा।आखिर में वह उसकी आस्तीन के कफ के थोड़ा पीछे पहुंचा उसने हाथ से पकड़ लिया ,,और फिर कफ का बटन खोल करके उसको बाहर निकाल कर फैंका।मगर उसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी उसने बिल्कुल आवाज नहीं करी एकदम शांति से उस चूहे को निकाला पकड़ने की कोशिश करके आखिर में आस्तीन में जाकर पकड़ में आया उसके निकलने के बाद तो थोड़ी देर तो वह डर गई थी।
कांप रही थी और फिर तो हम सब फिर इतना हंसे और उस बात को याद करके बहुत हंसते थे,और उसकी हिम्मत की दाद देते थे कि इतनी शांति से खड़ी रही एक आवाज नहीं निकाली उसकी जगह हम तो चिल्लाने लग जाते चूहे के कारण।
