प्रेत आत्मा हूँ मैं भाग 2
प्रेत आत्मा हूँ मैं भाग 2
गतांक से आगे
बदहवासी की हालत में किसी तरह सुवा लाल अपने घर पहुँचता है, उसकी हालत देखकर कोई भी यह अनुमान लगा सकता था कि रास्ते मे जरूर सुवा लाल के साथ कोई बहुत बड़ी अनहोनी हुई है।
सुवा लाल के पूरे शरीर पर जख्म ही जख्म और सूजन थी तथा आवाज में भी भयपन नज़र आ रहा था। अगर कोई ऐसा व्यक्ति जिसने सुवालाल को बहुत कम देखा हो वह उसे उस स्थिति में देख कर पहचान नहीं सकता था। रह रह कर सुवा लाल उल्टी किये जा रहा था मुँह से खून भी निकल रहा था और वह बीच बीच मे अजीब अजीब सी डरावनी आवाजें भी निकाल रहा,कभी किसी पुरूष की आवाज तो कभी किसी स्त्री की आवाज और कभी कभी तो बच्चे की आवाज और कभी कभी भयंकर अट्टहास करता था।
इस स्थिति को देख कर यह निर्णय करना बहुत ही मुश्किल था कि किसी भूत प्रेत का साया उस पर था या फिर रास्ते में उसके साथ कोई और घटना घटी है जिसके कारण वह बदहवासी में है। किसी तरह रात बीती और सुबह हुई,परिवार के सदस्यों ने निर्णय किया कि सुवा लाल को गाँव के सबसे बड़े तांत्रिक शाकम्बरी बाबा(हाँ यही नाम था उनका) को दिखाया जाए जो किसी भी भूत प्रेत को भगाने में माहिर थे,उनका आस पास के कई गाँव उनका नाम था।
खैर जैसे तैसे बाबा को बुलाया गया,तांत्रिक विधि से ध्यान करने पर पता चला कि यह कोई साधारण प्रेत नहीं है वरन एक ब्रह्म प्रेत है।
बाबा ने बताया कि सुवा लाल पर एक ब्रह्म प्रेत का साया है, यह बहुत ज्ञानी औए जिद्दी प्रेत होते है इनसे टकराना मतलब अपनी मौत को दावत देना।
हर कोई इनको अपने वश में नहीं कर सकता है इनको वश में करने के लिए इनके ही समान ज्ञानी व्यक्ति ही होना चाहिए।
फिर भी मैं कुछ ऐसा करता हूँ कि जिससे यह सुवा लाल को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पायेगा
उधर सुवा लाल को लग रहा था कि वह भूत प्रेत के चंगुल से बच कर निकल कर बाहर आ गया था परन्तु वह प्रतिपल प्रेत आत्मा की गिरफ्त जाता ही चला जा रहा था।
शाकम्बरी बाबा ने जैसे तैसे एक ताबीज़ सुवा लाल के दाहिने हाथ में बांध दिया और घर को भी अभिमंत्रित कर दिया और घर के मुहाने पर एक सुअर की हड्डी गाड़ दी जिससे यह ब्रह्म प्रेत बाहर न जा सके और कोई दूसरी ब्रह्म प्रेत उसकी सहायता के लिए न आ सके।
बाबा जानते थे कि यह एक ब्रह्म प्रेत है यह किसी और को नुकसान नहीं पहुंचाएगा उसे तो सिर्फ सुवालाल शरीर ही चाहिए था और वह भी उसे घर के बाहर ही के जा कर मार सकता था।
"यह किसी भी हालत में घर के बाहर नहीं जाना चाहिए" यह कह कर शाकम्बरी बाबा इस ब्रह्म प्रेत से निपटने का रास्ता ढूँढने निकल पड़े।
वह मन ही मन सोच रहे थे कि बहुत वर्षो बाद किसी ब्रह्म प्रेत से पाला पड़ा है, इनसे लड़ना और सामना करना बहुत ही मुश्किल होता है पिछ्ली बार उनका पाला एक ब्रह्म प्रेत से पड़ा था तब उन्हें पीछे हटना पड़ा था बमुश्किल अपनी जान बचायी थी।
इसलिए बाबा जानते थे कि ब्रह्म प्रेत से प्रत्यक्ष रूप से युद्ध करना अपनी मौत को दावत देना है,पर क्या करें कुछ तो करना ही पड़ेगा क्योंकि किसी की जिंदगी और मौत का सवाल था।
उधर वह प्रेत आत्मा कहाँ मानने वाली थी, वह तरह तरह से सुवा लाल को परेशान करने लगी जैसे ही सुवा लाल सोने की कोशिश करता उसे भयानक सपने आने लगते और वह चिल्लाने लगता उसे लगता जैसे चारों तरफ से प्रेत आत्माओं ने उसे घेर रखा है और जबरन उसका गला दबाने का प्रयास कर रहे हैं कभी लगता कि उसे पहाड़ पर से कोई नीचे फेंक रहा है और नीचे बहुत सारे प्रेत उसके शरीर को नोंचने के लिए खड़े हैं और कभी कभी तो उसे अपने सीने पर बोझ महसूस होता जैसे लगता कि वह मेमना उसे अट्टहास के साथ उसे ले जाने का प्रयास कर रहा हो और कह रहा हो।
मैंने कहा था न कि तुम्हे ले कर ही जाऊँगा, अब कहाँ जाओगे बच कर सुवा लाल, मैं आ गया तेरा काल, पहचाना मुझे !
यह सब सुन कर घबरा कर उठ जाता है और तेज़ तेज़ हाथ पैर मारने लगता है और उस प्रेत को चुनौती देता है कि आ जा यदि माँ का दूध पिया है तो,
सामने आ कायर,पीछे से क्या आवाज देता है, डरपोक, कायर, नामर्द, परिवार के सभी सदस्य सुवा लाल की यह स्थिति देखकर घबरा जाते हैं और उसे सम्हालने की कोशिश करते हैं पर जब उन्हें लगता है कि सुवा लाल को वश में करना मुश्किल है तो कुछ लोगो की मदद से सुवा लाल के हाथ पैर चारपाई से बाँध दिए जाते है।
थोड़ी देर चिल्लाने और धमकी देने के बाद कमरे में एक शान्ति सी आ जाती है
रात हो जाती है, सब लोग गहरी नींद में चले जाते हैं।
अचानक सुवा लाल की आँखे खुलती हैं, वह मकान की छत को देखता है फिर अपनी बडी बड़ी आँखों को चारों तरफ दौड़ाता है, जैसे अक्सर भाँग के नशे में आदमी करता है जो काम चालू कर दिया वह करता ही रहता है।
सुवा लाल ने पाया कि परिवार के सभी सदस्यता गहरी नींद में सोए हुए हैं। फिर कुछ देर रुक कर बड़ी ही मासूमियत से अपनी पत्नि को आवाज देता है।
कमला ओ कमला, मेरे हाथ और क्यों बाँध रखे हैं, क्या कोई ऐसा अपने पति के साथ करता है, जल्दी हाथ और पाँव खोलो, मुझे पेशाब करने जाना है।
कमला को लगा जैसे उस प्रेत ने सुवा लाल को छोड़ दिया है और उसका पति अब ठीक हो गया है सो उसने अपने पति के हाथ और पैर खोल दिये।
सुवा लाल तेजी से उठा और तुरंत घर के बाहर जाने लगता है परंतु जैसे ही वह दरवाजे के पास पहुंचता है तो उसे तेज़ से एक झटका लगता है और वह चारपाई के पास आ कर गिरता है।
अब सुवा लाल का रूप बदल चुका था जो अभी कुछ देर पहले सौम्य तरीके से बात कर रहा था वह अब खूँखार रूप धारण कर चुका था और कह रहा था,
राम राम राम किसने घर के बाहर सूअर की हड्डी दबाई है, कौन है वह मूर्ख जिसने अपनी मौत को दावत दी है।
अब सुवा लाल वह सुवा लाल नहीं रहा बल्कि वेदपाठी पंडित की तरह बड़े बड़े मंत्र बोलने लगा था।
उसके मंत्रोचारण से और क्रूरता भरे व्यवहार से अब परिवार के सभी सदस्य जाग चुके थे और सभी को लग रहा था कि अब जरूर कोई बड़ी अनहोनी होने वाली है।
सुवा लाल अभी भी सभी को चेतावनी दे रहा था कि जल्द से जल्द दरवाजा खोलो वह हड्डी हटाओ नहीं तो मैं किसी को भी जिंदा नहीं छोडूंगा, सब बे मौत मारे जाओगे।
और परिवार के कुछ सदस्यों पर आक्रमण कर के घायल कर देता है।
जब किसी ने नहीं सुना तो सुवा लाल पीछे के दरवाजे की तरह दौड़ा जहाँ संयोग से तांत्रिक बाबा ने ऎसी कोई व्यवस्था नहीं की थी कि जिससे उस प्रेत आत्मा को रोका जा सके।
सुवा लाल अट्टहास करता हुआ बहुत तेजी से उस दरवाजे से भागा, पीछे पीछे उसका परिवार।
अब सुवा लाल का हुलिया बदल चुका था वह अपने दोनों हाथों को आगे की ओर किये शमशान की तरह दौड़े जा रहा था, जैसे कोई अपने प्रियतम या प्रेयसी से मिलने जा रहा हो,अब उसके बाल बड़े बड़े किसी साधु महात्मा की तरह हो गए था और शरीर पर कुर्ता पायजामा की जगह धोती और बनियान आ चुकी थी, गले में एक योगोपवीत भी दिखाई दे रहा था।
अब वह सुवा लाल नहीं वरन एक ब्रह्म प्रेत बन चुका था इधर से यह प्रेत आत्मा बहुत तेज़ तेज़ आवाज लगा रही थी और उधर शमशान से भी वैसी ही तेज़ तेज़ आवाज़ आ रही थी जैसे कोई विरहणी विरह में अपने स्वामी को याद कर रही हो या आने की खुशी में स्वागत गान गा रही हो
लेकिन जिसे ही वह शमशान के द्वार पर पहुंचता है अचानक एक आकृति उसे रोकती है चारों तरह प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है।
क्रमशः