NARINDER SHUKLA

Drama

5.0  

NARINDER SHUKLA

Drama

प्रजातंत्र

प्रजातंत्र

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विवेक नगर के राजा मंदबुद्धि सिंह को अपने अंतिम दिनों में परमार्थ की सूझी। उन्होने महामंत्री नैन ज्योति सिंह को बुला कर कहा - महामंत्री नैन ज्योति सिंह, हम सोच रहे हैं कि अपने यहां भी पड़ोसी राज्य की तरह प्रजातंत्र स्थापित किया जाये। जनता की आवाज़, परमात्मा की आवाज़ होती है। हमें इसे अनसुना नहीं करना चाहिये। इस विषय में आपकी क्या राय है ?

महामंत्री नैन ज्योति सिंह कलयुग के कुतुबुददीन थे। उन्होंने चाणक्य बनने की भी कोशिश की थी। लेकिन, पिछले दिनों एक अन्य चाणक्य से पटखनी खाये जाने पर वे अब केवल स्वामी भक्ति रह गये थे। उनका नफा - नुकसान केवल कुर्सी तक सीमित रह गया था। वे केवल और केवल अपने प्रभू राजा मंदबुद्धि सिंह के दिमाग से ही सोचते थे। हलांकि डबल प्रैशर से कभी - कभी राजा मंदबुद्धि को अघकपारी की शिकायत हो जाती थी। लेकिन, चलता है। प्रजा के लिये सब कछ सैक्रीफाइज़ करना पड़ता है। ऐसा राजा मंदबुद्धि सिंह मानते थे।

महामंत्री नैन ज्योति सिंह ने हाथ जोड़ते हुये कहा - जैसी प्रभू की इच्छा। सब हो जायेगा। परंतु महाराजाधिराज़, इस पद्धिति से हमारे कारनामों की पोल खुल सकती है। प्रजा को मालूम हो जायेगा कि फलां मुनाफा कमाने वाली सरकारी कंपनी हमने अपने मित्रों को क्यों बेची। अमुक सरकारी ठेका हमने अमुक प्राइवेट कंपनी को लीज़ पर क्यों दिया। दूसरा, ऐसा करने से हमारे कोमल मासूम राजकुमारों का हक भी मारा जायेगा। उन्हें उनकी विरासत नहीं मिल पायेगी। यह उनके साथ अन्याय होगा।

राजा मंदबुद्धि सिंह ने अपनी मूंछों को ताव दिया और बड़ी शान से बोले - तुम उसकी चिंता मत करो महामंत्री। हमारे दिमाग में भी यह बात आई थी। किंतु, हम भी इस शतरंज के पुराने खिलाड़ी हैं। तुमने देखा नहीं किस तरह से हमने अपने प़ड़ोसी मित्र ऐशोदीन को रात के बारह बजे राज-पद की शपथ दिलाई थी।

पर महाराज, सुबह, मात्र 24 घंटे की भीतर ही उन्हें सिंहासन छोड़ना भी तो पड़ा था। महामंत्री नैन ज्योति सिंह ने भय से कांपते हुये कहा।

राजा मंदबुद्धि सिंह ने महामंत्री नैन ज्योति सिंह को जलते नेत्रों से देखा - उस नामाकूल लंगोटी लाल की बेजोड़ सरकार की लंगोटी की गांठ हमारे हाथ में ही है। हम उसे जब चाहे खींच सकते हैं। उसके आधे से अधिक मंत्री हमारी जेब में है समझे। आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। रही बात राजकुमारों की। तो सुनो, कल्लन सिंह, लल्लन सिंह, व राजकुमार उल्झन सिंह की हमें परवाह नहीं है। ये सब राजनीतिक रुप से बालिग हो गये हैं। इन्हें राज्य की दूसरी प्रमुख पार्टियों में शामिल करा दिया जायेगा। राजकुमार मिलन सिंह अभी बच्चें हैं। कालेज़ से नये - नये छूटे हैं। प्रेम, ममता, सहानुभूति जैसे उल-जलूल शब्द बकते हैं। उन्हें फिल्हाल ट्रनिंग की आवश्यकता हैं। समय आने पर उन्हें कहीं न कहीं एडजस्ट कर लिया जायेगा। तुम कालाबाज़ारियों से कह दो कि उन्हें घबराने की तनिक भी आवश्यकता नहीं हैं। कुछ भी हो जाये। हकूमत हमारी ही रहेगी। वे नि;संकोच अपने कार्य में लगे रहें। हमें अपने राज्य की अर्थव्यवस्था विश्व की सभी विकसित अर्थव्यवस्थाओं से कम से कम पांच गुना आगे ले जानी है। 

जी हज़ूर। महामंत्री नैन ज्योति सिंह ने कान पकड़ते हुये कहा।

राजा मंदबुद्धि सिंह नरम पड़ गये - अच्छा महामंत्री जी, जरा ये तो पता लगाइये कि राज्य में हमारी स्थिति क्या है ? माहौल कैसा है ? प्रजा हमारे बारे में क्या सोचती है ? तमाम गुप्तचरों को इस कार्य में लगा दीजिये। राज्य के सभी खास कर्मचारियों को सादे कपड़ों में जनता के बीच भेजिये।

जी हज़ूर। महामंत्री नैन ज्योति सिंह प्रणाम करते हुये दीवाने खास से बाहर आ गये।

राज्य में मुनादी पिटवा दी गई। सरकारी कार्यलयों, सार्वजजिक दीवारों, सड़कों, मदिरायलयों, विद्यालयों, अस्पतालों और विशेषकर राज्य के विश्वविद्यालयों की दीवारों को राजा साहब के रोबीले चेहरे से से पाट दिया गया।

बैंक की लाइन में लगे एक मज़दूर ने एक पढ़े - लिखे नौजवान से पूछा - भैया यह प्रजातंत्र क्या होता है ?

दूसरेे ने कहा - प्रजातंत्र माने ताज़ी हवा।

मज़दूर ने कहा - पर हवा तो प्रदूषित है। मीडिया कह रहा है।

पढ़े - लिखे नौजवान ने कहा - मीडिया अपोजेशन से मिला है। राजा साहब सही है। राजा साहब को कोई हरा नहीं सकता। उनके माथे पर तेज़ है। 

महिलाओं की लाइन में लगी एक हाउस वाइफ बोली - महंगाई दिनों - दिन बढ़ती जा रही है। गैस सिलेंडर 1000 रुपये का हो चला है। आटा - दाल सब कुछ महंगा है। क्या करें । कहां जायें। ऐसे राज्य में रहने से तो सुसाइड कर लेना अच्छा है।

राजभक्त टीचर ने बचाव किया - पड़ोसी मुल्क में भी तो टमाटर 300 रुपये है।

एक ने कहा - पर यहां भी तो प्याज़ 200 रुपये है। हमारी आवाज़ राजा साहब तक कौन पहुंचाये। मीडिया डरा हआ है।

दूसरे ने जवाब में प्रशन किया - उसे अपना पेट नहीं पालना क्या ? मीडिया हाउस भी तो प्राफिट कमाने के लिये बने हैं। उन्हें भी जीने का हक है।

लाइन में सबसे पीछे लगे रिटायर्ड प्रोफेसर ने विश्लेषण करते हुये कहा - देश का किसान भूखा मर रहा है। उनके पास गुजर करने के लिये पैसे नहीं हैं। फसलों में घाटा हो रहा है। बाढ़ से फसलें बेकार हो रही हैं।

राजा भक्त टीचर ने रहा गया। उत्तेजित हो बोला - राजा साहब फसल बीमा राशि भी तो दे रहें हैं और फिर किसान सम्मान राशि भी तो दी जा रही है।

रिटायर्ड प्रोफेसर ने जवाब दिया - किसान का बीमा प्रीमियम जरुर कट रहा है लेकिन, बीमा का पैसा नहीं मिल रहा। कीटनाशक, खाद व खेती के उपकरण बनाने वाली कंपनियां सब्सिडी, इंनकम टैक्स रिबेट से माालामाल हो रहीं हैं। सरकार खुश। कंपनी खुश। सरकारी बाबू खुश। नये राज्य का निर्माण हो रहा है। कौन कहता है राज्य का अन्नदाता गरीब है। देख लेना इस प्रजातंत्र में राजा साहब ही जीतेंगे।

बोला राजा साहब की जय।

लाइन में सादी वर्दी में खड़े राज्य कर्मचारी हाथ उठा कर राजा साहब के सम्मान में जय घोष के नारे लगाते हुये लाइन तोड़ कर आगे बढ़ गये।

चैराहे पर खड़ा विदूषक चुपचाप देखता है - राज्य में गरीबी, भुखमरी, चोरी, लूटपाट, भाई - भतीजावाद और गुंडागर्दी किस तरह अपनी जड़े जमा चुकी है।

सामने से भक्तों की बाइकस रैली चली आ रहीं है। सब उन्माद से भरे हैं। कहीं कोई सिग्नल नहीं। कहीं कोई बैरीेगेट नहीं। इन नौजवानों के लिये कहीं कोई रोज़गार नहीं है।

सामने बरगद के नीचे सरकारी विद्यालय की अनुबंध पर लगी हिंदी की अध्यापिका बच्चों को पढ़ा रही है।

तुलसी दास ने कहा है कि -

जीविका विहीन लोग

सिद्धमान सोच बस, कहां जाई, का करी।

जहां जीविका न मिले, वहां एक पल भी ठहरना उचित नहीं।

रुके हये पानी से सड़ांध पैदा होती है। सड़ांध से नज़ला होता हैं। नज़ला छाती पर चढ़ बैठता है और जीभ बाहर आ जाती है। राम नाम सत्य है।

उधर, गुन्तचरों से वस्तुस्थिति जान लेने के बाद, राजा मंदबुद्धि सिंह चिंतित हो गये। सोचने लगे, प्रजा का नैतिक स्तर कितना गिर गया है। पहले प्रजा राजा को अपना भगवान मानती थी। उस पर अपनी आस्था रखती थी। अब वे हमीं से हिसाब मांगती है। उन्होने महामंत्री नैनज्योति सिंह को बुलाया और कहा - महामंत्री जी,मालूम होता है कि हवा का रुख़ हमारी ओर नहीं है। प्रजा बेरोज़गारी, महंगाई, अशिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क व बिजली - पानी जैसी क्षुद्र समस्याओं में उलझी पड़ी है। उन्हें राज्य का विकास नहीं दिख रहा। विरोघी उन्हें भ्रमित करने में जी, हम जानना चाहतें हैं कि इन समस्याओं के मूल में क्या है।

बढ़ती जनसंख्या हज़ूर। महामंत्री नैनज्योति सिंह ने तपाक से कह दिया।

महाराज मंदबुद्धि सिंह का चेहरा लटक गया। सोचने लगे - इस तरह तो वे अपना परलोक नहीं सुधार पायेंगे। उनकी अंतिम इच्छा उनके मन में ही रह जायेगी।

अपने राजा की शोचनीय अवस्था देखकर महामंत्री नैन ज्योति सिंह से नहीं रहा गया। वे राजा मंदबुद्धि सिंह के कालेज सखा भी थे। उन्होंने अपने दिमाग़ से इसका तोड़ निकालते हुये परामर्श दिया - महाराज क्यों न वर्से ठंडे बस्ते में पड़ा एम. सी. डी कानून लागू किया जाये।

राजा साहब का चेहरा खिल उठा। प्रसन्न मुद्रा में आदेश दिया - तो ठीक है राज्य में एम. सी. डी तुरंत लागू किया जाये।

राजा मंदबुद्धि सिंह ने महामंत्री नैन ज्योति सिंह की प्रशंशा करते हये कहा - वाह महामंत्री जी, कमाल कर दिया। राज्य आपके जैसा महामंत्री पाकर धन्य है। आज हम स्वयं आपकी जय बोलना चाहते हैं। बोलो  महामंत्री नैन ज्योति सिंह जी की जय।

सभी मंत्रीगण एक स्वर में चिल्लाये - महामंत्री नैन ज्योति सिंह जी की जय। लेकिन, एम. सी. डी कानून न समझ पाये।

कानून मंत्री ने पूछा - एम. सी. डी मतलब।

महामंत्री नैन ज्योति सिंह ने बताया - एम. सी. डी माने मैरिज़ प्रमाण पत्र। इसके तहत जो लोग आयेंगे। उन्हें सीधे तौर पर राज्य की प्रजा समझ लिया जायेगा।

परिवार कल्याण मंत्री ने चिंता दिखाई - लेकिन विडंबना यह है सरकार कि सभी को पराई बीवी सुंदर लगती है। ऐसे तो राज्य खाली हो जायेगा। युवा अनाथ हो जायेंगे। उनका दिल विदेशमंत्री की मार्डन बीवी पर फिदा था।

उसकी चिंता आप बिल्कुल न कीजिये महामंत्री नैन ज्योति सिंह। राज्य के कर्मचारी घर - घर जाकर पता लगायेंगे कि कौन - कौन शादी - शुदा है। बीवीयों की पहचान करना कोई जटिल कार्य नहीं है।

पर हज़ूर समाज में ऐसे भी लोग हैं जो 50 के बाद भी कुंआरे हैं। उनके माता-पिता की शादी के प्रमाण पत्र के लिये तो उस लोक जाना पड़ेगा जहां से वापिस आ पाना ना - मुमकिन है।

एक मंत्री ने कहा - सरकार, उन लोगों का क्या होगा जिन्होंने घर से भाग के शादी की है। परिवार कल्याण मत्री को अपनी वैधता की चिता सताने लगी।

घबराओ नहीं। जांच - पड़ताल के बाद सब कुछ समझ लिया जायेगा।

वहीं एक कोने में विचारमग्न खड़े विदूषक ने प्रार्थना की - महाराज, इस समय राज्य बेरोज़गारी, स्वास्थ्य, अशिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई और निरंतर गिरती विकास दर जूझ रहा है। किसान से लेकर कामगर तक संकट में हैं। सरकारी उपकरणों के निज़ीकरण के विरोध में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। छोटे व मंझोले किस्म के उद्योग - धंधे बंद हैं। ऐसे वक्त में एम. सी. डी लागू करना अतंयंत भयावह व खतरनाक होगा। राज्य एक और आंदोलन सहन नहीं कर पायेगा। राज्य के विभिन्न वर्ग सड़कों पर उतर सकते हैं। युवाओं में आक्रोश है। राज्य में अराजकता फैल सकती है। इसलिये महाराज, मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि एम. सी. डी को अभी न छेड़ा जाये।

विदूषक की बात सुनकर, राजा मंदबुद्धि सिंह क्रोध से पागल हो उठे- निर्लज्ज, हमारे राज्य में रहकर विदेशी भाषा बोलता है। हमारे टुकड़ों पर पलता है और हमी से नमक हरामी करता है नालायक। विदूषक को हिरासत में ले लो।

महाराज मंदबुद्धि सिंह की जय। महाराज मंदबुद्धि सिंह की जय। विदूषक को हिरासत में लिया जाता है।

दरबारी तालिया पीटते हुये जयघोष के नारे लगाते हैं। और लोकतंत्र का खेल चलता रहा।


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