Dinesh Pandey

Drama

1.9  

Dinesh Pandey

Drama

प्रेत आत्मा हूँ

प्रेत आत्मा हूँ

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राजस्थान के अलवर जिले का एक साधारण सा गाँव गोपालपुरा,लगभग 2 हज़ार की आबादी वाला यह गाँव। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं की गोद मे बसा हुआ। जिसके चारों तरफ सिर्फ़ नागफनी ही नागफनी दिखाई देती थी या फिर कीकर ही कीकर। जो अंधेरे में किसी भूत प्रेत या चुड़ैल के साये के जैसा प्रतिबिंबित होता था। भोले भाले साधारण लोगों के मेल जोल से बने इस गाँव में लगभग हर जाति के लोग रहते थे। कुछ मुस्लिम परिवार भी। गाँव वालों ने अपनी सुविधा के लिए या यह कहें कि आस्था के लिए या भय मुक्ति के लिए कई मंदिर और मस्जिद भी बना रखे थे। एक प्राथमिक विद्यालय भी था जिसमे नाममात्र की पढ़ाई होती थी कभी अध्यापक नदारत रहते थे और कभी विद्यार्थियों का समूह। अभिवाहक भी विद्या के महत्व से अनभिज्ञ थे उन्हें लगता था कि उनका बच्चा ज्यादा पढ़ कर कलेक्टर तो बन नहीं जाएगा। करेगा तो मेहनत मजूरी ही इसलिए बचपन से ही उन्हें खेती और अन्य कामों में लगा कर रखते थे। कभी कभी डकैती की भी खबर भी सुनने को मिल जाती थी।


भीमा डाकू उस समय का सबसे कुख्यात डाकू था। उस समय नृशंस हत्याएं भी देखने और सुनने को मिल जाती थी।कभी किसी डाकू की छिन्न भिन्न लाश मिलती थी, और कभी किसी अनजान शख्स की लाश मिलती थी। लेकिन यह सभी अमावस्या की रात ही ज्यादा होती थी और वह भी शमशान और क़ब्रिस्तान की परिधि में। इसलिए लोग इसे भूत प्रेत, जिन्न आदि से जोड़ देखते थे। गाँव में प्रवेश करने से पूर्व एक शमशान था और गाँव मे मध्य एक कब्रिस्तान बना हुआ था। जो सदैव नश्वरता की याद दिलाता था। गाँव के मध्य कब्रिस्तान और मंदिर होने के कारण कई बार जब मंदिर में पूजा अर्चना हो रही होती थी और उसी समय किसी का जनाज़ा निकल रहा होता था उस समय का वातावरण श्रद्धा और वीभत्सता से रला मिला होता था। लोगों को यह समझ में नहीं आता था कि वह अपना मस्तिष्क पूजा पाठ में लगाएँ या शोक संवेदना में। गाँव मे आने जाने का कोई साधन नहीं था पहाड़ी इलाके में होने के कारण वहाँ किसी भी साधन से आया और जाया नहीं जा सकता था। पैदल, साइकिल और रिक्शा से ही आ और जा सकते थे। बिजली के प्रति सरकार भी उदासीन थी जिसके कारण रात की स्थिति और भयावह थी। वैसे तो दिन में शांत रहने वाला यह गाँव रात के अंधेरे में बहुत ही भयानक रूप ले लेता था, लोगो का ऐसा मानना था कि चारों तरह सिर्फ भूत, प्रेत,आत्माओं का ही बसेरा होता है मानो किसी ने इस गाँव पर जादू टोना कर दिया हो।कोई दैविक प्रकोप हो। पर जादू टोना करने वाले और तंत्र मंत्र करने वालों की पौ बारह थी, लोग इस गाँव मे रात में जाने से कतराते थे और जो जाते थे उनको कुछ न कुछ ऐसा बुरा अनुभव जरूर होता था। जिससे इस बात की पुष्टि हो जाती थी कि इस गाँव मे कुछ न कुछ तो जरूर गड़बड़ है।


उसी गाँव में सुवा लाल नाम का एक युवक रहता था। लम्बा चौड़ा 6 फुट 3 इंच का, लगभग 120 कि.ग्रा,सुडौल शरीर गौर वर्ण। अपनी मस्ती में मस्त न किसी का डर न किसी का भय। एक दिन सुवा लाल किसी काम से गाँव से शहर गया था आते आते उसे काफी रात हो गई। जैसे ही वह अपने गाँव की परिधि में प्रवेश करता है उसे एक अजीब सी गंध महसूस होती है ऐसी आकर्षित गंध उसने कभी महसूस नहीं किया था। वह गंध उसे लगातार मदहोश किये जा रही थी। हर तरफ उसे सुंदरता और खुशनुमा माहौल सा महसूस हो रहा था। जैसे किसी व्यक्ति को भाँग का सेवन के बाद लगता है। ऐसा लग रहा था कि जैसे सब कुछ एक सपना सा है। भय का दूर दूर तक नामो निशान नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने कोई माया जाल फ़ैलाया हो।

सुवा लाल को यह नहीं लग रहा था कि आने वाले कुछ समय में कुछ ऐसा घटित होने वाला है जो उसके साथ कभी घटित नहीं हुआ था।

कुछ ही दूर आगे बढ़े तो सुवा लाल ने पाया कि एक बकरी का मेमना झाड़ियों के पीछे छुपा हुआ तेज तेज आवाज़ निकाल रहा था।

में ह ह ह ह ह...

में ह ह ह ह ह...

आवाज़ इतनी बुलंद और करूणा से भरी थी कि कोई भी उसको नज़रंदाज़ नहीं कर सकता था। सुवा लाल को लगा जैसे यह मेमना गलती से यहाँ छूट गया है। वो वहाँ पहुंचा और उसे झाड़ियों में से निकाल कर अपनी गोदी में ले लिया। और सोचने लगा कि शायद गाँव के किसी व्यक्ति का होगा,घर पर ले जाता हूँ सुबह पता कर के दे दूंगा। अब बकरी का बच्चा भी चुप हो गया था और बड़ी ही क्रूर हँसी के साथ सुवा लाल को देख रहा था जैसे कह रहा हो कि आज सुवा लाल आज तू अपने ईष्ट को याद कर ले शायद कल का सूरज तू नहीं देख पाए। मगर सुवा लाल इन सब से बेखबर अपनी ही धुन में मेमना को लिए तेजी से लिये तेज तेज कदमों से आगे बढ़ रहा था कि जल्द ही मंज़िल तक पहुंचा जाए। अचानक सुवा लाल को लगा कि उसकी गति पता नहीं क्यों धीरे हो गई थी। उसे भार सा महसूस हो रहा था साँस भी तेजी से चल रही थी। उसने नीचे देखा तो पाया कि किसी का पैर अपनी पूरी शक्ति से सुवा लाल को रोक देना चाह रहा था। धूल मिट्टी उड़ने लगी थी। परंतु यह क्या यह तो उसी मेमना का पैर था जो अब एक विशालकाय बकरा बन चुका था।

और प्रेत की तरह अट्हास कर रहा था। सुवा लाल ने उसे देखते ही दूर उठा कर फेंक दिया और उसे लड़ने की चेतावनी दी।


मेमना जो कि अब बकरा बन चुका था ने कहा आ जा अब मुझे नही ले जाएगा। "आज मैं तुझे बताऊंगा की किसी से पाला पड़ा है। भूत हूँ मैं काल हूँ मैं तेरा हा हा हा...." सुवा लाल आगे बढ़ते गए और पीछे से भिन्न भिन्न मिश्रित आवाज़ कुछ जानी पहचानी आवाज़ें उसे रुकने के लिए कहती रही पर ।

पर सुवा लाल आगे बढ़ता गया।


क्रमश........



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