प्रेम और बलिदान
प्रेम और बलिदान
बस्ती के उस छोर पे रहता था एक फकीर,
जिसकी आँखों में बसती थी मोहब्बत की तस्वीर।
चिथड़े कपड़ों में लिपटी थी उसकी पहचान,
मगर दिल में था असीम प्रेम और बलिदान।
सामने वाले महल में रहती थी एक परी,
जिसकी हँसी से बहारें भी थीं ठहरी।
राजकुमारी थी, मगर दिल था कोमल,
उसकी आँखों में भी था प्यार का जल।
एक दिन जब बारिश आई ज़ोरों से,
वह दौड़ी आई थी उन भिखारियों के ओरों से।
फकीर ने देखा, उसके हाथों में थी रोटी,
और आँखों में कोई छुपी हुई बात छोटी।
राजकुमारी बोली, "तुम क्यों यूँ अकेले?
क्या तुम्हें कभी मिला नहीं कोई सहारे का मेले?"
फकीर मुस्कुराया, और धीरे से कहा,
"प्रेम किया था, पर समर्पण ही राह रहा।"
सालों पहले जब उसकी दुनिया थी रंगीन,
वह भी था कभी किसी की तक़दीर का जीन।
पर उसने त्यागा अपना सुख, अपना जहाँ,
क्योंकि प्रेम सिखाता है बलिदान की पहचान।
राजकुमारी ने सुनी उसकी यह कहानी,
और उसकी आँखों में उमड़ आई रवानी।
उस दिन से उसने सीखा, प्रेम केवल पाने का नाम नहीं,
बल्कि त्याग और समर्पण का भी पैगाम यही।
