Kedar Nath Shabd Masiha

Comedy

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Kedar Nath Shabd Masiha

Comedy

पानी के छींटे

पानी के छींटे

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मैं अपने कमरे में जैसे ही घुसा और अपने बदबूदार कपड़े उतारकर एक तरफ रखे ही थे कि कमरे से सेनीटाइजर जैसी खुशबू आने लगी। पहले तो लगा कि पसीने की वजह से ऐसा लग रहा होगा। इतनी गर्मी में तो घर आकर अपनी हालत ऐसी होती है, जैसे कहीं हल चलाकर आए हों। कमरे में लगा कूलर बगल में लगे दो ए सी के कंडेंसर से निकली हुई गर्मी को खींचकर इस कोमल काया पर फेंकता है। सरकारी बिजली की बचत के लिए मात्र पंखों से काम चलाना पड़ता है। समस्या इतनी ही नहीं है, कूलर में पानी भरवाना हो तो चपरासी की चाय -मट्ठी मुफ्त में। इसलिए अपनी बचत के साथ सरकारी बचत का मंत्र अपना रखा है। वैसे भी हम सरकारी आदमी खून-पसीने की ही खाते हैं। आजकल पसीने की ज्यादा खा रहे हैं। क्योंकि खून तो साहब ने पी रखा है। न महंगाई नज़र आती है ....न डीए की किस्त मिली। अलबत्ता टीका भी एक पेड लगवाया और एक सरकारी। आप सोच रहे होंगे कि सरकारी टीका क्यों लगवाया ? हाँ, सवाल तो बहुत जरूरी है। राष्ट्र के नाम वेतन का हिस्सा कोविड के कारण कट ही रहा है। जब वेक्सीन का लंबा-चौड़ा बिल सरकारी आदमी के सिर फट ही चुका है तो सरकारी टीका लगवाना ही परम धर्म है। वैसे भी आम आदमी बनकर ही रहना चाहिए। खास आदमियों के लिए टीका खास तरह से लगता है ....बाकायदा फोटोग्राफी होती है। और बाद में सोशल मीडिया पर आता है कि टीका लगवाने का सिर्फ नाटक किया था। जी तो मैं कहाँ था? हाँ, याद आया कि अपने पसीने से बदबू मार रहे वस्त्रों का त्याग कर रहा था। वैसे लगे हाथ आपको यह भी बता दूँ कि जिनके दो नालायक बेटे हों, उन्हें भगवान से कुछ मांगने की जरूरत नहीं, भगवान उन्हें बेटी न देकर पहले ही सजा दे चुके हैं। एक बेटी होती है, जो बाप के घर लौटने पर पानी का एक गिलास तो देती है, मगर ये मरदूद तो ख़ुद सोचते हैं कि पापा आ गए हैं तो नींबू पानी पीने को मिलेगा। लड़कों के संस्कार तो ऐसे हैं कि पूछिए ही मत।

मुझे ही जाकर उनसे कहना पड़ता है ..."पिताजी नमस्ते।"और तब जाकर उनके फूटे मुंह से निकलता है .... नमस्ते। आजकल 'जी' लगाने के दिन लद गए। संस्कार बिलकुल ऐसे हो गए हैं जैसे रामायण सीरियल की सीता जींस पहने दिखाई दे गई हो। कहने को सुपुत्र हैं .... ऐसा पंडित जी भी कहते हैं। लेकिन हमारी औलाद है तो इस बात को हम ही अच्छी तरह से जानते हैं कि कितने सुपुत्र हैं। आजकल प्योर माल मिलता ही कहाँ है ? सब कुछ सीखाने के बाद भी सामाजिक ज्ञान निल बटा सन्नाटा है। आजकल कोई भी टीचर हो सकता है, लेकिन माँ-बाप को अपने बच्चों का टीचर कभी नहीं होना चाहिए। हाँ, जानता हूँ कि आप सकते में हो। जी हुजूर ....कभी स्कूल की बाउंड्री के पास भी गए हों तो याद कर लीजिये ..... घर की मुर्गी दाल बराबर। वैसे मैं तो शाकाहारी हूँ। घर के बाहर मौकाटेरियन हूँ। कहने में पूरा वेजिटेरियन हूँ और सोचने में पूरा नॉन वेज। हाँ, कभी-कभी सलाद से भी काम चलाना पड़ता है जब मुकेश दुबे जैसा भाई साथ हो। लो कर लो बात ..... फिर बात फिसल गई। बड़े-बूढ़े कहते हैं कि अपनी बुराई करना अच्छी बात नहीं है। तो उन्हीं बड़े-बूढ़ों की आपको कसम है कि ऊपर जो कुछ भी लिखा है वह सही होते हुए भी सही नहीं है। बहुत संस्कारी कपूत हैं, जिनके आने से हम पापा बने हैं। इसलिए औलाद को अक्सर ....."बेटा जी पैरी पैना " ऐसा कहकर हम अपनी इज्जत की रक्षा करते हैं। हाँ, तो जैसे ही कपड़ों को उतारा, जिनसे पसीने की बदबू आ रही थी। ऐसा मुझे लग रहा था, लेकिन बदबू मंटो भाई के आने से आ रही थी। पीकर आए थे। "बड़ी मेहनत कर रहा है कामचोर।" मंटो ने मुझे घूरते हुए कहा। 

"अरे! तुम कब आए ? कम से कम कुछ बोलते तो सही। मैं किस हालत में हूँ, देखते हो न। मुझे शर्म आ रही है।" मैंने कहा। "हा हा हा ....मुझे क्या फर्क पड़ता है। बहुतों को देखा है इस हाल में। कई गरीब तो ऐसे भी हैं जो पटेदार कच्छा पहनते हैं, तुम्हारी तरह माचो लिखा हुआ नहीं। और जितने की तू बानियान पहने है, इतने में पूरे शरीर को ढकते हैं। उन्हें यहाँ के नेता अपनी तरक्की के लिए गरीब कहते हैं।" मंटो बोला। "ओ भाई ! मेरा न गरमी ने वैसे ही दिमाग खराब कर रखा है। ऊपर से तुम्हारे दो नालायक भतीजे नौकरी की तलाश में घर में बेड तोड़ रहे हैं, ए सी की हवा में पड़े हुए। ये सब जो देख रहे हो टीवी के इश्तेहार की देंन हैं, क्योंकि टीवी और फिल्म के सुपर स्टार इन का विज्ञापन करते हैं। और हमारे घरों की साधारण -सी औरते हमें ये कपड़े पहनाकर जैसे हमें शाहरुख और सलमान बना देना चाहती हैं। काश हमें आमीर खान बनाने की कोशिश करतीं।" मैंने कहा। "हम्म ....तो तू आमीर खान बनना चाहता है ? तेरी तो ऐसी की तैसी .... अभी जाकर टीवी में घुसता हूँ, और सुनाता हूँ तेरी सारी कहानी विद नमक-मिर्च का तड़का और नींबू निचोड़ के। फिर देखुंगा कि नंगा नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या ?" मंटो ने जैसे सपाट और कामयाब धमकी दी थी। मैं वाकई घबरा गया था। एक तो गर्मी से चक्कर आ रहे थे, और ऊपर से इस मरदूद मंटो की ये धमकी। बिलकुल सटीक निशाना लगा था।

मैं तो गश खाकर धम्म से कुर्सी में बैठ गया। कमरे का पंखा भी किसी बूढ़े आदमी की तरह अपनी गर्दन हिला रहा था। केपेसिटर बदलवाना था, मगर हम ठहरे सच्चे भारतीय, आज का काम कल पर टालने वाले। जब आंखे नटेर गए तो मंटो ने ही आँखों पर पानी मारा हमारी। पानी पड़ने के बाद कुछ चेतना लौटी। "फटटू कहीं का। भाभी के नाम से ही पस्त हो गया।" मंटो ने ताना दिया। "हर शरीफ आदमी को पत्नी से डरना चाहिए, वरना घर में चीन, पाकिस्तान और कोरिया होने का डर बना रहता है। मैं अहिंसावादी, गांधी जी को प्यार करनेवाला आदमी हूँ।" मैंने कहा। "अबे! गांधी से आजकल प्यार करने की मनाही है। सरकारी तौर पर अघोषित प्रतिबंध है गांधी पर।" मंटो बोला। "नहीं, मैं कागजवाले गांधी की बात कर रहा हूँ।" मैंने कहा। "भाई मैं उस गांधी की बात कर रहा हूँ जो रुपये की कीमत की तरह आज गिरा दिया गया है। साला जब -जब मुल्क के बारे में सोचता हूँ .....सारा नशा उतर जाता है।" मंटो उदास सा बोला। नशा सुनते ही मुझे याद आया कि मुकेश भाई ने चखने के साथ मंटो के प्रिय मसालेदार माल को स्पोंसर किया है। "भाई ! मैं खून-पसीने की खाता हूँ। पसीना बहाकर आया हूँ इसलिए शरीर में पानी की कमी हो गई है। डरता किसी से नहीं हूँ। बस जरा जेब की हालत पतली होने से डरता हूँ। वैसे तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है।" मैंने कहा। "अबे! मैं क्यों डरने लगा, मेरे यहाँ न रसोई गैस आती है, न मैं कोई कार चलाता हूँ, न मुझे टीके की लाइन में लगकर टीके का इंतजार है, न मुझे नौकरी की तलाश है, न मेरी बीबी है मेरे साथ। जिन्हें मैं प्यार करता हूँ वो सब मुझे पालते हैं .... फिर मुझे चिंता क्यों ? चल निकाल मेरी फीस।" और मंटो आ गया अपनी पर। "जरा पानी देना मुझे।" मैंने मंटो से कहा। "क्यों ? अब भी चक्कर आ रहे हैं क्या ?" मंटो ने पूछा। "नहीं, आज की फीस सीहोर वाले मास्टर मुकेश दुबे देंगे।" मेरे इत्ता कहते ही मंटो दूसरी कुर्सी में धम्म से गिरा। तब से मैं उसके दिये पानी के छींटे, उसके मुंह पर मार रहा हूँ। अब सुलटते रहें स्पोंसर। हम तो चले गरम पानी से नहाने उसमें बर्फ डालकर। 


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