परकटी
परकटी
नाज़िरा का आज रिजल्ट आ गया था। नाज़िरा एमबीबीएस डॉक्टर बनकर अब सब के सामने थी। अम्मी इस बात को बहुत खुश थीं, और दादी जान बहुत ज्यादा नाराज। दादी जान का अपना ही रोना था। "अरे भला लड़कियों को यह डॉक्टरी करने की क्या जरूरत है। अब डॉक्टर बनेगी तो सिर्फ औरतें ही नहीं आएंगी इसके पास, मर्द भी तो आएंगे।" बड़ी अम्मी बोलीं। "अम्मी जान! आप तो नाज़िरा के पीछे ही पड़ी हुई हैं। अगर कोई मर्द आदमी अपना इलाज करवाने के लिए आया भी तो क्या वह किसी को खा जाएगा। अपने यहां कितनी ही औरतें होती हैं, जो घर में घुट- घुट कर मर जाती हैं, लेकिन उन्हें कोई औरत डॉक्टर नसीब नहीं होती। शुक्र है अल्लाह का जो घर में एक होनहार बेटी पैदा हो गई है।" माँ ने कहा। " तुझे तो बेटे में कुछ दिखाई देता ही नहीं, कैसा जवान बच्चा है, पर तुझे तो यह नाज़िरा ही दिखाई देती है। कल को ब्याह के दूसरे घर जाएगी। भला हमें इसकी पढ़ाई- लिखाई का क्या फायदा।" बड़ी अम्मी ने कहा। "फायदा है, बहुत बड़ा फायदा है। आप रशीदा की तरफ तो देखिए। अगर वह पढ़ी-लिखी होती आज उसकी यह दुर्गत नहीं होती। तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ बोल दिया, और कर दी उसकी ज़िन्दगी तबाह। कहां गया अल्लाह, और उस की दुहाई देने वाले लोग ? सब ज़ुल्म और जबरदस्ती क्या सिर्फ औरतों की ही किस्मत में लिखी है ? अल्लाह तो इतना बेरहम नहीं हो सकता। मौलवी साहब आए और चंद गड्डियाँ रशीदा के हाथ पर टीकाकर मर्द होने की तसदीक करवा कर चले गए। अगर उसका हम सहारा ना बनते, तो कहां जाती बेचारी ?" अम्मी ने कहा। " खौफ़ खाओ ख़ुदा का। किस्मत को भी भला कोई बदल सकता है क्या ? जो अल्लाह ने उसकी किस्मत में लिखा था उसके साथ हुआ। और तुम क्या समझती हो, अगर मेरे बेटे को इस लायक ऊपर वाले ने नहीं बनाया होता तो क्या वह अपनी बहन की देखभाल कर पाता। हमें अल्लाह और उसके बंदों के हुकुम को मानना चाहिए।" बड़ी अम्मी ने कहा। "माफ कीजिए अम्मी, अगर हमने रशीदा बेगम को कोई पढ़ाई लिखाई कारवाई होती, उनके हाथ में कोई हुनर होता, तो इस तरह की बेइज्जती और परेशानी से बचा सकते थे हम उनको।
मज़हब ने औरत के साथ बराबरी का सलूक नहीं किया है। मज़हब को लिखने और चलाने वाले मर्द थे। औरत को भी चार शादियां करने का हक दिया गया है ? औरतों को ही क्यों हमेशा घुटना होता है। क्यों औरत तलाक़ नहीं दे सकती ? मर्द कैसा भी सिर का ताज मानते रहो। जमाना बदल रहा है। अगर हम जमाने के साथ नहीं चले तो बहुत पीछे रह जाएँगे। औरत ही क्या मर्द की गुलाम बनने के लिए पैदा हुई है ?" अम्मी ने कहा। "ख़ुदा का खौफ़ रखो जरा बहु, तुम्हें क्या लगता है कि हम गुलाम हैं। ये सब भरापूरा परिवार तुम्हें नहीं मिला है। फिर इतनी तुनकमिजाजी और बे-अदबी ठीक है ?" बड़ी अम्मी ने कहा। "ख़ुदा की कोई बे-अदबी नहीं कर सकता। लेकिन ख़ुदा के नाम पर मनचाहे फरमान निकालने वाले भी सारे मर्द हैं। उन्हें औरत की जगह बैठकर सोचना होगा। वो तो शुक्र है कि मैंने दो बेटियों के जन्म के बाद बच्चे पैदा करने से मना कर दिया और अनपढ़ भरापूरा परिवार नहीं बनाया। क्या हम ज्यादा बच्चों की देखभाल कर पाते ? क्या बच्चों को पढ़ा-लिखकर अच्छा शहरी बना पाते।" अम्मी ने कहा। "वो लोग आलिम हैं, ख़ुदा के फरमान और किताबों के हिसाब से ही फैसले देते हैं। ये औरत-मर्द का नया शगूफा आजकल के बददिमाग लोगों के दिमाग की उपज है। सदियों तक क्या दुनिया चली नहीं है। पता नहीं आजकलकल की औरतों को ये नया नज़ला हुआ है कि लड़कियों को मर्दों के बराबर मानों।
सिर पे चढ़ाओ लड़कियों को। अब इस डॉक्टर लौंडिया के लिए ढूँढो कोई पढ़ा लिखा, और खर्च करो लाखों रुपये। फिर भी क्या कोई भरोसा है कि ये सुखी रहेगी ? इस बात को तो अल्लाह ही तय करता है।" बड़ी अम्मी बोलीं। "माफ करना दादी, अगर हम ज़ुल्म सहते हैं, तभी कोई ज़ुल्म कर सकता है। जब अपने बराबर के आदमी से निकाह होगा, तो वो मेरी तकलीफ को समझ सकेगा। ये क्या हुआ कि शादी कर दो और छुटकारा पा लो बेटी से। बेटी क्या कोई बकरी है कि उसे किसी के खूँटे से बांध दो ?" नाज़िरा बोली। "अरे तू चुप ही रह, तेरी माँ ने ज्यादा ही सिर चढ़ा रखा है। ब्याह के दूसरे घर जाएगी, सलीके से रहना और बोलना सीख। तेरा बाप तो पागल हुआ फिरे है कि लड़की को डॉक्टर बना लिया है, और तू भी अफलातून की नानी बन रही है। सास जब सिर पे आएगी तो सब पता चल जाएगा तुझे। एक हमारी सास थी कि चार बच्चों के बाद भी मजाल है कि जुबान खोल दें। मैंने तेरी माँ को अपनी बेटी जैसा प्यार दिया है। सब सास एक जैसी नहीं होतीं।" दादी ने कहा। "हा हा हा .... दादी, कम तो आप भी नहीं हैं, वो तो हमारे अब्बू बहुत समझदार हैं। नहीं तो मोहल्लेभर का हाल देख लो, कैसी-कैसी चुटिया खींची जाती है।" नाज़िरा हँसते हुए बोली। "तभी तो, तूने तो कटवा लीं अपनी जुल्फें। बहुत सिर चढ़ा रखा है तुझे। अब जब जाएगी अगले घर तब पता चलेगा तुझे। अरे बाल तो औरत का गहना होते हैं। तुम आजकल की लौंडियों को क्या मालूम। भूतनी की तरह दिखाई देती हो और ऊपर से ये बे-सलीके के कपड़े। तौबा-तौबा .....क्या जमाना आ गया है।" बड़ी अम्मी बोलीं। अभी घर में आपस में बातें हो ही रहीं थीं कि अब्बू ने घर में दाखिल होते हुए नाज़िरा को पुकारा। "कहाँ है मेरा बेटा ? शाबास ....शाबास। "नाज़िरा दौड़ती हुई अब्बू की तरफ दौड़ी और जाकर उनसे लिपट गई। "अब्बू! हमने आपका सपना पूरा कर दिया। अब लाइये हमारा ईनाम।" और नाज़िरा ने अपने हाथों को फैला दिया। अब्बू ने नाज़िरा के माथे को चूमा। फिर जेब से कुछ रुपये निकालकर नाज़िरा का सदका उतारा और पैसे अम्मी को देते हुए कहा कि आज अच्छा सा खाना बनाकर तकसीम किया जाय।
"मुझे क्या मिला अपनी आँखें फोड़कर ? मेरा ईनाम दीजिये।" नाज़िरा ने मचलते हुए कहा। "डॉक्टर नाज़िरा साहिबा थोड़ा सब्र कीजिये। आपकी गाड़ी आ गई है और ये लीजिये उसकी चाबियाँ। आपका दूसरा ईनाम भी खुद चलकर आया है। अख्तर साहब का फोन आया है कि वो आपको अपने बेटे के लिए चाहते हैं। बहुत अच्छा रिश्ता है, कंप्यूटर इंजीनियर है, अच्छा कमाता है। और क्या चाहिए हमें।" अब्बू ने कहा। "ये कार और ये रिश्ता मुझे नहीं चाहिए। अभी मैं अपनी ज़िंदगी जीना चाहती हूँ। आप क्या अपनी बेटी को खुश नहीं देखना चाहते ?" नाज़िरा बोली। "अब और क्या करना है ? बेटा घर तो बसाना ही है एक दिन तुम को। ""अभी मुझे अपना क्लीनिक खोलना है, लोगों के लिए काम करना है और इतना पैसा कमाना है कि अपने अब्बू पर मैं बोझ न रहूँ। मुझे पता है कि एक डॉक्टर बनाने में कितना पैसा लगता है। आप की तरह हर बाप नहीं होता अब्बू। आप मेरे लिए खुदा से कम नहीं हैं। अब मैं भी आपका बेटा बनकर आपके कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहती हूँ।" नाज़िरा ने मुस्कुराते हुए कहा। "इतना अच्छा रिश्ता बार-बार नहीं मिलता। ख़ुदा का करम है कि रिश्ता ख़ुद चलकर आया है।" दादी ने कहा। "दादी ! तीस साल से पहले मुझे शादी नहीं करनी है। भले छोटी की शादी आप पहले कर देना। ऐसे बहुत रिश्ते आ जाएँगे। मैं अपने अब्बू का बेटा हूँ, मेरे लिए किसी के दरवाजे पर जाने की जरूरत नहीं है उन्हें। काबिलियत हो तो रिश्ते भी मिल जाते हैं। आप नहीं जानतीं कि उन्हें जल्दी क्यों पड़ी है ?" नाज़िरा ने कहा। "तू बड़ी दादी हो गई है, नामुराद बाप के सामने भी शर्म नहीं करती जरा-सी।" दादी ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
"अम्मी! नाज़िरा सही कह रही है। आज ये लड़की नहीं, बल्कि सोने का अंडा है। और इसकी काबिलियत का ही लड़का इसके लिए मैं देखुंगा। इसकी पढ़ाई का क़र्ज़ा भी तो अभी उतारना है। ये तो इसका भरोसा था खुदपर इसलिए मैंने भी साथ दिया। जिस रिश्ते को मेरी बेटी हाँ कहेगी, मैं वहीं रिश्ता करूंगा जहाँ तू चाहेगी। जमाने का क्या है कहता ही रहता है, और कहना ही उसका काम है।" अब्बू बोले। "ये हुई न अच्छे अब्बू वाली बात। अब अपनी वो चारे वाली दुकान बंद कीजिये और मुझे वो जगह मेरे क्लीनिक के लिए दीजिये।" नाज़िरा ने कहा। "हा हा हा ..... मैं जानता था तुझे। मैंने करीम भाई से बात कर ली है। उन्होने अपनी डेयरी शहर के बाहर बना ली है। उनकी जगह की बात कर ली है। जब तक तेरा क्लीनिक का काम वहाँ होता है, तुम खान साहब के अस्पताल में काम कर लो। उनका फोन आया था। औरतों की डॉक्टर की उनको बहुत जरूरत है।" अब्बू ने कहा। "हाँ, ये रिश्ता मंजूर है मुझे ....हा हा हा।" नाज़िरा ने हँसते हुए कहा। "सब पता है मुझे। खान साहब से बात हो गई है। मिठाई आ रही है, दूल्हे मियां ख़ुद आए थे। घर बुला भेजा है।" अब्बू ने मुसकुराते हुए कहा। "क्या मतलब ? कौन आ रहा है ?" अम्मी ने चौंकते हुए कहा। "छोटे डॉ खान आ रहे हैं। तीन साल के लिए इंगलेंड जा रहे हैं। जाने से पहले रिश्ता पक्का करना है और बड़ी मुश्किल से तीस की उम्र में शादी को तैयार हो गए हैं ..... वो तो पैंतीस में शादी करना चाहते थे .... हा हा हा।" अब्बू के कहते ही नाज़िरा अंदर की तरफ दौड़ गई। "अम्मी ! ये गाड़ी की चाबी आप ही अपने मुबारक हाथों से दीजिएगा। छोटे खान आ रहे हैं तो जरा आप भी सज जाइए। बेगम ! जरा आप भी .... हम तो देखें कि बेटी की खुशी माँ पर कैसे सजती है। छोटे खान अपनी अम्मी के साथ तशरीफ ला रहे हैं।" अब्बू बोले। "सब कुछ कर लिया और किसी से पूछा भी नहीं।" अम्मी बोली। "अरे! बताया तो था तुम्हें रात को। लगता है भूलने का ईलाज करवाना पड़ेगा बेटी से ....हा हा हा। कुछ देर बाद नाज़िरा शर्बत के गिलास ट्रे में लिए हुए आ गई थी। "हाय अल्लाह .....देखा कैसी बढ़िया लग रही है इस सूट और दुपट्टे में। इधर आ तेरी नज़र उतार दूँ।" दादी ने नाज़िरा को देखते हुए कहा। "पर मैं तो तुम्हारी परकटी ही हूँ, नज़र नहीं लगेगी। दादी की भी भला नज़र लगती है क्या ?" नाज़िरा ने कहा। "नहीं बेटा, तू परकटी नहीं है, तू तो परी है। अल्लाह तुझे सलामत रखे। खूब उड़ो मेरी बच्ची। " और दादी ने नाज़िरा का माथा चूमकर गाड़ी की चाबियाँ उसकी हथेली पर रख दीं।