Anita Sharma

Drama Fantasy Inspirational

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Anita Sharma

Drama Fantasy Inspirational

पर्स

पर्स

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"काव्या इस दिवाली पर हम घर चल रहे हैं। तुम बोल रही थी न कि माँ की याद आ रही है। तो दिवाली के बाद भाई दूज पर हम मम्मी से मिलने चलेंगे। मैंने ऑफिस से पूरे दस दिन की छुट्टी ले ली है। टिकट परसों की है तो तुम आज से ही पैकिंग शुरू कर दो।" काव्या के पति नितिष ने खुश होते हुए काव्या से कहा।

नितिष की बात सुनकर काव्या के साथ उसका पाँच साल का बेटा भी बहुत खुश हो गया और बेटा खुशी के मारे उछलते हुए बोला "हे, मैं दादी और नानी के पास जाऊंगा बहुत मजा आयेगा।"

काव्या और नितिष दोनों का परिवार यूपी में है। पर नितिष दिल्ली में नौकरी करता है। तो दोनों वही रहते है। काव्या अपने छोटे बेटे की प्रग्नेन्सी के बाद से गाँव नहीं गई है। इसीलिये उसका बहुत मन हो रहा था सबसे मिलने का। और आज नितिष ने उनका जाना निश्चित भी कर दिया था।

काव्या ने अपनी पैकिंग शुरु कर दी। क्योंकि दस दिनो के लिये दो बच्चों के साथ सामान तो ज्यादा हो ही जाता है। और अक्सर ऐसा भी होता है कि हम जो चीज भूल जाते है सबसे ज्यादा हमें उसी चीज की जरूरत पड़ती है।

काव्या की लगभग सारी पैकिंग हो गई थी। बस रास्ते की जरूरत का सामान अपने पर्स में डालते हुए काव्या परेशान सी होकर नितिष से बोली....... "नितिष मुझे न ये पर्स लेना बिल्कुल बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। सारा टाइम बस इसे ही संभालते रहो। इसके वजन से कंधा भी दुखने लगता है। क्या करू क्या में इसे न लूँ ??

बच्चे के साथ इसे संभालना और भी मुश्किल हो जाता है। "

काव्या की बात सुन नितिष हँसते हुए बोला...... "यार शायद तुम पहली महिला हो जिसे पर्स नहीं पसन्द। और अपना पर्स खुद खरीदने की वजाय, मुझसे मंगवाती हो। वरना सभी महिलाओं को तो पर्स इतना पसन्द होता है ,कि वो हर जगह के लिये अलग - अलग पर्स रखती है। "

नितिष की बात पर काव्या ने मुँह बनाते हुए कहा.... "आप को बड़ी जानकारी है महिलाओं के बारे में ??

नितिष ने भी वैसे ही मुँह बनाते हुए जबाव दिया....... "जब महिलाओं का सामान मुझसे मंगवाओगी तो जानकारी तो रखनी ही पड़ती है न। "

ऐसे ही दोनों पति -पत्नी अपनी प्यारी सी नोंकझोंक करते अपने बच्चों के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच गये। ट्रेन थोड़ी लेट थी ।तो वहीं एक बैंच पर बैठ कर ट्रेन का इंतजार करने लगे।

तभी काव्या के सामने से एक ठेले वाला हिंदी मासिक पत्रिकायें लेकर निकला । तो काव्या का पाठक मन एक पत्रिका खरीदने से खुद को रोक न सका। उसने तुरन्त अपने पर्स से पैसे निकाल कर एक पत्रिका खरीद ली। पर खोल कर देखें बिना ये सोच कर अपने पर्स में रखली, कि ट्रेन में बैठ कर आराम से देखेगी।

तभी स्टेशन का कोलाहल बढ़ गया। देखा तो उसकी ट्रेन आ चुकी थी।

काव्या ने अपने दोनों बच्चों के साथ अपने पर्स को भी बहुत मुस्तेदीं से संभालते हुए ट्रेन में चढ़ी।

वहीं नितिष ने अपने बैग संभालते हुए अपनी बर्थ के नीचे आराम से सैट कर लिये।

सभी आराम से बैठ गये। तभी एक झटके के साथ ट्रेन चल पड़ी। ट्रेन के चलते ही छोटे बेटे का रोना शुरू हो गया। तो नितिष ने कहा... "काव्या लगता है इसे भूख लगी है। तुम मुझे बताओ इसका दूध का डिब्बा और गर्म पानी किस बैग में है। तो मैं इसके लिये दूध की बोतल तैयार कर दूं ।"

इस पर काव्या ने मुस्कराते हुए पर्स से दूध की बोतल निकाल कर बच्चे के मुँह में लगाते हुए कहा.... "इसे तो बार -बार भूख लगेगी । तो बार- बार बैग कौन खोलेगा इसीलिये वो सब मैंने अपने पर्स में ही रखा है।

तभी बड़े बेटे ने खिड़की से एक खरोंच लगाली । और जोर -जोर से रोने लगा। तो काव्या ने छोटे बेटे को नितिष को पकड़ा कर ।तुरंत अपना पर्स खोला उसमें से डेटॉल और रुई निकाल कर फूंकते हुए उसके घाव को साफ किया और एक बेन्डेज निकाल कर ये बोलते हुये उस पर लगा दिया..." कि तू तो मेरा बहादुर बच्चा है। इतनी जरा सी चोट में थोड़े ही रोता है। "

वो भी अपनी माँ की बातों से खुश हो मुस्कराने लगा। और थोड़ी ही देर में दोनों बच्चे थककर सो गये। काव्या और नितिष ने थोड़ी देर इधर -उधर की बातें की ।फिर नितिष अपने सह यात्रियों से बात करने लगा । और काव्या भी अपने पर्स से पत्रिका निकाल कर उसके पन्ने पलटने लगी। काव्या तैयारी करने के चक्कर में सुबह जल्दी उठी थी तो वो भी जल्द नींद के आगोस में समा गई।

तभी *टी टी आई *टिकिट चैक करने आ गया। और जैसे ही नितिष ने टिकिट दिखाने को अपना पर्स खोला तो पर्स में टिकिट न देख परेशान हो गया। परेशानी में उसने अपनी सारी पॉकेट देख ली। पर टिकिट कहीं नहीं था।

तो टी टी आई नितिष पर गुस्सा होते हुए बोला..... "अपनी फेमली के साथ बिना टिकिट यात्रा करते हो। शर्म नहीं आती। "

इस शोरगुल से काव्या की नींद खुल गई।और बात को समझते ही उसने तुरन्त अपने पर्स से टिकिट निकाल *टी टी *को ये बोलते हुए दे दिया...... कि "अगर किसी के पास टिकिट नहीं है ,तो उस पर फाइन लगाइये। पर आप किसी पर ऐसे चिल्ला नहीं सकते। "

उसकी बात सुन *टी टी *शान्ति से टिकिट चैक कर चला गया। उसके जाने के बाद नितिष ने पूंछा..... "ये टिकिट तुम्हारे पास कैसे आया ??ये तो मैंने अपने पर्स में रखा था। "

"ये जब आप अपने मोवाइल में चैक कर रहे थे न कि एक टिकिट जो कन्फर्म नहीं हुआ था। वो हुआ कि नहीं ?तो इसे तुमने वहीं छोड़ दिया था। तो मैंने ध्यान से इसे अपने पर्स में रख लिया था। " काव्या ने जबाव दिया।

नितिष काव्या की तरफ मुस्करा कर देखते हुए बोला.... "यार आज तुम्हारे पर्स ने बचा लिया। नहीं तो वो *टी टी* तो शायद मुझे जेल पहुंचा देता। "

और कुछ सोचते हुए फिरसे बोला..... "वैसे काव्या तुम बोलती हो की तुम्हे ये पर्स लेना पसन्द नहीं है। पर क्या तुमने गौर किया कि तुम्हारा पर्स हर जगह ऐसे काम आता है जैसे कोई जादू का पिटारा हो।

हर जरूरत का सामान तुम्हारे इस जादू के पिटारे में मिल जाती है। "

तभी काव्या का छोटा बेटा शाम की सर्द होती हवा से कुनमुनाने लगा तो काव्या ने एकबार फिर अपने पर्स से छोटा सा स्टॉल निकाल कर उसे  उढ़ा दिया ।

और नितिष की तरफ मुस्कराते हुए बोली....... "सच में नितिष मेरा पर्स किसी जादू के पिटारे से कम नहीं है। सफर में यही तो होता है ,जो हमारी छोटी मोटी बहुत सारी जरूरतों को पूरा करता है। मैं यूँ ही इसे नापसंद करती थी। जबकि इसके बिना तो मैं किसी सफर की कल्पना भी नहीं कर सकती। "

तभी काव्या के बड़े बेटे ने भूख लगने की बात कही। तो काव्या ने पर्स से सैनेटाइजर की छोटी बोतल निकाल कर सभी के हाथ साफ करवाये और सब साथ में खाना खाने लगे।


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